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Showing posts from July, 2019

अनमोल पत्थर

महाशिविर तथा स्वामीजी के अनेक कार्यक्रमों में हजारों लाखों लोगों को मन की शांति का अनुभव होता है । हम साधकों को एक बार नहीं , अनेक बार बल्कि प्रत्येक बार ऐसा अनुभव हुआ ही है । भला हजारों लोगों की मन की अशांति कहां गई?  उच्च रक्तचाप B.P.मधुमेह डायबिटीज कम कैसे हुए ? वास्तव में ,स्वामी जी की देह वेक्यूम क्लीनर की तरह कायँ करती है । वैक्यूम क्लीनर भौतिक कचरा ,धूल ,मिट्टी खींच लेता है । ठीक इसी प्रकार से , स्वामीजी की देह हजारों लाखों साधकों / लोगों के विचार रूपी दोष शोषित कर लेती है। देह....... कर लेती है, कहना गलत होगा क्योंकि यह प्रक्रिया घटित होती है । स्वामी जी का आभामंडल अत्यंत विशाल है। अंतः कार्यक्रम में पधारा हुआ लाखों का जनसमूह भी  उनके आभामंडल में ही होता है । इस प्रकार आभामंडल में बैठे हुए लाखों लोगों के विचार , दोष दूर होते हैं । स्वामी जी के पास देहरुपी थैली एक ही है । सभी के आभामंडल के दोष स्वामी जी के स्थुल शरीर सानिध्य में स्वामी जी के आभामंडल में स्थानांतरित हो जाते है । जब स्वामी जी को एकांत मिलता है , तब ध्यान द्वारा वे अपना आभामंडल स्वच्छ कर देते हैं । सोचिए ,सोचिए

समर्पण ध्यान प्राचीन संस्कृती की धरोहर

समर्पण ध्यान हमारी प्राचीन संस्कृती की धरोहर है। हमें इस धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुँचाना है। यह क्रम पिछले ८०० सालों से चल ही  रहा है और इसी के तहत हमें भी यह ध्यान का ज्ञान जो सजीव ज्ञान है , वह मिला है। हमने ध्यान सिखा ही है दुसरों को सिखाने के लिए , सिखाना अपना कर्तव्य है। हम हमारा कार्य करें , कोई सीखे या न सीखे , वह उसका क्षेत्र है। हमें अपने आप को विशाल करने के लिए सीखाना है। वह सीखे या न सीखे , दोनों ही स्थितियों में अपना कार्य तो संपन्न हो ही जाता है। हमारे हाथ में केवल सीखाना है , हमें वही करना है। आप सभी केवल अपना कार्य करे और दुसरे सीखे ही , यह अपेक्षा न रखें , बस इसी आशीर्वाद के साथ। --- आपका , बाबा स्वामी (६/५/२००७) ॥आत्म देवो भव:॥

प्रत्येक साधक मे

प्रत्येक साधक मे आपको मेरे दशॅन होने चाहिए । प्रत्येक साधक मे कुंडलिनी जागृति के दरम्यान मेरा सुक्ष्म अंश संक्रमित होता है, जिससे वह मेरे साथ सुक्ष्म रूप से जूड जाता है ।इस प्रकार मेरा सूक्ष्म शरीर अनेक साधको मे बॅटा हुआ है ।इसी कारण से यदी आप कीसी साधक की बुराई करते है , उसमे दोशो के दशॅन करते है या उसका अपमान करते है,  तो आप उसके जरीये मुझे ही ऐसा भाव देते है ।अगर उससे आप अनजाने मे सभी साधको का अपमान कर देते है क्योंकि मै सूक्ष्म रूप से सभी साधकों से  जुडा हुआ हू ।किसी साधक के अपमान आदी से मुझे अधीक तकलीफ होती है।आप इस बात को ध्यान मे रखते  हूए सभी के  साथ प्रेम, आदर  और आत्मीयता से जुडे ।इससे आपको अधिक शक्ति मिलेगी,  जो आपको आध्यात्मिक मागॅ मे आगे ले जाने के लिए सहायक होगी । इसे ठीक ऐसे समझाया जा सकता है, जैसे एक खुंटे से अनेक रस्सीया बंदी हुई है और आप उनके सहारे ऊपर चढना चाहते है । यदी आप एक रस्सी के  सहारे ऊपर जायेंगे, तो वो कमजोर पडेगी ।परंतु यदी आप अधीक् रस्सी या इकठ्ठी करके ऊपर चढने का प्रयत्न करोगे, तब मजबुत  और शक्तिशाली  होनेसे जल्दी प्रगति होगी । बाबा स्वामी

