भीतर की यात्रा

"भगवान तो विभिन्न है, सद्गुरु भी निमित्य है, वास्तव में मनुष्य भगवान की या गुरू की  आराधना  करके, भीतर की यात्रा पर जाता है,उस से 2 फायदे होते हैं। एक तो बुरे भावों., बुरे विचारों की., भारी धूल और कचरे से, बचा रहता है  दूसरा अपने भीतर की यात्रा करने से, अपने आप को पहचानने का अवसर मिलता है। ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति मनुष्य है। इसलिए मनुष्य के भीतर ही, ब्रह्मांड की सारी शक्तियां विद्यमान है लेकिन इन शक्तियों का खजाना, मनुष्य के भीतर है, यह मनुष्य जानता ही नहीं है। और वह इसलिए नहीं जानता, क्योंकि वह अपना स्वयं का विचार करता ही नहीं है, अपना आत्ममंथन करता ही नहीं है। जीवन भर दूसरों के दोष देखने में ही, समय व्यतीत करता है।।

           ✍..बाबा स्वामी

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी