ध्यान के बारे में जागृति
•• पुराने जमाने में ऋषि मुनि ध्यान करते थे और राक्षस आकर उनके ध्यान में विध्न डालते थे ।
•• वास्तव में, राक्षस कोई आकार विशेष नहीं हैं, वे एक प्रकार की वुत्ति के लोग हैं, वे विचार के ही माध्यम से हमला करते हैं और जितना ध्यान गहरा होगा, यह हमला भी गहरा ही होगा ।
•• मोक्ष की स्थिति वह अति निर्मल और पवित्र अवस्था है, जिसमे कोई पाप या पूण्य का कर्म बाकी नहीं रहता, कुछ भी जीवन में करने को बाकी नहीं रहता, जीवन में कोई इच्छा बकी नहीं रहती, जीने की इच्छा भी बाकी नहीं रहती है ।
•• चित्त से सभी स्मृतियाँ समाप्त हो जाती हैं । अंदर-भीतर ऐसा कुछ नहीं रहता, जो बाकी रह गया हो ।
•• ऐसी परिशुद्ध अवस्था को मोक्ष कहते हैं । इसे एक जन्म में पाना बड़ा ही कठिन कार्य है । अब इन साधुओं को और संन्यासियों को देखना हूँ तो लगता है, इन्होंने कहाँ संसार छोड़ा है, एक छोटा परिवार छोड़कर उन्होंने एक बड़ा परिवार प्राप्त कर लिया है ।
•• यानी ये पूर्ण मुक्त नहीं हैं । यानी यह छोड़ना और पकड़ना बाहर से करना कोई मायना नहीं रखता, आप चित्त से कहाँ हो यह महत्त्वपूर्ण है। आपने परिवार छोड़ा या नहीं यह महत्वपूर्ण नहीं है ।
•• इसीलिए निष्काम भाव से भक्ति को बड़ा महत्त्व दिया गया है ।
•• ध्यान का विषय समाज के लिए एकदम नया है, धीरे-धीरे समाज से ध्यान तो विलुप्त-सा ही हो गया है ।
•• जो आसान है, वह मनुष्य करता है, जो कठिन है, उधर ध्यान नहीं देता है, पूजा आसान है, शरीर से की जाती है, तो उसे हर मनुष्य आसानी से कर सकता है । लेकिन ध्यान आसान नहीं है, इसे हमें ग्रहण करना कठिन है ।
•• इसलिए ध्यान के बारे में जागृति लाने का कार्य जो गुरुदेव मेरे मध्यम से करना चाहते हैं, वह बड़ा ही कठिन है । यह मैं भी जान गया हूँ, लेकिन मुझे कोई भी अपेक्षा नहीं और न वह मेरा क्षेत्र भी है। मैं केवल मेरा क्षेत्र सँभाल रहा हूँ ।
- परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
स्त्रोत - हिमालय का समर्पण योग - भाग - ६
पृष्ठ - २५३-२५४
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