कुंडलिनी जागृती

*॥जय बाबा स्वामी॥*
*कुंडलिनी जागृती:*
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सद्गुरु आत्मा को जागृत नहीं करता है पर उसके सान्निध्य में आत्मा जागृत हो सकती है बशर्ते वह आत्मा जागृत होने की इच्छा करे। और अगर इच्छा करती है तो कुंडलिनी जागृत हो सकती है।
और जागृती के बाद वह सभी चक्रों को भेदकर सहस्त्रार चक्र  तक आती है। इसके गर्भ में प्रवेश करते समय जो चक्र ऊर्जा ग्रहण नहीं कर पाए थे , ऐसे चक्र भी जागृती के बाद उस ऊर्जा को ग्रहण करते हैं और मनुष्य के सभी चक्र क्रियान्वित हो जाते हैं। और उन चक्रों पर स्पंदन भी महसूस किए जा सकते हैं।
और इस प्रकार जागृती के बाद अगर साधक प्रतिदिन इसी साधना को दोहराता है तो उसके सभी चक्र सदैव क्रियान्वित रहकर उसकी कार्यक्षमता को बढाते हैं। उसका आत्मग्लानि का भाव दूर होता है। अंत में उसका 'मैं' का अहंकार दूर होता है। सबसे बडा बदलाव -- साधक का उसके चित्त पर नियंत्रण होने लगता है और साधक का चंचल चित्त स्थिर होने लगता है। और चित्त स्थिर होने से मन में पहले जो अनावश्यक , बेकार के विचार आते थे वे आने भी बंद हो जाते है।
*मनुष्य के लिए जागृती प्राप्त करना ही सबकुछ नहीं है। जागृती के बाद उसकी साधना करना भी आवश्यक है।*
मनुष्य अपने एक जन्म में जागृती प्राप्त करता है , दुसरे जन्म में उसकी साधना करता है और तिसरे जन्म में मोक्ष प्राप्त करता है। इस पूरी प्रक्रिया में तीन जन्म लगते है।
*लेकिन पूर्ण समर्पण कर सद्गुरु से जुड़ना ही यह तीन जन्मों की प्रक्रिया से बचने का मार्ग प्रतीत होता है अन्यथा सामान्यतः तीन जन्म लगते ही हैं।*

*हिमालय का समर्पण योग ४/१०3
*॥आत्म देवो भव:॥*

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