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Showing posts from May, 2019

गूरूकार्य

हमारे  दीपक  की  बाती  को  जो  तेल  मिलना  चाहिए  था , वो  तेल  तो  गूरूकार्य  से  ही  मिलता  है । हमने  किसी  और  साधक  की  सहायता  की  तो  भी  एक  गुरुकार्य  हुआ । हमने  किसिको  सही  मार्ग  दिखाया - गूरूकार्य  हुआ । हम  अपनी  कार्यक्षेत्र  में  सही  रास्ते  पर  चले - गूरूकार्य  हुआ । हम  जीवनभर  सकारात्मक  रहे - गूरूकार्य  हुआ । हमने  देश  की  प्रगती  में  अपना  एक  कदम  बढ़ाया गूरूकार्य  हुआ । हमने  बच्चों  को  अच्छे  संस्कार  दिए --गूरूकार्य  हुआ । हमने  बच्चें  को  सही  मार्ग  दिखाया, गूरूकार्य  हुआ । गूरूकार्य  केवल  शिविर  करने  में  नही , गूरूकार्य  केवल  शिविर  के  आयोजन  में  नही  है , गूरूकार्य  केवल  किसी  उत्सव  के  आयोजन  में  नही  है । सारा  जीवन  ही  गूरूकार्य  है । सत्यमार्ग  पर  चलना  गूरूकार्य  है ।    वंदनिय गुरुमाँ      गुरुपुर्णिमा         २०१४

ऑरा के फोटो से ध्यान में जुड़ना

🌿 ऑरा के फोटो से ध्यान में जुड़ना - १ 🌿 विदेशों के अंदर इसका काफी अध्ययन होता है। अपने यहाँ है ना, जैसे एक साधू को ग्यारह लोग नमस्कार कर रहे हैं तो बारहवाँ देखके ही झुक जाएगा। विदेशों में ऐसा नहीं है। वो भुट्टे जैसे खड़े रहेंगे। जब तक उनको उसका ऑरा दिखेगा नहीं, उसका आभामण्डल दिखा नहीं तब तक झुकेंगे नहीं। बिल्कुल मुड़ेंगे नहीं। मेरे भी ऑरा के चित्र पहले भी दो बार निकाल चुके थे। लेकिन उसके अंदर भी तब्दीली आती रही, बदलाव आते रहे। अभी पिछले साल ही थियोसॉफिकल सोसायटी में लेक्चर हुआ तो उन्होंने कहा, "स्वामीजी आप बोलते हो ना, कि पाँच-पाँच साल बाद लाइसन्स इश्यू करो, हर साल उनका ऑरा देखो, उनका आभामण्डल देखो तो आपका भी तो ऑरा का फोटो पंद्रह साल पुराना है, दस साल पुराना है। आपका अभी का बताओ ना, ऑरा कैसा है, आपका आभामण्डल कैसा है? अभी का फोटो निकालो ना!" (Cont..) परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी समर्पण ग्रंथ - १६० (समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:९२ 🌿 ऑरा के फोटो से ध्यान में जुड़ना - २ 🌿 मैंने कहा, "ठीक है।" बोले,  "अगर आपका  आभा

आधा घण्टा ध्यान 

🌹जय बाबा स्वामी🌹 जाति से भेदभाव  , धर्म  के भेदभाव  , देश के भेदभाव  , रंग के भेदभाव  , लिंग  के भेदभाव  , कुछ नही | ये सब भेदभाव  एटोमँटिकली समाप्त हो जाएगा जब आप मानेंगे कि आप एक पवित्र  आत्मा  हैं, वैसे ही आप महसूस करो - "मैं एक  शुद्ध आत्मा हूँ "|   शुद्ध आत्मा  हूँ यानी  ? मैं एक  शुद्ध आत्मा के अलावा कुछ नहीं हूँ | ना मेरा कोई पद है , ना कोई मेरी शिक्षा है,  ना कोई मेरा रिश्तें हैं , ना कोई मेरा समाज है , ना मेरी कोई जाति है , ना देश है , कुछ नहीं है | आप इस स्तर तक पहुंचो, कि आप पुरूष है या स्त्री  है इसका भी अहसास आपको नही होना चाहिए | ये शुद्धता का टोप लेवल..... कि स्त्रीयाँ ध्यान  करें तो उसके याद नहीं रहना चाहिए  कि वो स्त्री है या पुरूष है , पुरूष ध्यान  करें तो उसके याद नहीं रहना चाहिए  कि वो पुरूष है कि स्त्री  है | "मैं शुध्ध आत्मा हूँ "| आत्मा ना स्त्री  होता है ना पुरूष होता है | ऐसा तीन बार ....... आप बोलकर के एक  आधा घण्टा ध्यान  करो | हाँ , दूसरा नियम है - नियमित  ध्यान  करने का | इसके अंदर एक  दिन  का भी ब्रेक नहीं होना चाहिए ~आपका अपना बाबा

