मोक्ष

मोक्ष ध्यान की वह अवस्था है जो परमात्मा की प्राप्ति के बाद प्राप्त होती है - एक सम्पूर्ण समाधान की अवस्था | 
लेकिन जब तक मोक्ष पाने की लालसा मन में हो मोक्ष नहीं मिल सकता है | क्यूँकि लालसा भी  एक अतृप्ति है और एक अतृप्त आत्मा को सम्पूर्ण समाधान कैसे प्राप्त हो सकता है ?
'मोक्ष ' और 'परमात्मा' दो विषय लगते हैं लेकिन दो विषय नहीं है| जिसे परमात्मा की प्राप्ति हो गई उसे मोक्ष की स्थिति वैसे ही प्राप्त हो जाती है | ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | हाँ , यह निश्चित है की सिक्के का पहला पहलू परमात्मा ही है | परमात्मा की प्राप्ति के बाद एक सम्पूर्ण समाधान मनुष्य को प्राप्त होता है और वह शरीर से सम्पूर्ण मुक्त हो जाता है और उसे ध्यान की वह उच्च अवस्था प्राप्त हो जाती है जिसे 'मोक्ष ' कहते है |
लेकिन जबतक उसे पाने की इच्छा हो,वह प्राप्त नहीं होता है | क्योंकि खोज केवल और केवल शरीर से ही की जाती है ,आत्मा खोज नहीं करता , अपने आप को  समर्पित करता है | 

हि.स.यो.५/३६७  

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी