आत्मा
" प्रत्येक मनुष्य के शरीर के भीतर एक
आत्मा होती है। यूँ समझे कि वह भी
एक न दिखनेवाला छोटा-सा शरीर ही
है। चित्त उस आत्मा की आँख होती है।
आत्मा शरीर से अधिक शक्तिशाली होता
है। इसीलिए आत्मा की शक्त्ति भी शरीर
से अधिक शक्तिशाली होती है।जिस प्रकार
शरीर की आंखें होती है, वैसे आत्मा की
भी आँखे होती है। उसी को चित्त कहते
हैं। यानी चित्त को आत्मा की आँख कह
सकते हैं।"
" यह आत्मा की आँख होने के
कारण यह शरीर की आँखों से अधिक
शक्त्तिशाली होती है। इससे देखने के
लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती
है। यह अंधेरे में भी देख सकती है।
दूसरा, इसकी कोई सीमा नहीं होती है।
यह एक स्थान से हजारों मील दूर का
भी देख सकती है।एक क्षण में देख
सकती है । इसकी बहुत गति होती है।
यह विश्व में सबसे अधिक गति वाली
होती है। यानी चित्त को हम आत्मा की
आँख कह सकते हैं।"
एक न दिखनेवाला छोटा-सा शरीर ही
है। चित्त उस आत्मा की आँख होती है।
आत्मा शरीर से अधिक शक्तिशाली होता
है। इसीलिए आत्मा की शक्त्ति भी शरीर
से अधिक शक्तिशाली होती है।जिस प्रकार
शरीर की आंखें होती है, वैसे आत्मा की
भी आँखे होती है। उसी को चित्त कहते
हैं। यानी चित्त को आत्मा की आँख कह
सकते हैं।"
" यह आत्मा की आँख होने के
कारण यह शरीर की आँखों से अधिक
शक्त्तिशाली होती है। इससे देखने के
लिए प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती
है। यह अंधेरे में भी देख सकती है।
दूसरा, इसकी कोई सीमा नहीं होती है।
यह एक स्थान से हजारों मील दूर का
भी देख सकती है।एक क्षण में देख
सकती है । इसकी बहुत गति होती है।
यह विश्व में सबसे अधिक गति वाली
होती है। यानी चित्त को हम आत्मा की
आँख कह सकते हैं।"
हि. का.स. योग भाग 1
पेज 60/61
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