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Showing posts from 2019

🌺तन , मन और धन का समर्पण🌺

(१) 'तन' का समर्पण* ■ प्रथम समर्पण *'तन'* का होना चाहिए। ••● *'तन' के समर्पण से मेरा आशय है जो भी शरीर को सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं , उसमें खुश रहो। सभी स्थानों पर गुरुसान्निध्य का अनुभव करो।* ••● शरीर को 'आलसी' मत बनाओ। आपका ध्यान लगे या न लगे , ३० मिनट शरीर को स्थिर बैठने की आदत डालो। ध्यान तो छोड़ो , आप तो ३० मिनट ‘स्थिर' भी नहीं बैठ पाते हो। *(२) 'मन' का समर्पण* ■ दूसरा समर्पण है , *'मन'* का समर्पण। ••● *'मन' के समर्पण से मेरा आशय है 'मन' से सदैव गुरुदेव का स्मरण करो और गुरुदेव मेरे साथ हैं , मेरा कभी कुछ बुरा हो नहीं सकता है , यह भाव रखो और कोई भी नकारात्मक विचार मत करो।* ••● दूसरा 'मन' में भूतकाल के और भविष्यकाल के विचार मत करो। किसी का भी बुरा मत सोचो। सभी का कल्याण हो यह भाव ही 'मन' में रखो। *(३) 'धन' का समर्पण* ■ तीसरा है , *'धन'* का समर्पण। ••● *'धन' के समर्पण से मेरा आशय है 'धन' के समाधान से।* गुरुदेव की कृपा में जो भी 'धन' मिला , उसे प्रसाद

Q & A

गुरुदेव आपने सिंगापुर के एक प्रवचन में कहा था के अपने पास के ५ व्यक्ति को देखो । जैसे वह हे वैसे तुम हो । और अगर कोई नकारात्मक या डिप्रेसड हे तो उनसे दूर रहे । चाहे वह हमारे कितने भी क़रीब के यह नीयर अंड डीयर हो । साधकों का प्रश्न हे क्या आप हमको अपने परिवार वालो से भी दूर रेहने को कह रहे हो ? कृपया मार्ग दर्शन कीजिए 🙏🏻😇 शरीर से नही चित्त से दुर रहो जैसे शराबी पती मे पत्नी को चित्त हटाने को कहॉ था

🌺 आज के युवाओं की समस्याएँ एवं उनका निदान 🌺

••● आज के युवा वर्ग पर ही बढ़ते हुए 'बुद्धि का विकास' का प्रभाव पड़ रहा है। बिना भाव के विकास तो केवल बुद्धि का विकास होगा। ••● यह तो बिना नींव के बने बिल्डिंग जैसा होगा। या समझ लो - पत्तों से बना बंगला होगा जो एक हवा के झोंके से भी गिर सकता है। ••● *आज के युवा वर्ग को संतुलन की अत्यंत आवश्यकता है। आप अगर युवा हैं तो आपको अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।* विशेष रूप से २० साल से ३५ साल के बीच में हो। ••● *बुद्धि के अति विकास से आपके पास 'गति' आ गई है पर 'नियंत्रण' नहीं है। यही कारण है , युवा वर्ग के हाथ से 'दुर्घटनाएँ' अधिक हो रही हैं। टेक्नॉलोजी भी गति को महत्त्व दे रही है , 'नियंत्रण' को नहीं।* कहते हैं न , “एक तो करेला , ऊपर से नीमचढ़ा।" ••● हमारे शरीर में भी दो प्रकार की शक्तियाँ होती हैं। एक जो *गति* देती है , एक जो *नियंत्रण* रखती है। ••● *दोनों शक्तियों का संतुलन ही जीवन को सफल बनाता है। यह संतुलन करने का कार्य ही 'समर्पण ध्यान' में हो जाता है।* ••● आप यह भी कह सकते हो कि *समर्पण ध्यान 'लाईफ का मैनेजमेंट' (जीवनप्रब

पूज्य स्वामीजी का युवाओंं को संदेश। क्या होगा अगर युवा मोक्ष का लक्ष्य लेकर जीवन यापन करते है ? जानिए

अब कई बार कई युवकोंं के मन में , कई युवतियों के मन में प्रश्न आता होगा -- क्या स्वामीजी मोक्ष, मोक्ष करते रहते है? लेकिन वास्तव में आप देखो ना , अगर मोक्ष का लक्ष्य लेकर के आप जीवन यापन करते हो तो क्या-क्या चेंज , क्या-क्या बदलाव आपके जीवन में आ सकते हैं बताता हूँ। बहुत सारी समस्याओंं से आप मुक्त हो सकते हो। पहला ये कि जब आपके पास मोक्ष का लक्ष्य होगा , तो प्रथम ये कि आप नियमित ध्यान करोगे। नियमित ध्यान करोगे तो क्या होगा ? ध्यान करते-करते , करते-करते आपके अंदर शरीर का भाव कम हो जाएगा। शरीर का भाव कम हो जाएगा तो आत्मा का भाव बढ़ जाएगा और आत्मा का भाव बढ़ जाएगा तो कई फायदे हैं। एक तो मन की एकाग्रता बढेगी जो आपके व्यवसाय में , आपके नौकरी में आपके काम आ सकती हैं। दूसरा , आपकी गुणग्राहकता बढेगी। गुणग्राहकता याने रिसिविंग, आपके ग्रहण करने की क्षमता। अगर कोई चार घंटे में ग्रहण करता है , आप दो घंटे में करोगे। तो आपकी गुणग्राहकता बढेगी। ग्रहण करने की क्षमता बढेगी। तिसरा , आप स्वस्थ रहोगे, तंदुरुस्त रहोगे। और चौथा , आपका जीवन दुर्घटनारहित रहेगा। जब आप ध्यान करोगे , मेडीटेशन्स करोगे तो आपके प

🌺आत्मिक उन्नति🌺

••● अभी हाल के प्रचारक-शिविर में जो प्रचारक आए थे , उन्होंने सिर्फ आत्मिक उन्नति माँगी , बस और कुछ नहीं। ••● उन्होंने इसमें सबकुछ माँग लिया। क्योंकि यही एक उन्नति है जो गुरु ही दे सकता है। बाकी जीवन की सभी उन्नति तो वे स्वयं ही कर सकते हैं। ••● ऐसा नहीं है कि उनके जीवन में कोई समस्या नहीं थी। समस्या थी , लेकिन उन्हें यह पूर्ण विश्वास था . . . ••● यह गुरुचरण वह स्थान है जो शाश्वत प्रेमशक्ति का स्रोत है। यहाँ वह माँगा जाए , जो शाश्वत है। ••● वह है आत्मिक प्रगति , और एक बार आत्मिक प्रगति जिसकी हो जाए , फिर उसे जीवन में कुछ माँगने के लिए रह ही नहीं जाता है। ••● क्योंकि फिर गुरु की शक्ति से संबंध आत्मिक रूप से स्थापित होने के बाद अपने जीवन की सभी समस्याओं को दूर करने की शक्ति साधक में स्वयं आ जाती है। ••● इसलिए . . आज मैं बहुत खुश हूँ। आज वास्तव में मुझे वे साधक मिल गए , जिनकी खोज ही मेरे जीवन का लक्ष्य था। 🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹 मधुचैतन्य २००२ जुलाई, अगस्त, सितंबर

चैतन्य धारा

हर साल अपना निरीक्षण करो की मेरे आत्मा का क्या प्रोग्रेस हुआ है । और धीरे धीरे सब एटेचमेंट कम करो ।    ध्यान में कितनी भी अच्छी स्थिति मिली हो तो वो स्थाई नही हैं । आस पास के विचारों का , आस पास के वातावरण का हमारे ऊपर प्रभाव पड़ता ही हैं । तो चित्त दूषित होगा ही । चित्त रूपी ग्लास को रोज़ घीसो । याने   "'30 मीनट रोज़ ध्यान "'  ही एक रास्ता हैं ।....... रोज़ का कचरा रोज़ निकालो । *4/3/2019* *के संदेश से*                  

