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••● कई वर्ष पहले चांदा गाँव में महेश नामक एक गृहस्थ अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी पत्नी सती सात्विक स्वभाव की महिला थी। बेटा गणेश पढ़ने-लिखने में बद्धिमान था तथा बेटी संतोषी हँसमुख थी।
••● बारहवीं तक गाँव के विद्यालय में पढ़कर गणेश शहर में विद्यार्जन करने लगा। बुद्धिमान होने कारण गणेश ने उच्च शिक्षा प्राप्त की। शहर में ही उसे अच्छी नौकरी भी लग गई तथा विवाह कर पत्नी-बच्चों के साथ शहर में रहने लगा।
••● पिता खेती तथा गाँव छोड़कर शहर में रहना नहीं चाहते थे। इसलिए वे पत्नी तथा बेटी के साथ गाँव ही में रहते थे। संतोषी विवाह योग्य हो गई थी तथा उसका विवाह तय हो गया , तब उसके विवाह की तैयारियों करने में सारा परिवार जुट गया। विवाह के वस्त्र-आभूषण इत्यादि वस्तुएँ गणेश तथा उसकी पत्नी शहर से ले आए। जो भी सामान शहर से लाना होता , महेश पत्र द्वारा सूचित करता। गणेश सूची के अनुसार सामान ले आते। अब विवाह की तिथि नजदीक थी। महेश ने कुछ आवश्यक सामान की सूची पत्र द्वारा गणेश को भिजवाई।
••● गणेश ने सूची पढ़ी तथा पत्र के साथ सूची वहीं मेज पर रखी तथा दफ्तर चला गया। गणेश का बेटा गोलू खेलते-खेलते मेज पर चढ़ा तो उसे वह सूची वाला कागज दिखा। उसे लगा कि बेकार कागज है , इसलिए उसे मोड़कर उसकी नाव बनाई और एक बर्तन में पानी भरकर नाव से खेलने लगा।
••● शाम को जब गणेश दफ्तर से लौटा तो सामान की सूची खोजने लगा। सारे घर में खोजा, सूची नहीं मिली। अंत में उसे कागज की नाव दिखी। उसने वह कागज सुखाया तथा उसे (सामान की सूची को) डायरी में लिखा और वह कागज फिर से बच्चे को दे दिया। फिर सामान खरीदकर गाँव पहुंचा दिया।
••● उस सूची वाले पत्र के लिए गणेश कितना परेशान हुआ। पत्नी पर क्रोध किया , बेटे को थप्पड़ मारा। किंतु सूची मिलने पर वह सूची डायरी में लिखने पर वही पत्र महत्वहीन हो गया। इसीलिए गोलू को खेलने के लिए दे दिया।
••● ठीक इसी प्रकार धर्मग्रंथों का स्थान हमारे जीवन में है।
••● ये ग्रंथ हमें जीवन का सत्यदर्शन कराते हैं - जीवन का अंतिम लक्ष्य बताते हैं।
••● जीवन में जीवंत सदगुरु मिल जाए तथा ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर हम अग्रसर हो जाएँ , तब वही ग्रंथ हमें उतने महत्त्वपूर्ण नहीं लगते क्योंकि धर्मग्रंथों का उद्देश्य ही मानव-मन में सत्यधर्म-सत्यमार्ग के प्रति रुचि जागृत करता है।
••● स्वामी रामकृष्ण परमहंसजी ने कहा है . . .
सत्य समझने पर , मार्ग जानने पर भी धर्मग्रंथों में उलझने के स्थान पर सत्यमार्ग पर अग्रसर होना चाहिए।
🌹परम वंदनीय गुरुमाँ🌹
मधुचैतन्य (पृष्ठ : ५)
जुलाई, अगस्त, सितंबर - २००६
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