विशाल विश्व में एक मनुष्य का क्या अस्तित्व
हैसियत का पता मनुष्य को शरीर में रहते हुए नहीं हो सकता है। इतने विशाल विश्व में एक मनुष्य का क्या अस्तित्व है ? कुछ भी तो नहीं। पर यह बात शरीर में रहते हुए जानी नहीं जा सकती है। एक छोटे - से , नन्हें से शरीर को ही पकड़कर सारा जीवन मनुष्य गवाँ देता है। गुरुलोक से बड़े गौर से गुरुशक्तियाँ देखती रहती हैं - कौन ध्यान कर रहा है? और किसका कितना ध्यान लग रहा है ? मनुष्य को केवल दो ही कार्य करने चाहिए - एक तो अच्छे कार्य करने की इच्छा करना और दूसरा , ध्यान कर अपने अस्तित्व को ब्रह्मांड में विलीन करना। इस विलीन करने की प्रक्रिया में मनुष्य का अहंकार सबसे आखिर में विलीन होता है ।
अहंकार विलीन होने के बाद मनुष्य कार्य करता नहीं , मनुष्य के हाथों से कार्य हो जाते हैं । मनुष्य को सद्गुरु का सान्निध्य कितना मिला , उसका कोई मायना नहीं है। मायना है , उसने उसे कितना समझा , कितना माना , कितना ग्रहण किया , कितना अनुभव किया। क्योंकि सद्गुरु तो अनुभव करने की चीज है। सद्गुरु का सान्निध्य तो उस आत्मा को उसके किए गए पुण्यकमों के कारण मिलता है। उसके पुण्यकर्म समाप्त हो जाने पर सान्निध्य समाप्त हो जाएगा। मनुष्य के लिए सबसे पहले अपने -आप को जानना आवश्यक है।मनुष्य अगर अपने जीवनकाल में अपने-आपको जान लेगा तो वह यह भी जान लेगा कि इस विश्व में उसकी हैसियत क्या है। और जब वह यह जान लेगा कि एक छोटे कीटक से अधिक उसकी कोई हैसियत नहीं है , तो फिर अपने - आप पर अहंकार करना छोड़ देगा। और अहंकार छोड़ देगा तो उसका समर्पण गुरुशक्तियों के प्रति होगा। जिस प्रकार बीज के टूटे बिना अंकुर निकलना असंभव है , ठीक उसी प्रकार मनुष्य का अहंकार टूटे बिना आत्मज्ञान संभव नहीं है ।
हिमालय का समर्पण योग - भाग १ -: ३६०
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