सजीव अनुभूति

निर्जीव पुस्तके अनुभुति नही करा सकती सजीव अनुभूति के हमे सजीव माध्यम की आवश्यकता होगी आप कितने पुण्यवान है की  गुरुशकतीयोने आपको अनुभूति कराने के लिये आपके पास माध्यम भेजा है । ~सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी,  गुरुपूर्णिमा 2011,   कच्छ समर्पण आश्रम पुनडी,  प्रवचन अंश l

जीवन का एक ही लक्ष्य है

सभी  गुरुशक्त्ति  धाम  के  गर्भगृह  का सम्पूर्ण  निर्माण  कार्य  और  श्री  मंगल मूर्ति  की  स्थापना  करना  ही  अब  जीवन का  लक्ष्य  बना  लिया  है । यह  पूर्ण करने  के  लिए  मेरे  पास  पर्याप्त  धन  भी  मेरे  पास  नहीं  है । पर  मुझे  गुरुशक्त्तियों  पर  पूरा  विश्वास  है।  गुरुशक्त्तियों  का  कार्य  में  कभी  न  धन  की  कमी  पड़ी  है  और  न  भविष्य  में  न  कभी  पड़ेगी । अभी  तो  गुरुशक्त्तियां  आपका  हाथ  पकड़कर  आपसे  काम  करवा  रही  हैं । इसलिए  अभी  कार्य  करना  आसान  है। बाद  में  तो  आपको  गुरुशक्त्तियों  की  उंगली  पकड़कर  कार्य  करना  पड़ेगा । आप  कितने  समय  उंगली  पकड़कर  रख  पाओगे  उस  पर  ही  कार्य  की प्रगति  निर्भर  होगी l आपका अपना बाबा स्वामी मधुचैतन्य, मार्च-अप्रेल पेज नं 4

ऋणानुबंध

विचार या तो भविष्य की चिंता के कारण आते हैं या भूतकाल में किए कर्मों के कारण आते हैं | कर्म जो हमने किए और वे कर्म जो औरों ने हमारे लिए किए, वे ही विचारो को जन्म देते हैं | हम जानते-बूझते किसी का बुरा नहीं करते या कोई बुरा कार्य नहीं करते | जब भी कोई हमारे लिए कर्म करता हैं तो वह मुझे ऋणानुबंध के कारण लगता हैं | अच्छे-बुरे कर्म हम अपने ऋणानुबंध के कारण भोगते हैं | और हम किसी के प्रति जो भी अच्छा करते हैं शायद वह भी ऋणानुबंध के कारण ही हो !!! ~परम वंदनीय गुरुमा माँ - पुष्प समर्पण ध्यान योग

ऑरा के फोटो से ध्यान में जुड़ना - १

विदेशों के अंदर इसका काफी अध्ययन होता है। अपने यहाँ है ना, जैसे एक साधू को ग्यारह लोग नमस्कार कर रहे हैं तो बारहवाँ देखके ही झुक जाएगा। विदेशों में ऐसा नहीं है। वो भुट्टे जैसे खड़े रहेंगे। जब तक उनको उसका ऑरा दिखेगा नहीं, उसका आभामण्डल दिखा नहीं तब तक झुकेंगे नहीं। बिल्कुल मुड़ेंगे नहीं। मेरे भी ऑरा के चित्र पहले भी दो बार निकाल चुके थे। लेकिन उसके अंदर भी तब्दीली आती रही, बदलाव आते रहे। अभी पिछले साल ही थियोसॉफिकल सोसायटी में लेक्चर हुआ तो उन्होंने कहा, "स्वामीजी आप बोलते हो ना, कि पाँच-पाँच साल बाद लाइसन्स इश्यू करो, हर साल उनका ऑरा देखो, उनका आभामण्डल देखो तो आपका भी तो ऑरा का फोटो पंद्रह साल पुराना है, दस साल पुराना है। आपका अभी का बताओ ना, ऑरा कैसा है, आपका आभामण्डल कैसा है? अभी का फोटो निकालो ना!" (Cont..) परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी समर्पण ग्रंथ - १६० (समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:९२

प.पू. गुरुदेव ( सूक्ष्म एवं स्थूल) के तस्बीर में बदलाव... अयोग्य

प्रश्न 56 : मॉं, हम अक्सर देखते हैं कि कुछ साधक भाव में आकर पूज्य स्वामीजी के फोटो के साथ कुछ एडिटिंग करके तरह-तरह के फोटो सोशल मीडिया पर रखते हैं, जैसे दो बाघों के बीच पूज्य स्वामीजी का आशीर्वाद देते हुए फोटो, गुरुदेव के सूक्ष्म शरीर के फोटो में मस्तिष्क के ऊपर शेषनाग दिखाया हुआ फोटो वगैरह । मॉं, क्या ऐसा करना योग्य है ? (शैलेश रूडानी) प्रिय शैलेश जी,                  अनेक आशिर्वाद !         शैलेश जी, आज के समय में साधक, कम्प्यूटर का उपयोग अपनी रचनात्मकता तथा कल्पनाशीलता से स्वामीजी की तस्वीरों को नया रूप देते हैं । ऐसा करते समय उनका भाव गलत नहीं होता । किंतु प्रश्न यह है कि ऐसा करना योग्य है क्या ?           उत्तर है - नहीं, ऐसा नहीं करना चाहिए । आप गुरुदेव को किस रूप में देखते हैं, वह आपका नजरिया है किंतु तस्वीर से छेड़छाड़ करना सर्वथा अनुचित है । और तस्वीर में बदलाव कर उसे सोशल मीडिया पर डालना तो बहुत ही गलत है ।            हम सभी जानते हैं गुरुदेव सभी धर्मों से परे हैं । सभी उपासना पद्धतियों का सम्मान करने वाले तथा सबको आत्मधर्म की प्रेरणा देने वाले स्वामीजी की तस्वीर को किसी

German Sadhak's experience of 2 Retreats

In these two retreats some German sadhaks asked, "I am a pure soul, I am a holy soul, why do we  feel much better divine energy when it is chanted in the Hindi language and not in any other language?" The answer given to them was that the number of Hindi language (speaking) sadhaks is the highest. I have also taken this experience in the Marathi language, and you too have taken this experience and observed in the German language. That's why all German sadhaks chant the mantra only in the Hindi language.                From Germany Your Own                              Baba Swami                        22/5/2019

जर्मन साधको का २ रिट्रीट का अनुभव

2     रिट्रीट मे कुछ जर्मन साधको ने पुछा की “ मै एक पवीत्र आत्मा हु मै एक शुद्ध आत्मा हु ।”यह हिन्दीं भाषा मे बोले तो ही अधीक अच्छा चैतन्य क्यो महसुस होता है। अन्य कीसी भाषा मे क्यो नही ? उन्हे यह उत्तर दिया गया की हिंन्दी भाषा के साधक संख्या ही सबसे अधीक है । मैने मराठी भाषा मे भी यह अनुभव लेकर देखा है ।और आप ने जर्मन भाषा मे भी अनुभव लेकर देख लीया है ।इसी लीये सारे जर्मन साधक मंत्र केवल हिंन्दी भाषा मे ही बोलते है ।               जर्मनी से आपका अपना                             बाबा स्वामी                        22/5/2019

शरीर और आत्मा अलग -अलग है यह अनुभव किया । क्या इसके ऊपर की और कोई स्थिति है ? अगर है तो कृपया अनुभव कराइऐ ।

प्रश्न  :- शरीर   और   आत्मा   अलग -अलग   है   यह   अनुभव   किया । क्या   इसके   ऊपर   की   और   कोई   स्थिति   है ? अगर  है   तो   कृपया   अनुभव   कराइऐ । स्वामीजी :- कुछ   नही ...ध्यान   करो , ध्यान   करो , ध्यान   करो ... फिर   धीरे -धीरे   सब   स्थितियां   ओटोमेटिकली  जीवन मे   चली   जाती   है । संपूर्ण   स्थिती   वो   है   जिस   स्थिती   मे   जाकर   हमारे   जीवन   मे   पाने   के   लिए  कुछ   भी   नही   रह   जाता   है । कोई   इच्छा   बाकी   नही   रह   जाती    है , कोई   कार्य   बाकी   नही   रह   जाते   है , कोई   करने   के   लिए   कार्य   नही   रहते   है   की   ये   करना   चाहिए , ये   होना   चाहिए। एक   तृप्त   अवस्था , एक   पूर्ण   समाधान   की   स्थिती ,  पूर्ण   संतोष   की   स्थिती   आपको   आपके   जीवन   मे   प्राप्त   हो   जाती   है ।                      सद्गुरू श्री शिवकृपानंद स्वामीजी         चैतन्य महोत्सव (२०१६}

ध्यान

“रात्रि के अँधेरे को दूर करने के लिए भौतिक जगत में दीपक, मोमबत्ती तथा बिजली के बल्ब हैं किन्तु यदि जीवन में रात्रि हो तो आत्मा के प्रकाश से ही अंतर का अंधकार दूर हो सकता हैं | अंधकार से उषा तक का सफ़र आत्मा के प्रकाश के बिना संभव नहीं | आत्मा की बाती ध्यान से प्रकाशित रहती हैं | ध्यान के लिए विचारशुन्यता की अवस्था  आवश्यक हैं और उसके लिए समस्त भावों का समर्पण आवश्यक हैं | विचार या तो भविष्य की चिंता के कारण आते हैं या भूतकाल में किए कर्मों के कारण आते हैं | कर्म जो हमने किए और वे कर्म जो औरों ने हमारे लिए किए, वे ही विचारो को जन्म देते हैं | हम जानते-बूझते किसी का बुरा नहीं करते या कोई बुरा कार्य नहीं करते तो विचार कम आते हैं | ••• जब भी कोई हमारे लिए कर्म करता हैं तो वह मुझे ऋणानुबंध के कारण लगता हैं | अच्छे-बुरे कर्म हम अपने ऋणानुबंध के कारण भोगते हैं | और हम किसी के प्रति जो भी अच्छा करते हैं शायद वह भी ऋणानुबंध के कारण ही हो _!!! ••• यदि हम अपने द्वारा किए गए सभी कर्म समर्पित कर सकें तथा मन के सभी भावो को समर्पित कर पाएँ तभी विचारशून्य अवस्था प्राप्त हो सहेगी | तभी ध्यान कर पाएँग

मुक्ति

मुक्ति पानी है तो लेन -देन का हिसाब तो यहीं होना चाहिए । पहले देह को त्यागो , केवल आत्मा बनकर जिओ । औऱ देह का उपयोग एक मशीन की तरह करो । रोज़ सुबह ध्यान के पश्च्यात प्रार्थना करो की "हे गुरुदेव , आज़ के दिन में मुझसे जो भी कार्य करवाना है , वह कार्य करवा लीजिए औऱ पतिक्षण आप मेरे साथ रहिए ।आपकी इतनी -सी प्रार्थना . . समस्त दिवस आपका इस प्रकार जाएगा उस प्रार्थना के कारण कि आप पाएँगे कि आपने चाहे जो भी योजना बनाई या आपको चाहे जैसे भी लोग मीले हों किंतु कार्य आपके हाथ से केवल वही घटित हुआ जो होना योग्य था । औऱ चूँकि गुरुशक्तियाँ प्रतिक्षण आपके साथ थीं तो आपको वो सुरक्षा कवच भी प्राप्त हुआ । पूज्या : गुरुमाँ मकर संक्रांति २०१८

गुरु विश्वचेतना का माध्यम

" गुरु   विश्वचेतना   का   माध्यम   है ।  चैतन्य   कोई   भौतिक   वस्तु   नही   है ।  इसे   ग्रहण   करने   के   लिए   स्पर्श   करने   की   आवश्यकता   नही   होती ।  हमारा   चित्त   ही   चैतन्य   ग्रहण   करता   है , इसलिए   चित्त     गुरुचरणों   मे   होना   चाहिए ।".... प..पू..वंदनिय गुरुमाँ

A Good Effort

Today I saw a YouTube channel named 'Isha Samarpan', created by sadhaks Shri Giriraj Sharma and Juhi Sharma. I saw the 'Anubhuti session' too in this, and also saw the successful broadcast of experiences by sadhaks on it, when a sadhak is narrating his own personal experience then it has a different kind of vibration of truth in it. I appreciate this effort by them; and this is an example that if a sadhak so wishes then he can do even such a great Guru-karya. Every sadhak has received this energy 'as blessings in the form of consciousness'. You must have this realisation. Lots of blessings for this great Guru-karya.                    Your Own                     Baba Swami                     18/5/19                     Poornima Note: 🌺If this sadhak can do this, then why not you?🌺🌺🌺🌺🌺 https://youtu.be/TObwrOWx0Ho

