आत्माओं की सामूहिकता
बड़ी सामूहिकता में आत्मा बनकर ही जाना चाहिए | आत्माओं की सामूहिकता में आत्मा बनकर ही जाना चाहिए | शरीर को प्रधानता न दें, शरीर की सुविधाओं की ओर ध्यान न दें | इतनी बड़ी भीड़ जहाँ होगी , वहाँ तो कुछ असुविधाएँ होंगी ही, कुछ अव्यवस्था भी होगी ही | हमारा ध्यान हम यहाँ क्यों आए हैं इस पर होना चाहिए | *थोड़े में कहूँ , सुविधा के लिए हमें हमारी शान्ति नहीं खोनी चाहिए | हमारा अहंकार ऐसे स्थान पर विसर्जित होनेवाला ही रहता है।*
*हिमालय का समर्पण योग -४ पृष्ठ-२८२*
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