ध्यान
“रात्रि के अँधेरे को दूर करने के लिए भौतिक जगत में दीपक, मोमबत्ती तथा बिजली के बल्ब हैं किन्तु यदि जीवन में रात्रि हो तो आत्मा के प्रकाश से ही अंतर का अंधकार दूर हो सकता हैं | अंधकार से उषा तक का सफ़र आत्मा के प्रकाश के बिना संभव नहीं | आत्मा की बाती ध्यान से प्रकाशित रहती हैं |
ध्यान के लिए विचारशुन्यता की अवस्था आवश्यक हैं और उसके लिए समस्त भावों का समर्पण आवश्यक हैं | विचार या तो भविष्य की चिंता के कारण आते हैं या भूतकाल में किए कर्मों के कारण आते हैं | कर्म जो हमने किए और वे कर्म जो औरों ने हमारे लिए किए, वे ही विचारो को जन्म देते हैं | हम जानते-बूझते किसी का बुरा नहीं करते या कोई बुरा कार्य नहीं करते तो विचार कम आते हैं |
••• जब भी कोई हमारे लिए कर्म करता हैं तो वह मुझे ऋणानुबंध के कारण लगता हैं | अच्छे-बुरे कर्म हम अपने ऋणानुबंध के कारण भोगते हैं | और हम किसी के प्रति जो भी अच्छा करते हैं शायद वह भी ऋणानुबंध के कारण ही हो _!!! •••
यदि हम अपने द्वारा किए गए सभी कर्म समर्पित कर सकें तथा मन के सभी भावो को समर्पित कर पाएँ तभी विचारशून्य अवस्था प्राप्त हो सहेगी | तभी ध्यान कर पाएँगे या कहें ध्यान लगेगा | और नियमित ध्यान से जीवन की उषा-संध्या का भेद मिट जाएगा |”
- वंदनीया गुरूमाँ
स्त्रोत - माँ
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