पिण्डदोष

पिण्डदोष यह दोष आया ही कैसे?
पिछले जन्म में जो कुछ भी हुआ उसमें मैंने क्या किया था? कुछ भी तो नहीं! जिसने ऐसा कृत्य किया, दोष उसका था। मैं बेकार ही दोषों का टोकरा सिर पर लेकर जीती रही। गुरू सान्निध्य की इच्छा और दोषों का बोझ ये दो कारण थे जिस कारण मुझे मोक्ष प्राप्ति न हो सकी। काश उस जन्म में मैंने केवल साधना की होती! काश मैंने कोई इच्छा न की होती - मैं मूर्ख थी! मुझे लगा था, गुरू सान्निध्य से मोक्ष प्राप्ति होगी। शायद जानती न थी कि गुरु सान्निध्य मोक्ष मार्ग तक हमें पहुँचाता है, ध्यान साधना करने को प्रेरित करता है किंतु साधना स्वयं करनी होती है, मोक्ष की स्थिती साधना से ही संभव है।
मुझे स्थूल रूप से गुरूदेव से मोह हो गया था, शायद तभी तो साधना करके भी अटक गई, मोक्ष मार्ग पर बढ ना सकी। तो क्या यह जन्म लेने के लिए मैंने ढाई हजार वर्ष इंतजार किया. . . ..पूरे ढाई हजार वर्ष ! ! !
क्योंकी गौतम बुध्ध को हुए ढाई हजार वर्ष तो हो ही चुके होंगे।

*पूज्या गुरूमाँ*
*मूल स्त्रोत : माँ - पुष्प २*
*पृष्ठ क्रमांक २६२-२६३*

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