सात्विक प्रेम

बेटा , ऐसी ही लेकिन थोड़ी अलग एक बात कहना चाहती हूँ । चाय के कप समेटते हुए आई बोली , बेटा , प्रेम , प्यार. . स्नेह . . अनुराग ये हमारे जीवन में बहुत ज्यादा जरूरी है । जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है किंतु सात्विक प्रेम सदैव साथ रहता है । रिश्ते प्रेम और विश्वास पर ही टिके रहते हैं , सांसारिक व्यवहार पर नहीं ! प्यार भक्ति का ही एक रूप है , इसमें गहराई है , याचना नहीं ! ऐसे प्यार की आभा . . . . तेज . . . . मन के अंधेरे कोनों को भी प्रकाशित कर देता है ।  ये प्यार देवघर की समई की तरह होता है । तभी तो बिजली के कितने ही दीप जले हों , पूरा स्थान जगमगाए तब भी प्रणाम तो हम देवघर की समई को ही करते हैं । ऐसा ही सात्विक प्रेम का दीप तुम्हारे  हृदय में है , उसे ही जलाए रखो और उस पर ही चित्त रखो ।

जीवन में निर्मल , सात्विक स्नेह मिलना भाग्यशाली लोगों के नसीब में होता है ! ऐसा तुम्हारी सासू माँ ने कहा ।

माँ - पुष्प -: ३
समर्पण ध्यान योग

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