प्रचार

प्रचार अपने भीतर से, जैसे सूरज की किरण निकलती है ना, वैसे अपने भीतर से प्रचार निकलना चाहिए। किसी से भी मिलो, आप बस वह बोर हो जाए ऐसा प्रचार मत करना। नहीं तो वह बोलेंगे कि सूरज का ताप बहुत तेज है। हम हजार लोगों को कहेंगे तो दो-चार तो सुनेंगे ही। मधुचैतन्य तो एक पत्रिका है। क्या हम इस पत्रिका को सामान्य व्यक्ति तक पहुंचा नहीं सकते ? जरूरी थोड़ी है कि हम साधक तक ही पहुंचाएं । हम उसे सामान्य लोग तक भी पहुंचा सकते हैं। जो मधुचैतन्य हमारे पास होते हैं, हम लोगों ने पढ़ा  हमारा हो गया। तो जब हम प्रचार के लिए जाते है , प्रसार शिबिर लगाते हैं उस समय उसका उपयोग किया जा सकता है। चाहे तो आप लोग उसका उपयोग प्रचार के लिए भी कर सकते हैं। तो मधुचैतन्य एक अच्छा प्रचार का साधन है । 🌹🌹पूज्या गुरुमां 🌹🌹 स्नेह सम्मेलन  12आक्टोबर से 19आक्टोबर 2019 समर्पण आश्रम दांडी।

Q & A

प्रश्नः गुरुदेव के चरणों में चरण स्पर्श। हमने ऐसा पढा हैं कि गौतम बुद्ध जब ध्यान कराते थे, तो अपने साधकोंं को पिछले जन्म का दर्शन कराते थे, ताकि उनका पूरा मोह छूट जाता था और ध्यान में प्रगती करते थे। आपने जैन मुनियों को शरीर छोडके ध्यान करना सिखया हैं, ऐसा संयोग साधकोंं को मिल सकता हैं क्या? साधकों को क्या साधना करनी पडेगी, ताकि आप ये संयोग साधकों को भी करा पाएँँ । *स्वामीजी:* नहीं, इसमें क्या रहता हैं कि थोडी ना उनके जैसी स्थिती लाओ ना, उनकी जैसी स्थिती लाओ...मैं आपको ऐग्झाम्प्ल (उदाहरण )देता हूँ। अभी पैंतालीस दिन का अनुष्ठान हुआ ना.., तो अनुष्ठान में एक जैन साधू ने गुरुमाँ से क्या माँगा होगा आप कल्पना नहीं कर सकते। उसने गुरुमाँ से ये माँगा कि कुटिर कि धूल ला के मेरेको दो कि वो लेके मैं साथ में जाऊँँगा। स्वामीजी मेरे साथ हैं, ऐसा मैं महसूस करता हूँ। तो कुटिर में वो जो धूल पडी हैं ना, वो झाडू से साफ करके मेरे को एक डब्बि में भरके ला दो। ये गुरुमाँ से माँगा, जैन मुनि ने। तो गुरुचरण कि धुल मेरे पास रहेगी, तो मैं महसूस करूँगा कि स्वामीजी मेरे साथ में हैं। दुसरा थोडा ना, उनसे कंपेरिज़न मत

निर्विचार स्थिति पाने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं

*मधुचैतन्य जनवरी २०१५ पृष्ठ:५* जैन मुनि शिबिर , दांडी , *पूज्य स्वामीजी ---* निर्विचार स्थिति पाने के लिए गुरु की आवश्यकता नहीं है। पर ध्यान में गुरु से सिर्फ ज्ञान नहीं , संस्कार भी संक्रमित होते है , जो निर्विचार स्थिति के अनेकविध उपाययोंं से भी संभव नहीं है॥

सद्गुरु का सान्निध्य

••● *जैसी तुम्हारी इच्छा होगी , जैसी तुम्हारी स्थिति होगी , उसी के अनुसार आपको सद्गुरु का सान्निध्य प्राप्त होगा।* ••● कई लोग मोक्ष की अभिलाषा लेकर इस मार्ग में आते हैं। उनकी तीव्र इच्छा-शक्ति , ध्यान साधना के मार्ग से उनको मोक्ष तक पहुँचा देती है। ••● परंतु *कुछ साधकों को मोक्ष से अतिरिक्त सद्गुरु का सान्निध्य अधिक प्रिय है।* ••● वे मोक्ष को ठुकराकर भी वापस आ जाते हैं। ••● अर्थात् *गुरु का सान्निध्य हो तो मोक्ष आपका निश्चित ही है। आप कभी भी मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।* ••● *सद्गुरु का सान्निध्य महत्त्वपूर्ण है , मोक्ष महत्त्वपूर्ण नहीं है। मोक्ष तो बाई प्रॉडक्ट (है) , आपको ऐसे ही मिल जाएगा।* ••● *उसी कारण मैं भी उस शून्य की अवस्था को पाकर वापस आया हूँ।* ••● उस शून्य की अवस्था पर पहुँचने के बाद सिर्फ उसी इच्छा से वापस लौटकर आया हूँ कि . . . ••● मैं अकेला जाना नहीं चाहता था। *जिनको मैंने सत्य के मार्ग का आश्वासन दिया था , उनको रास्ता दिखाना मेरी मजबूरी थी।* *🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹* *महाशिवरात्रि - २००४* मधुचैतन्य (पृष्ठ : १८) जनवरी, फरवरी, मार्च - २००४

