श्री गुरुशक्तिधाम

और तुझे तेरी ही मूर्ति बनवानी होगी क्योंकि पवित्र आत्माओं का भाव उसी माध्यम के प्रति होगा। इसलिए वही माध्यम बनाना होगा। मूर्तियाँ तेरा ही आधुनिक रूप होंगी। वे तेरे से भी अधिक माध्यम सिद्ध होंगी क्योंकि तेरे दोष भी उन मूर्तियों में नहीं होंगे; वे तेरे शरीर के दोषों से मुक्त होंगी।आजतक किसी ने अपनी मूर्ति बनाकर उनमें अपनी प्राणशक्ति नहीं डाली है। (यानि कि ऐसी मूर्ति जो लोगों को आत्मसाक्षात्कार करा सके।)"
"यह प्रक्रिया भी बड़ी जटिल है। क्योंकि मूर्तियों में शक्तियाँ स्थापित करना आसान है पर *मूर्तियों में शक्तियाँ स्थापित कर मूर्तियों से बाहर निकलना बहुत कठिन कार्य है। क्योंकि धीरे-धीरे शरीर का मोह कम-कम होने लग जाता है और फिर मूर्ति से शरीर में आने की इच्छा ही नहीं होती है। लेकिन अगली मूर्ति के संकल्प के कारण बाहर तो आना ही पडेगा। यह , अगली मूर्ति का संकल्प ही तुझे सदा बाहर आने में मदद करेगा।"*
"मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा करते समय सदैव यही संकल्प करना -जैसे मैंने आत्मज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष रुपी समाधान को प्राप्त हुआ , वैसे ही जो भी मनुष्य इस मूर्ति के दर्शन करे, इसके सान्निध्य में ध्यान करे, उसे आत्मज्ञान प्राप्त हो , वह मनुष्य भी एक आत्मसमाधान को प्राप्त हो और उस मनुष्य को भी मोक्षरुपी समाधान प्राप्त हो। यानि आपना सर्वस्व उन सभी मनुष्यों को मिले जो इसका दर्शन कर प्राप्त करना चाहे। देना तेरे हाथ में है , लेना उस .....


*हिमालय का समर्पण योग ३/१३९*
*॥आत्म देवो भव:॥*

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