सामान्यत : जिस व्यक्ति भीतर घाव होते हैं ,वही दूसरों को भी घाव देता है | यानी वह दूसरे को घाव देकर कहीं ,अपने ही घाव को कुरेदता रहता है | यानि अपने प्रति भी वह हिंसक ही है | और जिसके पास घाव है ही नहीं ,वह किसी को घाव कैसे दे सकता है ? क्योंकि कुछ भी दूसरों को देने के लिए प्रथम वह स्वयं तुम्हारे पास तो होना चाहिए |- इसलिए गालियाँ खाया हुआ व्यक्ति ही गालियाँ देते रहता है | गालियाँ एक प्रकार की दुर्भावना है | जो दुर्भावना नहीं रखता,वह गाली नहीं रख सकता है | और दुर्भावना एक अच्छे ,शुद्ध चित्त का प्रतीक नहीं है | जब चित्त दूषित हो तभी मुख से गाली निकल सकती है और उस निकली गाली से कोई आहत हो सकता है |
हि.स.यो.१/३२५
🙏🌹मोक्ष भी शरीर की एक भावदशा है | कोई बंधा ही नहीं है तो मुक्तता कैसी ! वास्तव में, बँधा है यह भ्रम है और भ्रम की स्तिथि से हमे अपने आपको मुक्त करना होता है |--
मोक्ष की स्तिथि ध्यान में प्राप्त हो जाने के बाद लगता है - मैं तो मुक्त ही था | केवल 'मैं ' का अहंकार मुझे भ्रमित कर रहा था की मैं बंधन में हूँ और मुझे मुक्त होना है |
प्रत्येक मनुष्य मुक्त है लेकिन प्रत्येक मनुष्य अपने अहंकार के कारण समझता है - मैं बंधन में हूँ | और यह भ्रम ही जीवनभर बना रहता है | आत्मा कभी बंधन में होती ही नहीं है | केवल एक भ्रम की दशा है और उसी भ्रम की दशा के कारण मनुष्य में शरीर के विकार निर्माण होते हैं और वे विकार मनुष्य की मृत्यु तक बने रहते हैं |🌹🙏
🍃🕊हि.स.यो.5/443 🍃🕊
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