Q & A

प्रश्न:पूज्य स्वामीजी , अगर कोई स्त्री सगर्भा (गर्भवती) हो , तो उनका आनेवाला बच्चा आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली बने इसके लिए वह गर्भवती स्त्री को क्या सूचनाएँँ देना चाहिए? *स्वामीजी :* उसने भी ध्यान करना चाहिए , उसने भी मेडिटेशन्स करना चाहिए। जितना ध्यान करेगी , जितना मेडिटेशन्स करेगी , तो ऑटोमेटिकली एक अच्छे संस्कार , एक अच्छे एनर्जी के संस्कार , अच्छे सकारात्मक संस्कार वो गर्भ पे ऑटोमेटिकली होते चले जाएँगे। तो उसके लिए कुछ करने की , कुछ बताने की आवशकता नहीं है , ध्यान करने की आवशकता है और अपनी अच्छी स्थिति बनाए रखने की आवशकता है। और आसपास,  बहुत कठिन है , हँँ , अच्छी स्थिति बनाके रखना। क्योंकि क्या होता है मालूम है , आपके आसपास इतने आपके चित्त को दूषित करनेवाले लोग मिलते हैं , जो न चाहते हुए भी बेकार में आपका अटेन्शन (चित्त) उस तरफ लेकर जाएँगे कि आपका चित्त खराब हो। ऐसे वातावरण रहा तो भी अपने चित्त को नियंत्रित करो और अच्छे कार्य के अंदर एकाग्र करो और चित्त को भीतर की ओर रखो। बाहर जाएगा ही नहीं , बाहर गया तो भटकने का चान्सेस (शक्यता) है। तो एक अच्छे संस्कार ऑटोमेटिकली वो गर्भ पर होना

शिव का दूसरा नाम है सत्य

◆ शिव का दूसरा नाम है सत्य। - तो सत्य किसी जाति विशेष में , सत्य किसी समाज में , सत्य किसी देश में , सत्य किसी भाषा में अलग-अलग नहीं होता। ◆ सत्य , सत्य होता है। वह एक-सा रहता है , एक जैसा रहता है। ◆ कही पे भी जाएँगे , उसका स्वरूप एक होगा। तो सत्य वह अनुभूति है , परमेश्वर की वह अनुभूति जिस अनुभूति के आधार पे विश्व के कई देश की आत्माएँ एक दूसरे के साथ जुडी हुई है। ◆ विदेश में अलग अनुभूति , यहाँ पे अलग अनुभूति , ऐसा नहीं है। अनुभूति समान है , एक जैसी है। क्योंकि अनुभूति सत्य है। *🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹* *महाशिवरात्रि - २०१२* मधुचैतन्य (पृष्ठ : २२) अप्रैल, मई , जून - २०१२

।। श्री गणपति अथर्वशीर्ष ।।

ॐ नमस्ते गणपतये। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।। त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि। त्वमेव केवलं धर्तासि।। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि। त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।। त्वं साक्षादत्मासि नित्यम्। ऋतं वच्मि।। सत्यं वच्मि।। अव त्वं मां।। अव वक्तारं।। अव श्रोतारं। अवदातारं।। अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।। अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।। अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।। अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।। सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।3।। त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय। त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।। त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि। त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4। सर्व जगदि‍दं त्वत्तो जायते। सर्व जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति। सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।। सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।। त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।। त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।5।। त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:। त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:। त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं। त्वं शक्ति त्रयात्मक:।। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्। त्वं शक्तित्रयात्मक:।। त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं। त्वं ब्रह्मा त्वं