गहनध्यान अनुष्ठान 2020

7 जनवरी 2020 से 21 फरवरी महाशिवरात्री तक गहनध्यान अनुष्ठान समपेण आश्रम दांन्डी मे आयोजीत होगा और इसबार महुडी के गुजरात समपेण आश्रम के। श्री गुरूशक्तीधाम की मंगलमुतीे के लिये अनुष्ठान किया जायेगॉ । बाबा स्वामी 29/7/2019

समर्पण ध्यान का रहस्य

यह सारा समर्पण ध्यान का पूरा रहस्य भाव में छुपा हुआ है। सारा खेल आपके भाव का है। आप आपके भीतर जितना भाव लाने के लिए तैयार हो जाएंगे, आप आपके भीतर जितना भाव निर्माण कर सकेंगे, उतना ही आप आपका अस्तित्व खोते चले जाएंगे। सारा खेल भाव का है। आप जितने भाव से इस ध्यान को करेंगे, उतनी ही आपकी रिसिविंग बढेगी, उतना ही आपका कनेक्शन स्ट्रॉंग होगा, उतना ही आपके भीतर से सामूहिक शक्ति बहनें लग जाएगी। मधुचैतन्य-अप्रैल/मई/जून-2005

अनुभूति का जन्म

इस अनुभूति का जन्म हिमालय में भी बहुत भीतर के भाग में हुआ और उस स्थान पर मनुष्य बस्ती ही नहि थी। यानी एक निर्मनुश्य स्थान पर , एकदम एकांत के स्थान पर ही इस अनुभूति का विकास हुआ। बड़े ही पवित्र व शुद्ध वातावरण में इस अनुभूति का विकास हुआ है तो उसे अनुभव करने के लिए भी उतने  ही संवेदनशील मनुष्य की आवश्यकता है जो प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ हो।  बाबा स्वामी हिमालय का समर्पण योग भाग - 3 pg - 371

■■ प्रेरक प्रसंग ■■ -----◆ परीक्षा ◆-----

•• प्राचीन काल की बात है । एक ऋषि अपने गुरुकुल में विद्यार्जन करने आए शिष्यों को उनकी रूचि के अनुसार पढ़ाते थे । जब उनकी शिक्षा पूर्ण हो जाती थी, तब परीक्षा लेकर उन्हें विदा करते थे । •• उनके गुरुकुल में सभी प्रकार की विद्या प्रदान की जाती थी । साथ ही साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती थी क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान ही प्रत्येक मानव को मानवीय गुणों से संपन्न करता है ; मानव को मानव बनाए रखता है । •• एक बार गुरु ने शिष्यों की परीक्षा लेने के हेतु से चार शिष्यों को कोयले दिए और कहा, "कल सुबह यह कोई ले सफेद करके मुझे वापस करो_!!" •• चारों शिष्य सोचने लगे कि कोयले को सफेद कैसे करें_?? ◆ एक शिष्य ने सोचा, "कोयला भी कभी सफेद हो सकता है_?...नहीं हो सकता_!!" -- उसने कोयला रख दिया । ◆ दूसरे शिष्य ने कोयले को साफ (अच्छी तरह) धोकर देखा पर कोयला काला ही रहा_!! ◆ तीसरे शिष्य ने कोयले के छोटे-छोटे टुकड़े किए...धोकर देखा...पर कोयला काला ही रहा_!! ◆ चौथे शिष्य ने थोड़ा कोयला धोया, थोड़े को कूट कर धोया और बाकी बचे कोयले को जलाया । कोयला चलकर सफेद राख बन गया_!! •• दूसरे दिन सुबह च

शरीर के बढते हुये ओरा के प्रभाव

🌺मेरे शरीर के बढते हुये ओरा के प्रभाव के कारण मेरा कही भी जाना या मेरे पास कीसी का भी आना दिन प्रती दिन कठीण हो रहा है । इसलीये शायद कोई भी मुझे मीलता है तो मुझे लगता है की फीर पता नही यह व्यक्ती अपने जीवन मे मील पायेगॉ या नही इस लीये मेरे पास के सभी अनुभव और सारा ज्ञान सामने वाले को देना प्रांरभ कर देता हु ।और मुझे बताने के लीये सोचना नही पडता सब एक प्रेशर के साथ नीकलते ही जाता है ।                   बाबा स्वामी 🌺Due to the effect of my physical body's expanding Aura, day by day  it is becoming difficult for me to go anywhere or for anyone to come near me. Hence, whenever anyone meets me I get the feeling that I don't know whether I will meet this person again in my life or not, and that is why I start bestowing all my knowledge to the person in front of me; and I do not have to think about what I am saying, as everything keeps flowing out under (some kind of) pressure.                        Baba Swami

गुरुसान्निध्य

गुरुसान्निध्य का अधिक समय पूर्वजन्म के बुरे कर्मों को नष्ट करने में ही जाता है। और जैसे ही बुरे कर्म नष्ट होते हैं , शरीर नए कर्मों के जाल में उलझ जाता है और गुरुसन्निध्य छूट जाता है। और आध्यात्मिक प्रगति तो बाद का ज्ञान है। यह ठीक वैसा ही है कि एक गलत दिशा में गलत उदेश लेकर एक मनुष्य दौड़ता है और अपने गलत दौड़ने से गिर पड़ता है। उसके पैर में चोट लग जाती है। और अब दौड़ नहीं सकता , इसल पड़ा हुआ है। और पैर में तकलीफ है , इसलिए डॉक्टररूपी ( वेद्यरुपी ) गुरु के पास आता है। अपने जख्म पर पट्टी बंँघवाता है , दवा-दारु करवाता है और अपने जख्म ठीक करवाता है। और वह दौड़ नहीं सकता , इसलिए डॉक्टररूपी गुरु के पास होता है , पर उसका चित्त तो अभी भी उसी दिशा में होता है। वह केवल शरीर से गुरु के पास होता है। और जिस दिन वह मनुष्य स्वस्थ होता है , वह गुरुसन्निध्य को छोड़कर फिर से गलत दिशा में , गलत मार्ग से दौड़ना प्रारंभ कर देता है। यानी वह मनुष्य गुरुसन्निध्य में केवल स्वस्थ होने के लिए आया था। आध्यात्मिक रुप से कभी जुड़ा ही नहीं है, तो वह आध्यात्मिक ज्ञान कैसे पाएगा ? हिमालय का समर्पण योग भाग - ३

देह रूपी बास्केट को नियमित रूप से गुरुशक्तियों के जल से धोना

इस  देह  रूपी  बास्केट  को  नियमित  रूप  से  गुरुशक्तियों  के  जल  से  धोना  है । नियमित  रूप  से  गुरुशक्तियों  की  बहती  नदी  से , गुरुशक्तियों  के  प्रवाह  से  उस  बास्केट  में  पानी  भरके  लाना  है . . . पानी  भरके  लाना  है । केवल  उतना  ही  कार्य  करना  है । और  वह  भी  केवल  आधे  घंटे  के  लिए । आधा  घंटा  सामूहिकता  में , आधा  घंटा  एकांत  में । इससे  अधिक  समय  की  कोई  माँग  नहीं  है । गुरुशक्तियों  के  प्रवाह  में  से , जैसे  जैसे  आप  नियमित  रूप  से  अपनी  टोकरी  में  जल  भरते  लाती  रहेंगे , एक  दिन  आपकी  टोकरी  के  छेद  भी  बंद  हो  जाएंगे । एक  दिन  वो  टोकरी  मिला  हुआ  संपूर्ण  चैतन्य  ग्रहण  कर  पाएगी , भरके  रख  पाएगी  और  वो  दिन  जल्द  से  जल्द  आप  सभी  के  जीवन  में  आए  इसी  शुभकामना  के  साथ , ।। जय बाबा स्वामी ।।           परमवंदनीय पूज्य गुरुमाँ मकरसंक्रांति - २०१६               

गुरुकार्य करने के पहले

गुरुकार्य करने के पहले आप आपका चित्त पवीत्र और सशक्त करे ताकी आपके आभामण्डल में  सामनेवाले का चित्त थोडे समय के लिये क्यों न हो भीतर चला जाए और सामनेवाले मनुष्य को एक अनोखी शांति का अनुभव हो।                         -----पूज्य स्वामीजी

कुंडलिनी

स्वयंसिद्ध व्यक्ति या सिद्धि प्राप्त गुरु के सान्निध्य में उनके स्पर्श अथवा दृष्टिपात करने से कुंडलिनी जागृत हो सकती है। सद्गुरु श्री शिवकृपानंद स्वामीजी सिर्फ दृष्टिपात से हर शिबिर के दरम्यान शिबिरार्थियों की कुंडलिनी जागृत करते है। इसे स्थाई तथा वृद्धिशील बनाए रखने के लिए शिबिरार्थी को शिबिर के बाद प्रतिदिन ध्यान योग का नियमित अभ्यास करना चाहिए। इससे साधक (शिबिरार्थी ) की नियमित रूप से आध्यात्मिक तथा आधीभौतिक उन्नति होती है। मधुचैतन्य जुलाई २००१ पृष्ठ:८

पति को परमेश्वर बनाना स्त्री के हाथ में है।

पति को परमेश्वर बनाना स्त्री के हाथ में है। उसमे ईश्वरीय तत्व का  निर्माण केवल उसकी पत्नि ही कर सकती है। पत्नि का दृढ विश्वास ही पति में यह तत्व जागृत कर सकता है। जिस प्रकार  पत्थर की गणेश के रूप में पूजा कर हम उस पत्थर में गणेशतत्व का निर्माण करते है, ठीक उसी प्रकार पति को ईश्वर मानकर हम उसमें भी ईश्वरीय तत्व जागृत कर सकते हैं । पूज्य गुरूमाँ मधुचैतन्य - अप्रेल, मई, जून /2002

मेरे चैतन्य को अपने पास अनुभव करो

मेरे  चैतन्य  को  अपने  पास  अनुभव  करो  तो  इन  सब  बातों  से  आपको  मुक्ति  मिल  जाएगी । या  तो  तैरकर  जीवन  की  नदी  पार  करो , या  "समर्पण ध्यान " की  नाव  से  करो । पर  नाव  पर  बैठना  है  तो  नाव  के  नाविक  पर  संपूर्ण  विश्वास  और  श्रद्धा  रखना  होगी । अब  आपकी  आप  जानो । मुझे  बताना  था , बता  दिया । आप  सभी  उस  पार  जीवन  में  पहुँचे , इसी  शुद्ध  इच्छा  के  साथ आपका बाबा स्वामी

समर्पण ध्यान सर्वश्रेष्ठ है , पर हमें दूसरी कोई भी ध्यान पद्धतियों की निंदा नहीं करनी चाहिए।

नियमित ध्यान करना ही सबकुछ नहीं है , पर उसका असर हमारे दैनिक जीवन में होना आवश्यक है। जीवन में विपरीत परिस्थितीयों में भी हमें शांत रहकर निराकरण करना चाहिए। समर्पण ध्यान सर्वश्रेष्ठ है , पर हमें दूसरी कोई भी ध्यान पद्धतियों की निंदा नहीं करनी चाहिए। *मधुचैतन्य अप्रैल २००६*

