आज से एक निर्णय करो

"आप आज से एक निर्णय करो, किसी की भी बुराई नहीं करोगे और न किसी की बुराई सुनोगे .. क्योंकि दोनों में चित्त गंदा होता है | और न बुरा देखोगे... आप कितना भी ध्यान करो, पर अगर बोलना, सुनना और देखने वाली खिड़कियाँ आपकी खुली हैं, तो आपका चित्त पवित्र नहीं हो सकता | आप आपके चित्त को भीतर ही रखो तो ज्यादा अच्छा होगा और जो लोग आपके चित्त को गंदा करते हैं, ऐसे लोगों से दूर ही रहो | क्योंकि चित्त का खेल साँप-सीढ़ी के खेल जैसा है | चित्त शुद्ध करने में दिन लगते हैं और गंदा होने में एक क्षण ही काफी है |"

*('आत्मेश्वर', बारहवें अनुष्ठान के संदेश, पेज-61)*

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