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(१) 'तन' का समर्पण*

■ प्रथम समर्पण *'तन'* का होना चाहिए।

••● *'तन' के समर्पण से मेरा आशय है जो भी शरीर को सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं , उसमें खुश रहो। सभी स्थानों पर गुरुसान्निध्य का अनुभव करो।*

••● शरीर को 'आलसी' मत बनाओ। आपका ध्यान लगे या न लगे , ३० मिनट शरीर को स्थिर बैठने की आदत डालो। ध्यान तो छोड़ो , आप तो ३० मिनट ‘स्थिर' भी नहीं बैठ पाते हो।

*(२) 'मन' का समर्पण*

■ दूसरा समर्पण है , *'मन'* का समर्पण।

••● *'मन' के समर्पण से मेरा आशय है 'मन' से सदैव गुरुदेव का स्मरण करो और गुरुदेव मेरे साथ हैं , मेरा कभी कुछ बुरा हो नहीं सकता है , यह भाव रखो और कोई भी नकारात्मक विचार मत करो।*

••● दूसरा 'मन' में भूतकाल के और भविष्यकाल के विचार मत करो। किसी का भी बुरा मत सोचो। सभी का कल्याण हो यह भाव ही 'मन' में रखो।

*(३) 'धन' का समर्पण*

■ तीसरा है , *'धन'* का समर्पण।

••● *'धन' के समर्पण से मेरा आशय है 'धन' के समाधान से।* गुरुदेव की कृपा में जो भी 'धन' मिला , उसे प्रसाद समझकर ग्रहण कर लो। 'धन' के पीछे मत दौड़ो।

••● *'धन' का दान करो। 'दान' मोक्ष का द्वार है।*

••● बस वह दान केवल दान हो। दान किसी भी प्रकार का इन्वेस्टमेंट (निवेश) नहीं होना चाहिए। यानी मैं १०० रु. दान दूँगा , तो परमात्मा मुझे १ लाख देगा , यह भाव से दान मत करो।

••● *किसी भी 'अपेक्षा' के साथ दान मत करो। मैंने दान किया यह दिखाकर दान मत करो।* अन्यथा यह आपके 'कर्म' खाते में पुण्य कर्म के रूप में जमा हो जाएगा और वह पुण्य कर्म भोगने आपको फिर नया जन्म लेना होगा। इसीलिए *'गुप्तदान'* को महत्व दिया गया है।

••● *दान हमें केवल हमारी जीवन भर पाने की आदत को 'ब्रेक' देने के लिए ही देना चाहिए।* अब जो मनुष्य जीवन भर पाने की ही दौड़ में लगा हो , वह एकदम तो देने की दिशा में दौड़ नहीं सकता। 'दान' केवल पाने की दौड़ पर एक ब्रेक-सा (लगाम) है।

*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
दिनांक : १३/२/२०१८

*।। आत्मेश्वर ।।*
(पृष्ठ : ८३,८४)

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