एक अच्छा प्रयास

आज मैने एक साधक श्री गिरीराज शर्मा और जुही शर्मा के द्रारा नीमीेत “इशा समपेण” नामक युट्युब चेनल देखा । इसमे “अनुभुती सेंशन” भी देखा और उसमे साधको से लिये गये अनुभव का सफल प्रसारण भी देखा जब कोई सांधक अपना नीजी सत्य अनुभव बताता है ।तो सत्य के एक अलग ही व्हेबरेशन होते है । मै इनके इस प्रयास की प्रंशसा करता हु। और एक साधक अगर चाहे तो कितना विशाल गुरूकाये कर सकता है। इसका यह उदाहरण है । यह शक्ती तो प्रत्येक साधक को “ चैतन्य के प्रसाद के रूप मे मीली है।   आपको बस उसका एहसास होना चाहीये । इस महान गुरूकाये के लिये खुब खुब आशिवाद                              आपका अपना                               बाबा स्वामी                          18/5/19                     पोणिमा नोट: 🌺यह साधक ऐसा कर सकता है तो आप क्यो नही 🌺🌺🌺🌺🌺 https://youtu.be/ec7GPoMTDzo

साइंस अध्यात्म में सहायक है

🌿 साइंस अध्यात्म में सहायक है - 1 🌿 कई बार हमने समाज के अंदर कई गुरुओं का पतन होते हुए देखा है। इसके लिए मैंने एक सुझाव रखा था। मैंने सांसदों का शिबिर लिया था, २०१५ में। सांसदो के शिबिर में मैंने एक प्रस्ताव रखा था उनके सामने कि आप आध्यात्मिक गुरुओं के लायसन्स इश्यू करो। देखो, रहता है कि नहीं, जैसे हमको ड्राइविंग का लायसन्स चाहिए तो हम क्या करते हैं? आर.टी.ओ. ऑफिस में जाते है, ट्रायल देते हैं, वो देखते हैं- हाँ, ठीक से चलाना गाड़ी आ रही है। ठीक है, तुमको पाँच साल का लायसन्स। और उसके बाद में फिर पाँच साल बाद में फिर ट्रायल चेक करते हैं, फिर लायसन्स। वैसे जितने आध्यात्मिक गुरु है, सबको लायसन्स इश्यू करो। आध्यात्मिक गुरु हूँ।" तो उनका आभामण्डल चेक करो, उनका ऑरा चेक करो। देखो, साइंस अध्यात्म के विरोध में नहीं है, साइंस सहायक है। उसका ऑरा चेक करो ना, उसका आभामण्डल चेक करो। (Cont..) परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी समर्पण ग्रंथ - १५६ (समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:९०-९१ 🌿 साइंस अध्यात्म में सहायक है - २ 🌿 अगर उसका आभामण्डल अच्छा है, उसको पाँच

समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान"

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - १ 🌿 दूसरा, हमको ना, गृहस्थों को लगता है कि हमको ही प्रॉब्लम है, हमको ही समस्या है। साधुओं के क्या तो मजे चल रहे हैं, संन्यासी क्या मजे करते हैं, उनको कोई तकलीफ नहीं, कोई संसार नहीं, उनको कुछ.. ऐसा नहीं है। 'दूर के ढोल सुहाने।' उनके जाओगे ना, उनके जीवन में झाँकोगे, उनकी तकलीफें जानोगे तो उनको भी तकलीफे हैं, उनको भी परेशानी है। उनकी परेशानियाँ अलग हैं, तुम्हारी परेशानियाँ अलग हैं। जब साधुओं के, संन्यासियों के शिबिर लेता हूँ ना, छोटे-छोटे शिबिर रहते हैं, बीस-बीस लोगों के, दस-दस लोगों के लेकिन हाँ, लंबे-लंबे चलते हैं। छ:-छः घण्टे, आठ-आठ घण्टे शिबिर चलते रहता है। ये साधक लोग भी जलते हैं। “स्वामीजी, आठ-आठ लोगों को आठ-आठ घण्टे लेके बैठते हो?” मैं उनको बोलता हूँ, “वो मेरे लिए आठ सौ- आठ सौ किलोमीटर चलके आते हैं, मैं तुम्हारे पास आठ सौ किलोमीटर चलके जाता हूँ। दोनों में अंतर हैं ना!” तो साधु, संन्यासियों की तकलीफें नहीं हैं, ऐसा नहीं है, परेशानियाँ नहीं हैं, ऐसा नहीं है। (Cont..) परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी समर्पण ग्