मोक्ष भी शरीर की एक भावदशा

मोक्ष भी शरीर की एक भावदशा है | कोई बंधा ही नहीं है तो मुक्तता कैसी ! वास्तव में, बँधा है यह  भ्रम है और भ्रम की स्तिथि से हमे अपने आपको मुक्त करना होता है |--
मोक्ष की स्तिथि ध्यान में प्राप्त हो जाने के बाद लगता है - मैं तो मुक्त ही था | केवल 'मैं ' का अहंकार मुझे भ्रमित कर रहा था की मैं बंधन में हूँ और मुझे मुक्त होना है |
प्रत्येक मनुष्य मुक्त है लेकिन प्रत्येक मनुष्य अपने अहंकार के कारण समझता है - मैं बंधन में हूँ | और यह भ्रम ही जीवनभर बना रहता है | आत्मा कभी बंधन में होती ही नहीं है | केवल एक भ्रम की दशा है और उसी भ्रम की दशा के कारण मनुष्य में शरीर के विकार निर्माण होते हैं और वे विकार मनुष्य की मृत्यु तक बने रहते हैं |

हि.स.यो.5/443  

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