एक आध्यात्मिक स्तर है जिस स्तर पर मूर्ति, धर्म, कर्मकांड छूट जाते हैं

एक आध्यात्मिक स्तर है जिस स्तर पर मूर्ति, धर्म, कर्मकांड छूट जाते हैं | वहाँ से इन आध्यात्मिक गुरुओं की आत्माओं का क्षेत्र प्रारम्भ हो जाता है और वे स्वयं ही मदद करना प्रारम्भ कर देते हैं | लेकिन जबतक आप किसी मूर्ति से बंधे हो , किसी धर्म से बंधे हो तो आप उनके क्षेत्र में भी नहीं आते है  |
मूर्ति की पूजा कर्मकांड के अंतर्गत ही आती है जो एकदम प्रायमरी ( प्राथमिक) कक्षा का ज्ञान है और प्रायमरी की कक्षा में कभी पी.एच.डी.का शिक्षक नहीं जाता है |    
आत्मज्ञान पी.एच.डी. का ज्ञान है | वहीँ ये सब अधिकारी पुरुष मिलते हैं | मनुष्य धर्म ,मूर्ति ,मंदिर, हवन आदि कर्मकांडों से इतना बंधा हुआ है की इसके बिना केवल चित्त से परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ,इसकी उसे कल्पना ही नहीं है |
'आत्मज्ञान' परमात्मा ने अपने माध्यम से आत्मा पर किया एक 'सुसंस्कार' है | उसी सुसंस्कार के बीज को , साधक को साधनारत रहकर वृक्ष बनाना होता है  | यह सुसंस्कार मनुष्य में धीरे धीरे 'आमूल' परिवर्तन ला देता है |
आत्मज्ञान वह सत्य का ज्ञान है जिसके प्रकाश से जीवन बंधनमुक्त होना प्रारम्भ हो जाता है | और क्या करना उचित है और क्या करना उचित नहीं है , इसका ज्ञान होने लग जाता है | इसे ही 'धर्म' कहते है |  और यह भीतर जागृत हो जाने पर बुरा कर्म आपके हाथों से हो ही नहीं सकता है | 

हि.स.यो. ५/३७४ 

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