समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान"

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - १ 🌿

दूसरा, हमको ना, गृहस्थों को लगता है कि हमको
ही प्रॉब्लम है, हमको ही समस्या है। साधुओं के क्या तो
मजे चल रहे हैं, संन्यासी क्या मजे करते हैं, उनको कोई तकलीफ नहीं, कोई संसार नहीं, उनको कुछ.. ऐसा नहीं है। 'दूर के ढोल सुहाने।' उनके जाओगे ना, उनके जीवन में झाँकोगे, उनकी तकलीफें जानोगे तो उनको भी तकलीफे हैं, उनको भी परेशानी है। उनकी परेशानियाँ अलग हैं, तुम्हारी परेशानियाँ अलग हैं। जब साधुओं के, संन्यासियों के शिबिर लेता हूँ ना, छोटे-छोटे शिबिर रहते हैं, बीस-बीस लोगों के, दस-दस लोगों के लेकिन हाँ, लंबे-लंबे चलते हैं। छ:-छः घण्टे, आठ-आठ घण्टे शिबिर चलते रहता है। ये साधक लोग भी जलते हैं। “स्वामीजी, आठ-आठ लोगों को आठ-आठ घण्टे लेके बैठते हो?” मैं उनको बोलता हूँ, “वो मेरे लिए आठ सौ- आठ सौ किलोमीटर चलके आते हैं, मैं तुम्हारे पास आठ सौ किलोमीटर चलके जाता हूँ। दोनों में अंतर हैं ना!” तो साधु, संन्यासियों की तकलीफें नहीं हैं, ऐसा नहीं है, परेशानियाँ नहीं हैं, ऐसा नहीं है। (Cont..)

परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

समर्पण ग्रंथ - १५०

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:८७

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - २ 🌿

जब भी ये लोग एकांत में मिलते हैं ना, एक ही प्रश्न रहता है, “स्वामीजी, काम के विचार नहीं समाप्त होते, कामवासना के विचार आते रहते हैं।" ये कॉमन समस्या है, कॉमन प्रॉब्लम है। संन्यास केवल शरीर से नहीं है, चोला बदलने से नहीं होता है। आंतरिक चेंज होना चाहिए,आंतरिक बदलाव होना चाहिए। उनको हर दफे मैं एक ऊँचा उत्तर देता था, “ध्यान करो ध्यान करो, ध्यान करो, ध्यान करो। ध्यान से सब छूट जाएगा।" लेकिन अभी हाल ही में एक मुनि ने मुझे खूब तीव्रता के साथ एक पत्र लिखा। अॅक्चुली मेरा क्या रहता है मालूम है, 'जैसा तेरा गाना  वैसा मेरा बजाना।' तुम्हारा अगर रिसीव्हिंग खूब अच्छा है, खूब अच्छी-अच्छी बातें करूंगा, तुम्हारी रिसीव्हिंग अच्छी नहीं है तो कुछ बाते नहीं करूंगा। क्योंकि तुम्हारे खेचने (खींचने) के ऊपर ही सब निकलता है। वैसे उसका पत्र जो था ना, इतना गंभीरता से लिखा था, उसने अपनी समस्या को , इतने स्ट्राँगली लिखा था कि ऑटोमॅटिकली मेरा उसके कामवासना के विचार के ऊपर चित्त चला गया। क्यों समस्या है, क्यों प्रॉब्लम है? (Cont..)

परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

समर्पण ग्रंथ - १५१

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:८७-८८

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - ३ 🌿

खूब बारकाई (बारीकी) से उसका निरीक्षण किया। उस
मुनि को उत्तर दिया, "तुम सदैव कामवासना पे नियंत्रण
करने की 'कोशिश' करते रहते हो। और कोशिश के बहाने तुम्हारा चित्त चौवीस घण्टे उसी पे रहता है कि मेरे अंदर काम के विचार नहीं जागृत हो, सदैव अलर्ट.. एक। दूसरा, इतना कम खाते हो, इतना कम खाते हो कि तुम्हारे अंदर कोई ऊर्जा ही नहीं बचे कि उसके अंदर काम के कोई विचार आए। कम खाते हैं, एकदम खाना कम। दूसरा, इतना श्रम करते हो, इतना श्रम करते हो कि जितना खाया वो सब हजम हो गया, भूखे व्यक्ति के अंदर थोड़ी कामवासना जागृत होती है?" लेकिन उसको लिखा, "ये सब प्रयत्न से हो रहा है, प्रयास से हो रहा है। यानी तुम जबरदस्ती कर रहे हो, कामवासना है नहीं ऐसा नहीं। उसको दबाने के लिए तैयार हो, अलर्ट हो। लेकिन कहीं पे भी कहीं आठ-दस दिन विश्राम कर लिया, अच्छे मेवे-टेवे खा लिए, रबड़ी-बबड़ी खा ली तो कामवासना जागृत हो जाएगी क्योंकि अंदर वो छुपी हुई बैठी ही है सिर्फ तुमने उसको दबाके रखा हुआ है, कंट्रोल करके रखा है, नियंत्रित करके रखा है(Cont..)

परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

समर्पण ग्रंथ - १५२

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:८८

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - ४ 🌿

लेकिन गयी नहीं है।" दूसरा, तुमको क्या लग रहा है ये कोई जवान मुनि या ऋषि पूछ रहे होंगे? नहीं, ये सब बुढ्ढे लोग पूछते हैं, सत्तर साल, अस्सी साल, आप कल्पना करो। ये बात इसलिए कह रहा हूँ कि ये प्रवचन के माध्यम से मैं उन तक ये पहुँचाना चाहता हूँ - इसका रास्ता क्या है, इसका मार्ग क्या है। क्या होता है मालूम है, आपने सुना होगा कुछ दादाजी का, जो पेशाब करने जाते हैं, जाते जाते ही दो-चार बूंदें कहीं करते-करते चले जाते हैं। माने पेशाब उनसे हो जाती है, उनका कंट्रोल नहीं होता पेशाब के ऊपर। होता है, बुढ़ापे में हमारे मसल्स वीक हो जाते हैं और बाद में हमारा कंट्रोल नहीं रहता है। बिल्कुल ठीक ऐसा-का-ऐसा ही होता है। जब तक जवान रहते हैं ना, ये मुनि या साधु तब तक खूब कंट्रोल कर लेते हैं कामवासना के विचारों पे क्योंकि इनके मसल्स खूब स्ट्राँग रहते हैं। लेकिन जैसे ही बूढे हो जाते हैं, जैसे वीक हो जाते हैं, मसल्स वीक हो जाते हैं, फिर कंट्रोल नहीं रह पाता। (Cont..)

परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

समर्पण ग्रंथ - १५३

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:८९

🌿 समस्या सबकी और उपाय एक ही.. "ध्यान" - ५ 🌿

तो उनको मैंने कहा, "स्वभाव बदल दो। ये जो कहता हूँ ना, ध्यान करो, ध्यान करो, ध्यान करो मतलब क्या? जो आपकी ऊर्जा उठ रही है और जो मूलाधार की तरफ जा रही है, उसी ऊर्जा का स्वभाव अगर आपने अपवर्ड कर दिया, ध्यान करोगे तो क्या होगा? ऊर्जा ऊपर की ओर जाएगी। जैसे ऊपर की ओर जाएगी, जैसे ऊपर की ओर जाएगी तो उसका स्वभाव बन जाएगा। ऊर्जा उठने के बाद में ऊपर ही जाएगी। उसको फिर नियंत्रित करने की आवश्यकता नहीं है, उसको कंट्रोल करने की आवश्यकता नहीं है, वो स्वयं ही कंट्रोल रहेगी क्योंकि उसका प्रेक्टिस अपवर्ड जाने का है, वो डाऊनवर्ड जाएगी नहीं। डाउनवर्ड जाएगी नहीं तो काम के विचार ही नहीं आएँगे।"

परम पूजनीय सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी

समर्पण ग्रंथ - १५४

(समर्पण "शिर्डी" मोक्ष का द्वार है।)  पृष्ठ:८९

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