गुरुपूर्णिमा

दूसरा, मैं प्रतिदिन नहीं, प्रतिक्षण महसूस करता हूँ - तुम्हारे में और मेरे में एक अंतर निर्माण हो रहा है। वो अंतर गति का अंतर है। सामूहिकता के कारण एक आध्यात्मिक स्थिति की गति प्राप्त हुई है और वो गति आपको प्राप्त नहीं हुई है। सिर्फ इसलिए नहीं हुई है क्योंकि बंधन मजबूत नहीं है। मुझे बार-बार आपके लिए रुकना पड़ता है, बार-बार मुड़कर देखना पड़ता है - आप आए या नहीं आए, आप पहुंचे या नहीं पहुंचे। क्योंकि मेरे जीवन का उद्देश्य ही है - सामूहिकता में रहना, कलेक्टिविटी में रहना। कोई नहीं छूटना चाहिए। उसके लिए प्रत्येक क्षण प्रयत्न करते रहता हूँ, प्रत्येक क्षण प्रयास करते रहता हूँ।

तो मैंने महसूस किया - बच्चे मुझसे छूट रहे हैं। छूटना नहीं चाहिए। तो जिस स्थिति में गुरुपूर्णिमा में मैं पहुँचनेवाला हूँ, उसी स्थिति में आप पहुँचे। समरसता स्थापित हो। सिर्फ शरीर से यहाँ मत आओ। यह पिकनिक स्पॉट नहीं है। ये ट्रिप की जगह नहीं है। आप उस स्थिति में नहीं आते हो, उस स्थिति में नहीं पहुँचते हो, उस स्थिति में ग्रहण नहीं करते हो, उससे भी मुझे तकलीफ होती है।

*🌹H. H. Swamiji🌹*

*गुरुपूर्णिमा महोत्सव - २००६ , राजकोट*

मधुचैतन्य २००६ (पृष्ठ २९)
जुलाई,ऑगस्ट, सितंबर

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