श्री गुरुशक्तिधाम
●● परमात्मा का अस्तित्व सर्वत्र विद्यमान है, पर अगर ब्रह्मांड में फैले हुए परमात्मा का अनुभव करना है तो पहले अपने भीतर सुप्त अवस्था में रह रहे परमात्मा के अस्तित्व तक पहुँचना होगा । उसे जानना होगा । उस तक पहुँचना सबसे आसान है ।
•• इसलिए आसान है क्योंकि परमात्मा का वह स्वरूप सबसे पास होता है । उसे जाने बिना बाहर के परमात्मा को हम कभी भी नहीं जान सकते हैं ।
•• भीतर का परमात्मा जाने बिना बाहर खोजते रहोंगे, तो जन्मों-जन्मों तक वह नहीं मिलेगा ।
•• एक बार भीतर के परमात्मा की अनुभूति हो जाने के बाद बाहर भी परमात्मा की अनुभूति होना शुरू हो जाएगी ।
•• समर्पण ध्यान में भीतर जाया जाता है । और भीतर ही परमात्मा की अनुभूति पाई जाती है और उस अनुभूति से बाहर अनुभव हो जाता है ।
•• फिर बाहर खोजना नहीं पड़ता है । और फिर अनुभव होता है - परमात्मा सर्वत्र है । न उसका आदि है और न अंत है । वह स्वयंभू है ।
●● यह स्थान जो परमात्मा को बाहर खोज रहे हैं, उन्हें भीतर की यात्रा कराएगा और जो भीतर तक पहुँच चुके हैं और वही अटक गए हैं, उन्हें बाहर का मार्ग बताएगा और अनुभव कराएगा - परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है ।
•• यह स्थान नई साधकों के लिए प्रायमरी स्कूल है और पुराने साधकों के लिए PHD (पी.एच.डी.) का ज्ञान कराएगा ।
•• आप जिस स्थान पर हो, उस स्थान से आगे की ओर अग्रसर होंगे ।
•• प्रत्येक मनुष्य की तरफ देखने का आपका नाझरिया बदल जाएगा ।
•• आप जीवन की तरफ सकारात्मक रुप से देखेंगे क्योकि अब आपके जीवन में समाधान स्थापित हो चुका होगा ।
•• परमपूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी
•• स्त्रोत -- आध्यात्मिक सत्य
पृष्ठ - १८३--१८४
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