🌺तन , मन और धन का समर्पण🌺
(१) 'तन' का समर्पण* ■ प्रथम समर्पण *'तन'* का होना चाहिए। ••● *'तन' के समर्पण से मेरा आशय है जो भी शरीर को सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं , उसमें खुश रहो। सभी स्थानों पर गुरुसान्निध्य का अनुभव करो।* ••● शरीर को 'आलसी' मत बनाओ। आपका ध्यान लगे या न लगे , ३० मिनट शरीर को स्थिर बैठने की आदत डालो। ध्यान तो छोड़ो , आप तो ३० मिनट ‘स्थिर' भी नहीं बैठ पाते हो। *(२) 'मन' का समर्पण* ■ दूसरा समर्पण है , *'मन'* का समर्पण। ••● *'मन' के समर्पण से मेरा आशय है 'मन' से सदैव गुरुदेव का स्मरण करो और गुरुदेव मेरे साथ हैं , मेरा कभी कुछ बुरा हो नहीं सकता है , यह भाव रखो और कोई भी नकारात्मक विचार मत करो।* ••● दूसरा 'मन' में भूतकाल के और भविष्यकाल के विचार मत करो। किसी का भी बुरा मत सोचो। सभी का कल्याण हो यह भाव ही 'मन' में रखो। *(३) 'धन' का समर्पण* ■ तीसरा है , *'धन'* का समर्पण। ••● *'धन' के समर्पण से मेरा आशय है 'धन' के समाधान से।* गुरुदेव की कृपा में जो भी 'धन' मिला , उसे प्रसाद