माध्यम

आत्मा एक जीवन में जिस माध्यम को जान जाती है, उसे उस जीवन में मान नहीं पाती। और अगले जीवन में उसे मान पाती है, लेकिन अगले जन्म तक देर हो चुकी होती है। फिर अगले जन्म में जो माध्यम सामने आता है, उसे जानती तो है, पर मानती नहीं है, मानती अगले जन्म में है। यानि परमात्मा जिस गति से अपने माध्यम बदलता रहता है, उस गति के साथ साथ आत्मा नहीं चल पाती हैं। इसलिए आत्मा अपने जीवनकाल में अपने पूर्वजन्म के माध्यम को ही मानती रहती हैं। पर वह माध्यम इस जन्म में दूर हो जाता है। वह माध्यम इस जन्म में कोई काम का नहीं होता है। यानि परमात्मा जिस गति से माध्यम बदलता है, उसके साथ साथ आत्मा नहीं चल पाती है। और यही कारण है कि आत्मा आज के परमात्मा को नहीं मान पाती हैं। वह मानेगी, तो वह कल का परमात्मा ही होगा। लोग जो गलती करते हैं, वह गलती मुझे नहीं करनी है। मुझे इसी जीवन में इसी जीवन का परमात्मा का जीवंत माध्यम खोजना है, तभी आत्मा को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो सकता है और आत्मा इस शरीर के भाव से मुक्त हो सकती है। मोक्ष तो जीते-जी पाना होता है। मैं शरीर नहीं हूँ, मैं एक पवित्र आत्मा हूँ, यह ज्ञान अपने जीवनकाल में ही हो जाना मोक्ष है।

हि. स. यो. २/ ४४६

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी