दिव्य शरीर
'आत्मसाक्षात्कार' ग्रहण कर शके ऐसा 'दिव्य शरीर' जन्मो-जन्मो के बाद प्राप्त हो पाता है। ऐसे दिव्य शरीर को पाने के लिए आत्मा जन्मो-जन्मो तक ऐसे पवित्र और अनुकूल ' माँ ', 'बाप' को खोजते रहती है, जो ' माँ ' , ' बाप ' ऐसा दिव्य शरीर प्रदान कर सके। बहुत कम हीं पुण्यआत्माऐ होती हैं जिन्हें ऐसे ' माँ ' , ' बाप ' मिल पाते हैं, जो ऐसा दिव्य शरीर प्रदान कर सके। इसलिए, जिसे भी अपने जीवनकाल में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो, उसने सर्व प्रथम अपने माँ-बाप का आभारी होना चाहिए, जिनके कारण आपको यह दिव्य शरीर मिल पाया हैं ।
जीवन में ' दिव्य शरीर ' मिल पाना और जीवन ने ' सद्गुरू का सान्निध्य' मिल पाना , दोनों हीं दुर्लभ बाते हैं
सत्य का आविष्कार *14
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