लाइफ मैनेजमेंट
••● आत्मसाक्षात्कार के बाद साधक स्वयं में ही अपने गुरु का एक अंश अनुभव करता है और फिर वह साधना करके उसी अंश को वृद्धिगत करता है।
••● यही कारण है कि *सद्गुरु की कभी मृत्यु नहीं होती है क्योंकि वह लाखों साधकों के भीतर अंशों के रूप में तो विद्यमान ही रहता है।*
••● इस *प्रत्येक अंश का अपना अलग महत्त्व है।*
••● *आत्मसाक्षात्कार के बाद प्रत्येक साधक में अलग अपना एक 'निजी अंश' होता ही है। साधक उस अंश को जितना बढ़ाता है , सद्गुरु के एक-एक गुण साधक में प्रगट होने लगते हैं।*
••● इन सबके लिए लंबी साधना और *संपूर्ण समर्पण भाव* की आवश्यकता होती है।
••● संपूर्ण समर्पण भाव के साथ-साथ अनन्य भाव भी होना आवश्यक है। अनन्य भाव से आशय , आत्मा का सारा भाव एक ही स्थान पर केंद्रित करना।
••● भाव में बड़ी शक्ति होती है। जब हम अपना संपूर्ण समर्पण भाव एक ही स्थान पर केंद्रित करते हैं तो हमारी गुणग्राहकता बढ़ जाती है और हम अपने सद्गुरु के संपूर्ण ज्ञान को ग्रहण कर पाते हैं , यह मेरा निजी अनुभव है।
••● *जिस प्रकार से माँ अपने गर्भस्थ शिशु को विचारों के माध्यम से संस्कार करते रहती है , ठीक वैसे ही सद्गुरु भी अपने साधक को सूक्ष्म रूप से संस्कार देते रहता है।*
*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
दिनांक : ११/२/२०१६
*।। लाइफ मैनेजमेंट ।।*
(पृष्ठ : ५०,५१)
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