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*सभी पुण्यात्माओं को मेरा नमस्कार . . .*

[ मैं कुछ दिन एकांत में रहकर जब ध्यान करता था , तब एक कुत्ता आकर सदैव सामने बैठता था। और आठ दिनों में उसने और पाँच कुत्ते भी लाना चालू किया। याने आठ दिन में साधक , आचार्य , सेंटर सब कुत्तों का हो गया। उन्हीं के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश जो याद रहे , वह इस प्रकार से हैं। ]

••◆ "देख , तू मेरे पास क्यों आकर बैठता है यह मुझे मालूम है। तू जो पाने के लिए आकर बैठता है , वह मैं तुझे दूंगा नहीं क्योंकि तेरी जाति का मेरा अनुभव यह कह रहा है - तुम्हारे जाति में सब नहीं है। सब कुछ बड़े जल्दी प्राप्त करना चाहते हो। यह आत्मज्ञान-प्राप्ति का सही तरीका नहीं है।"

••◆ तुम लोग आत्मज्ञान प्राप्त होने के बाद तुरंत जान जाते हो कि *मोक्ष-प्राप्ति के लिए मानव-शरीर की आवश्यकता है। क्योंकि मानव-शरीर की संरचना ऐसी है कि वह मोक्ष की शुद्ध इच्छा कर सकता है। यह सही भी है।*

••◆ लेकिन तू यह क्यों नहीं समझता कि मानव-शरीर के साथ अतिविचार करने का दोष भी जुड़ा हुआ होता है। और यह अतिविचार मानव पर इतने हावी हो जाते हैं कि वह उसे कभी वर्तमान में रहने ही नहीं देते और मोक्ष-प्राप्ति का मार्ग वर्तमान में रहकर होता है।

••◆ मानव योनि में जन्म लेने के पूर्व तू इन सब बातों को जान लें , समझ लें , सब समझ कर परिपक्वता के साथ मानव-जन्म ले। क्योंकि एक बार मानव-जन्म लिया तो इन सब बातों की ओर ध्यान देने को तुझे जीवन में समय ही नहीं मिलेगा।

••◆ इसलिए इस कुत्ते की योनि को छोड़ने की जल्दी मत कर . . . तुम लोग , जैसे ही आत्मज्ञान प्राप्त हुआ , तुम लोग आत्मघात कर लेते हो। अरे बाबा ! इस कुत्ते की योनि में तेरे जो अभी तीन साल बाकी हैं , वह तीन साल के कर्म भोगने के लिए तू फिर कुत्ते का जन्म लेगा। और उससे अच्छा है , तू तीन साल बचा हुआ तेरा जीवनकाल इसी योनि में पूर्ण कर और जब नैसर्गिक मृत्यु आएं , तब इस कुत्ते के शरीर को छोड़ मनुष्य के शरीर में जन्म ले।

••◆ लेकिन इस जन्म में जो आत्मज्ञान प्राप्त किया है , उसे संभालकर रख। यह मनुष्य होने के बाद बहुत काम आएगा क्योंकि अतिविचारों के कारण मनुष्य योनि में आत्मज्ञान प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।

••◆ और यह कुत्ते की योनि का भौंकने का स्वभाव यहीं छोड़कर आना , अन्यथा यह भौंकने के स्वभाव को मानव-योनि मिलने पर बहुत तीव्रता आ जाएगी।

••◆ अभी तीन साल तेरे इस शरीर के भोग बाकी हैं। वह सब भोग ले , कोई इच्छा बाकी मत रख। सब सुख इसी योनि में भोग ले ताकि अगले जन्म में किसी भोग की तरफ तुम्हारा चित्त न रहे और तू एक समाधान को प्राप्त हो। *मुझे मालूम है , इस स्थान पर तू सालों से मेरी राह देख रहा है। तूने इसी स्थान पर अलग-अलग योनियों में जन्म लिए , आज तेरी यह तपश्चर्या पूर्ण हो गई है।*

••◆ “स्वामीजी , मैंने आपको मछली का प्रसाद दिखाया। आपको अच्छा नहीं लगा होगा। मुझे मालूम है , आप मछली नहीं खाते। लेकिन मेर पास भोग चढ़ाने के लिए और कुछ नहीं , यह में मेरी भेंट स्वीकार करें। मेरी इच्छा . . आप सर्वांग पर हाथ फेरें और मुझे आशीर्वाद दे।"

••◆ मैं अपने आपको पूर्ण समर्पित करता हूँ। मेरी जीने की इच्छा भी नहीं रही है , लेकिन आपकी आशा है , तो मैं और तीन साल और निकालूँगा और *स्वामीजी , आप मुझे आशीर्वाद दें . . मैं अगले जन्म में किसी साधिका के गर्भ से जन्म लूँ ताकि गर्भ से ही मुझे अच्छे संस्कार , अच्छा सान्निध्य मिल सके।*

••◆ “स्वामीजी , आपने उस दिन मुझे अन्य कुत्तों से लड़ने के लिए मना किया था। लेकिन क्या करूँ , कुत्ता हूँ ना , यह मैं भूल जाता हूँ। मैं किसी के इलाके में नहीं जाता , लेकिन मेरे इलाके में कोई आए , मुझे पसंद नहीं। ऐसे खराब कुत्ते जब मेरे इलाके में आते हैं , तो मुझे कुत्ता कर डालते हैं। कुत्तों की सामूहिकता में मैं भी कुत्ता बन जाता हूँ। मेरे अंदर का कुत्ता जाग जाता है। क्या करूँ ? आप आशीर्वाद दें - यह कुत्ते मेरे आसपास न आएँ। ताकि *मैं एकांत मैं ध्यान-साधना कर सकूँ।* स्वामीजी , यहाँ के कुत्ते सचमुच कुत्ते हैं , बड़े खराब हैं।"

••◆ ”मैंने कहा ,“ देख . .
तू अभी कुत्तों पर चित्त डाल , तो तू अगले जनम में भी कुत्ता ही होगा। सदैव अपना चित्त अच्छी जगह होना चाहिए ताकि जीवन में हम सदैव अच्छा ग्रहण करते हैं।

••◆ *तुम्हारी कुत्तों की जाति की समानता हमारे गुरुओं से एक बाबत में महसूस होती है।*

••◆ *जिस प्रकार तुम प्रत्येक व्यक्ति को प्रेम देते रहते हो , चाहे वह व्यक्ति तुमसे प्रेम करे या न करे* , कोई एक बार प्रेम से तुम्हारे सामने रोटी का तुकड़ा (टुकड़ा) डालते हो , तू सदैव उसके सामने ही पूँछ हिलाते रहते हो। *हम गुरुओं का भी कुछ ऐसा ही है। कोई व्यक्ति सामूहिकता के प्रभाव के कारण जीवन में कभी एक बार एक कदम चलता है , हम सदैव उसकी ओर १०० कदम चलते हैं। भले ही बाद में वो ग्रहण करे या ना करे , हम लोग उस साधक को देते ही रहते हैं।*

••◆ *इसी समान स्वभाव के कारण सद्गुरुओं के पास कुत्ते सदैव रहते ही हैं। क्योंकि आप लोगों को और हम गुरुओं को व्यवहार-ज्ञान नहीं होता , सिर्फ देना ही जानते हैं। और धीरे-धीरे देना स्वभाव ही बन जाता है ! ! !*

*🌹परम पूज्य स्वामीजी🌹*

मधुचैतन्य (पृष्ठ : ३०)
जुलाई, अगस्त, सितंबर - २००५

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