समर्पण ध्यान प्राचीन संस्कृती की धरोहर

समर्पण ध्यान हमारी प्राचीन संस्कृती की धरोहर है। हमें इस धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुँचाना है। यह क्रम पिछले ८०० सालों से चल ही  रहा है और इसी के तहत हमें भी यह ध्यान का ज्ञान जो सजीव ज्ञान है , वह मिला है। हमने ध्यान सिखा ही है दुसरों को सिखाने के लिए , सिखाना अपना कर्तव्य है। हम हमारा कार्य करें , कोई सीखे या न सीखे , वह उसका क्षेत्र है। हमें अपने आप को विशाल करने के लिए सीखाना है। वह सीखे या न सीखे , दोनों ही स्थितियों में अपना कार्य तो संपन्न हो ही जाता है। हमारे हाथ में केवल सीखाना है , हमें वही करना है। आप सभी केवल अपना कार्य करे और दुसरे सीखे ही , यह अपेक्षा न रखें , बस इसी आशीर्वाद के साथ।

--- आपका , बाबा स्वामी
(६/५/२००७)

॥आत्म देवो भव:॥

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