■■ प्रेरक प्रसंग ■■ -----◆ परीक्षा ◆-----

•• प्राचीन काल की बात है । एक ऋषि अपने गुरुकुल में विद्यार्जन करने आए शिष्यों को उनकी रूचि के अनुसार पढ़ाते थे । जब उनकी शिक्षा पूर्ण हो जाती थी, तब परीक्षा लेकर उन्हें विदा करते थे ।

•• उनके गुरुकुल में सभी प्रकार की विद्या प्रदान की जाती थी । साथ ही साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी दी जाती थी क्योंकि आध्यात्मिक ज्ञान ही प्रत्येक मानव को मानवीय गुणों से संपन्न करता है ; मानव को मानव बनाए रखता है ।

•• एक बार गुरु ने शिष्यों की परीक्षा लेने के हेतु से चार शिष्यों को कोयले दिए और कहा, "कल सुबह यह कोई ले सफेद करके मुझे वापस करो_!!"
•• चारों शिष्य सोचने लगे कि कोयले को सफेद कैसे करें_??
◆ एक शिष्य ने सोचा, "कोयला भी कभी सफेद हो सकता है_?...नहीं हो सकता_!!"
-- उसने कोयला रख दिया ।
◆ दूसरे शिष्य ने कोयले को साफ (अच्छी तरह) धोकर देखा पर कोयला काला ही रहा_!!
◆ तीसरे शिष्य ने कोयले के छोटे-छोटे टुकड़े किए...धोकर देखा...पर कोयला काला ही रहा_!!
◆ चौथे शिष्य ने थोड़ा कोयला धोया, थोड़े को कूट कर धोया और बाकी बचे कोयले को जलाया । कोयला चलकर सफेद राख बन गया_!!

•• दूसरे दिन सुबह चारों शिष्यों ने कोयला गुरुजी को दिखाकर अपना अपना अनुभव बताया ।

●● गुरुदेव ने चारों शिशु का अनुभव सुना और कहा,
°° दुनिया में चार तरह के लोग रहते हैं__
•◆ कुछ लोग सोचते हैं परमात्मा नहीं होता ।
•◆ दूसरे प्रकार के लोग परमात्मा को मानते हैं । वे पूजा पाठ करके स्वयं को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं ।
•◆ तीसरे प्रकार के लोग ईश्वर प्राप्ति का मार्ग तलाशते हैं; समाधिस्थ गुरु की आराधना करते हैं, पूजा अर्चना करते हैं ।
•◆ चौथे प्रकार के लोग गुरु की खोज करते रहते हैं तथा जीवंत सद्गुरु से ज्ञान प्राप्त कर अपने सभी कर्मा गुरु चरणों में पूर्ण समर्पित कर अपने आप को शुद्ध-पवित्र कर लेते हैं । जैसे कोयला जलकर सफेद राख बन गया, वैसे ही कर्म दान करने से देह भाव नष्ट होता है । (क्योंकि) आत्मा कर्म नहीं करती, कर्म तो देह द्वारा किए जाते हैं ।
•◆ आत्मा तो शुद्ध-पवित्र ही होती है । सभी भाव, कर्म, गुण, दोष, देह से जुड़े हैं । यदि हमें कर्म का दान ग्रहण करनेवाला सदगुरु मिल जाए, तभी हम निर्मल-निर्दोष आत्मा बन सकते हैं_!!

-◆- परम् वंदनीय गुरुमाँ
-◆- स्त्रोत-- मधु चैतन्य
-- अक्टूबर-नवंबर-दिसंबर-२००८

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