वफादार कुत्ता

एक बार मेरे मन मे जिज्ञासा हुयी की सभी गुरू स्थानो के सानीध्य मे” कुत्ते” क्यो होते है। मेरे गुरूदेव ने हंसते हुये कहॉ था की वास्तव सदगुरू एक “ वफादार कुत्ते” की तरह ही होता है। मालीक भले ही उसे कितना भी थुत्तकारे.कितना ही मारे “वफादार कुत्ता” कभी भी अपने मालीक को न काटता है। न कभी मालीक का बुरा चाहता है। ठीक इसी तरह “सदगुरू” भी होता सदगुरु के प्रती साधक का व्यवहार कैसा भी हो वह सदैव साधक का भला ही करेगॉ। क्योकी भला करना उसका स्वभाव हो गया है। इसलीये गुरूस्थानो के आसपास सदैव कुत्ते जमा हो जाते है। परीस्थीतीया भी साधको की समपेण की”परीक्षा” लेती है। क्योकी सदगुरू तो शरीर भाव से परे होता है। उसपर परिस्थीती का प्रभाव नही पडताहै। 🌺कुछ कच्चे साधको छोडकर प्रा:य सभी साधक परीस्थीती की ली गयी परीक्षा मे मेरीट मे पास हुये बधाई आप सभी को खुब खुब आशिेवाद               आपका अपना             बाबा स्वामी 🌺कच्छ समपेण आश्रम पुनडी कच्छ             24/7/2018

भाग्यवान आत्माएँ

"  वे  आत्माएँ    कितनी   भाग्यवान    होंगी   जिन्हे  तुम्हारे  साथ   कार्य   करने   का   अवसर   मिलेगा , तुम्हारे   सानिध्य  में  रहनेका  अवसर   मिलेगा , और   वो   आत्माएँ   अपने   शरीर  में   रहते   हुए   तुम्हे   मान   पाएँगी !  क्योंकि   मानना   आत्मा   का   भाव   हैं । आत्मीय   स्तर   पर   मानना   बहुत   बड़ी   घटना   हैं । क्योंकि   शरीर   में रहते   हुए   शरीर   के   दोष   बीच   में   आ   ही   जाते   हैं । शरीरधारी   आत्मा   का   चित्त   सदैव   शरीर   पर   ही   होता   हैं , परमात्मा   पर   नही । "                *✍-पूज्य श्रीनाथ बाबाजी*                 *ही .का .स .योग -1 - 467*

श्री गुरुशक्तिधाम

●● परमात्मा का अस्तित्व सर्वत्र विद्यमान है, पर अगर ब्रह्मांड में फैले हुए परमात्मा का अनुभव करना है तो पहले अपने भीतर सुप्त अवस्था में रह रहे परमात्मा के अस्तित्व तक पहुँचना होगा । उसे जानना होगा । उस तक पहुँचना सबसे आसान है । •• इसलिए आसान है क्योंकि परमात्मा का वह स्वरूप सबसे पास होता है । उसे जाने बिना बाहर के परमात्मा को हम कभी भी नहीं जान सकते हैं । •• भीतर का परमात्मा जाने बिना बाहर खोजते रहोंगे, तो जन्मों-जन्मों तक वह नहीं मिलेगा । •• एक बार भीतर के परमात्मा की अनुभूति हो जाने के बाद बाहर भी परमात्मा की अनुभूति होना शुरू हो जाएगी । •• समर्पण ध्यान में भीतर जाया जाता है । और भीतर ही परमात्मा की अनुभूति पाई जाती है और उस अनुभूति से बाहर अनुभव हो जाता है । •• फिर बाहर खोजना नहीं पड़ता है । और फिर अनुभव होता है - परमात्मा सर्वत्र है । न उसका आदि है और न अंत है । वह स्वयंभू है । ●● यह स्थान जो परमात्मा को बाहर खोज रहे हैं, उन्हें भीतर की यात्रा कराएगा और जो भीतर तक पहुँच चुके हैं और वही अटक गए हैं, उन्हें बाहर का मार्ग बताएगा और अनुभव कराएगा - परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है । ••

श्री शिवकृपानंद स्वामी

*'श्री शिवकृपानंद स्वामी' यह नाम ही 'विश्व में युनिक' है। इस नाम का दुसरा कोई 'शरीर' नही है। यह नाम साक्षात विश्वचेतना ने बनाया है।* अपने सभी गुणों को एक सामान्य से  सामान्य मनुष्य भी ग्रहण कर सके इस उद्देश से यह नाम का निर्माण किया है।  यह नाम नहीं  है, 'साक्षात चैतन्य' है। अगर आप संपूर्ण शुद्ध, पवित्र भाव के साथ इसका उच्चारण करते हैं तो 'आत्मा' के सारे गुण आपमें आने लगते है और शरीरभाव पूर्णतः समाप्त हो जाता है। इसकी  दुसरी विशेषता है,  यह आज के वातावरण, आज की परिस्थिती में  सामान्य से सामान्य मनुष्य कैसे अध्यात्मिक प्रगती कर सके, यह सोचकर बनाया है। आप इस नाम को बुद्धि से न समझेंं। आप इस नाम को भावा से लेकर खुद ही अनुभव कर लें। *सत्य का अविष्कार पृष्ठ:२६*

स्वामी जी से मध्य प्रदेश के साधक साधिकाओं की मीटिंग के कुछ अंश

अभी अरडका आश्रम पर स्वामी जी से मध्य प्रदेश के साधक साधिकाओं की मीटिंग के कुछ अंश लिख रहा हु..... 1)मीटिंग का उद्देश्य mp में दर्शन शिविर के विषय मे ही था,जिसमे स्वामी जी ने mp के pamplate  दिखाते हुए बताया कि आपका प्रचार का पम्पलेट अच्छा है 2)स्वामी जी ने कहा कि खूब गुरुकार्य करो ये दिन आपके जीवन में दोबारा नही आने वाले है 3)उन्होंने कहा कि एक किराए का समर्पण भवन बनाओ ताकि गुरु ऊर्जा वहां से पूरे mp में फैले 4)गुरुदेव ने अपने मोबाइल में ओर अपने i पैड में उनके नागपुर में हुए कार्यक्रम के फोटो भी दिखाए 5)गुरुपूर्णिमा का समय अब जल्द करने का भी जिक्र किया 6) सभी साधको को प्रशाद का वितरण भी स्वयं के हाथों से किया और प्रशाद बाटते हुए कहा ''बिन मांगे मोती मिले मांगे मिले न बिख'' 7)सभी का परिचय भी लिया 8)कहा कि 2 दिन के लिए आऊंगा ओर पूरा समय mp के साधको को दूंगा। 9)बाद में स्वामी जी के साथ फ़ोटो भी लिया 10)उन्होंने कहा भी की में बचपन मे उज्जैन में रहा हु। 11)लगभग 45 मिनिट चर्चा हुई

स्वामीजी के सानिध्य मे अजमेर की युवाशक्ति की मीटिंग

कल 18-7-2019को बाबा स्वामीजी के सानिध्य मे अजमेर की युवाशक्ति की मीटिंग हुई। उसी मे याद बाते आप सभी के साथ शेयर कर रहा हू। 1- यह प्रथम गुरुपूर्णिमा रही जिसमे 8000साधको ने रजिस्ट्रेशन कराया , पिछला सर्वाधिक रजिस्ट्रेशन संख्या6000की थी। 2- मीटिंग मे साधक श्री राकेशसोलंकी जी द्वारा डिस्पोजल आइटम के बजाय, प्रत्येक साधक अपने साथ 1थाली,2ग्लास,चम्मच और कटोरी अपने साथ लाये तो आश्रम मे डिस्पोजल आइटम का न्यूनतम प्रयोग करके आश्रम  की स्वच्छता बनाये रखने मे मदद मिलेगी। यह सुझाव राकेश जी द्वारा प्रस्तुत किया गया। 3- स्वामीजी ने बताया, कि - नेपाल का एम्बेसेडर बनने पर गुजरात के मुख्यमंत्री और सांसद द्वारा स्वामीजी का सम्मान किया जाऐगा। लेकिन अभी डेट नही मिल रही है। स्वामीजी ने बताया,कि-अभी हाल ही कनाडा का दौरा होना वाला है,उसके बाद ही डेट मिलेगी। 4- स्वामीजी ने कार्यक्रम मे सभी साधको का नाम परिचय जाना और बताया कि आप लोग अलग-अलग जगह से है ,तो- अपने गांव का नाम अपने नाम के साथ लगाये । लेकिन सभी ज्यादातर साधक अजमेर के ही थे इसलिऐ स्वामीजी ने बताया कि नाम के साथ अजमेर  लगाने की जरुरत नही है। 5- स