Q & A

प्रश्नः गुरुदेव के चरणों में चरण स्पर्श। हमने ऐसा पढा हैं कि गौतम बुद्ध जब ध्यान कराते थे, तो अपने साधकोंं को पिछले जन्म का दर्शन कराते थे, ताकि उनका पूरा मोह छूट जाता था और ध्यान में प्रगती करते थे। आपने जैन मुनियों को शरीर छोडके ध्यान करना सिखया हैं, ऐसा संयोग साधकोंं को मिल सकता हैं क्या? साधकों को क्या साधना करनी पडेगी, ताकि आप ये संयोग साधकों को भी करा पाएँँ ।

*स्वामीजी:* नहीं, इसमें क्या रहता हैं कि थोडी ना उनके जैसी स्थिती लाओ ना, उनकी जैसी स्थिती लाओ...मैं आपको ऐग्झाम्प्ल (उदाहरण )देता हूँ। अभी पैंतालीस दिन का अनुष्ठान हुआ ना.., तो अनुष्ठान में एक जैन साधू ने गुरुमाँ से क्या माँगा होगा आप कल्पना नहीं कर सकते। उसने गुरुमाँ से ये माँगा कि कुटिर कि धूल ला के मेरेको दो कि वो लेके मैं साथ में जाऊँँगा। स्वामीजी मेरे साथ हैं, ऐसा मैं महसूस करता हूँ। तो कुटिर में वो जो धूल पडी हैं ना, वो झाडू से साफ करके मेरे को एक डब्बि में भरके ला दो। ये गुरुमाँ से माँगा, जैन मुनि ने। तो गुरुचरण कि धुल मेरे पास रहेगी, तो मैं महसूस करूँगा कि स्वामीजी मेरे साथ में हैं। दुसरा थोडा ना, उनसे कंपेरिज़न मत करो। मैं पाँचसौ किलोमीटर चलके तुम्हारे पास आता हूँ और वो पाँचसौ किलोमीटर चलके मेरे पास आते हैं। इसमें थोडा अंतर हैं ना। रिसिविन्ग (ग्रहणशीलता)में फर्क पडेगा ही...समझ में आया? मैं पाँचसौ किलोमीटर चलके तुम्हारे पास आता हूँ और वो मेरे पास पाँचसौ किलोमीटर आते हैं ...चलके।  तो वो अंतर नहीं हैं क्या?

मधुचैतन्य: मा.अ. २०१७/५५

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