प्रचार कार्य

आज मुझे सहज ही विचार आया की जब मै हिमालय जाते समय रास्ते के
गॉवो मे समर्पण ध्यान संस्कार का प्रचार का्र्य करता था तो उस गॉव मे मुझे कोई जानता तक नही था सब मुझे  शंका से ही देखते थे । यही स्थीती २० साल पहले मुंबई मे भी थी । न मेरे पास कोई फोटो थे न प्रमाण पत्र थे । न औरा की रिपोटे थी और न कोई पैसे थे । एक दम फकीर था।
उस जमाने मे प्रचार कार्य कठीण था
या आज कठीण है । नीच्छीत ही तब
कठीण था ।
बस अंन्तर एक ही है ,जब हम देह के स्तर पर कार्य करते हैं तब देह की क्षमता के अनुसार कार्य होता है लेकिन जब आत्मा के स्तर पर कार्य हो तो परमात्मा हमसे कार्य करवा लेता है । आप देह के “मै” के सांथ कार्य करते हो  । जब हम शरीर स्तर पर कार्य करते है तो शरीर स्तर पर कार्य होता है । और आत्मा के स्तर पर कार्य करते है । तो कार्य करते नही कार्य होता है । आत्मा के स्तर पर परमात्मा के लिये किया गया कार्य गुरूकार्य कहलाता है ।वह कीया नही जाता हो जाता है ।
आप सभी को परमात्मा “गुरू काये”
का महत्व समझाये यही प्राथेना है।आप सभी को खुबखुब आशिेवाद

                     आपका अपना
                   बाबा स्वामी
                      14/5/2019

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी