स्त्रीशक्त्ति

" स्त्रीशक्त्ति" का सन्मान कर हम स्त्रियों पर उपकार नहीं कर रहे है।
हम 'स्त्रीशक्त्ति' को मजबूत कर मानवसमाज को संतुलित कर रहे है और सन्तुलन किसी भी समाज की प्रगति के लिए आवश्यक है ।
   " इस बात को अनेक संतो ने जाना है  इसलिए अनेक सन्तों ने बार-बार इसके लिए प्रयास किए हैं।और वर्तमान के संत भी यह प्रयास कर ही रहे हैं l
हि. का. स. यो.(1)पेज 52

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी