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Showing posts from October, 2019

ध्यान गया तो तुम्हारा यह जीवन ही गया

॥जय बाबा स्वामी॥ धन गया तो कुछ गया , स्वास्थ्य गया तो सब गया और मैं कहता हूँ ध्यान गया तो तुम्हारा यह जीवन ही गया। ये जीवन बेकार है। अगर ध्यान नहीं है न , तो जीवन पूरा बरबाद है , बेकार है। तो ध्यान को मत छोडो , नियमितता जीवन के अंदर लाओ। रोज नियमित ध्यान होना ही चाहिए। कैसे टाईम निकालाने का है , आप आपका देखो। तो जिस प्रकार से समर्पण ध्यान के कुछ फायदे हैं तो ये समर्पण ध्यान के कुछ बंधन हैं। समर्पण ध्यान के कुछ नियम हैं। वो सीमा के साथ में रहकर ही आप इसमें प्रगति कर सकते हो , आगे प्रोग्रेस करते हो। उसका सबसे पहला नियम है, शुद्ध भाव लेके आओ , कोई भी अपेक्षा लेकरके ध्यान में मत आओ। समर्पण ध्यान की चौकट में नियमितता आवश्यक है , ठीक उसी प्रकार से सामूहिकता भी उतनी ही आवश्यक है। ये दो पहियों के ऊपर ये समर्पण ध्यान का रथ चलता है। उसके अंदर पहला पाहिया है नियमितता और दूसरा पहीया है सामूहिकता।सामूहिकता में ध्यान होना अत्यंत आवश्यक है, सेंटर पे जाना अत्यंत आवश्यक है।  पूज्य स्वामीजी (८ नवम्बर २०१३) *मधुचैतन्य अक्टूबर २०१३ पृष्ठ:१६* ॥आत्मदेवो भव:॥

गुरुकार्य या ध्यान

साधक 15 :-- स्वामीजी, अध्यात्मिक प्रगति करने के लिए गुरुकार्य और ध्यान, दोनों में से क्या ज्यादा उचित है ? स्वामीजी :-- गुरुकार्य और ध्यान दोनों ही मार्ग है और दोनों से आखिर में एक ही जगह पहुंचते हैं | आखिर में, अपने आप में भाव जगाने में आप सफल होने चाहिए | जब गुरु के प्रति पूर्ण भाव लाने में अपने-आपको पूरा डुबो दो, अपने अस्तित्व को शून्य कर दो,  तब आप गुरुशक्ति से जुड़ने में सफल हो जाते हो |      अगर गुरुकार्य करने में आपको रुचि हो तो गुरु के लिए जो भी कार्य करो, वह सब गुरु को अर्पित कर दो | जिसे ध्यान नहीं लगता हो, उसे गुरुकार्य करना चाहिए | गुरुकार्य शरीर से होता है, पर कार्य करते समय चित्त गुरु पर हो तो आखिर में गुरु से जुड़ जाओगे | गुरु के माध्यम से,आगे ऊपर का रास्ता है जो सामूहिकतामें पार करना है |      जिस तरह किसी ऐतिहासिक स्थान पर अगर जाओगे, तो उस स्थान की सही जानकारी पाने के लिए गाईड की मदद लोगे | तो स्थान और गाइड दोनों अलग-अलग चीजें हैं | जब गाइड आपको माहिती (जानकारी) देगा, तब आपका पूरा ध्यान गाईड के शब्दों पर होगा | तब आप उस स्थान को सही मायने में जान पाओगे | परमात्मा

🌺 सीख 🌺

••◆ आज आश्रम से लौटते समय आश्रम-गेट (द्वार) से बाहर तथा आगे रास्ते के अन्य स्थानों पर देखा - सफाई हेतु वहाँ की सूखी घास में आग लगाकर सब जला डाला था। ••◆ वहाँ बबूल की झाड़ियाँ थीं। वे झाड़ियाँ भी आग की ऊँची लपटों से झुलस गई थीं। देखकर बुरा लगा। नाहक ही उन झाड़ियों को झुलसना पड़ा। ••◆ तभी मेरी नजर उन झाड़ियों में फूट रही नई कोपलों पर पड़ी। तोतों-सी हरी ये कोपलें कल विकसित शाखाएँ और पत्तियाँ बनेंगी। उस वनस्पति का जीवट स्वभाव अच्छा लगा। ••◆ बुरी तरह से झुलसने के बावजूद नई शाखाओं का उगना उसकी जड़ों के सशक्त होने का प्रमाण था। ये जड़ें जमीन से गहराई तक जुड़ी हुईं तथा विकसित थीं , तभी बाहरी आघातों का - झुलसने का उस पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा। ••◆ हम मानव अपने-आपको सर्वश्रेष्ठ समझते हैं। किंतु आस्थारूपी जड़ें ईश्वर से या सद्गुरु से गहराई से नहीं जुड़ी होतीं। ••◆ इसीलिए बाहरी परिस्थितियों का परिणाम हम पर बहुत जल्दी होता है। छोटी-सी असफलता या शब्दबाणों से हम आहत होते हैं , विचलित हो जाते हैं। ••◆ यदि हमारा चित्त , हमारा समर्पण परम चैतन्य के प्रति हो , तो बाहरी परिस्थितियों का हम पर कोई प

🌺 नश्वर समर्पण से ईश्वर समर्पण तक 🌺

*सभी परमात्माओं को मेरा नमस्कार . . .* ★ इस "स्त्री शक्ति अनुष्ठान" में स्त्रीशक्ति को बहुत पास से जानने का अवसर प्राप्त हुआ। *"स्त्री शक्ति" समर्पण ध्यान का प्रमुख आधार है।* लेकिन इस आधार स्तंभ की स्थिती ही बड़ी दयनीय है। ★ साधिकाएँ मुझे तीन प्रकार की देखने को मिल रही है। •••◆ *पहली साधिकाएँ :* ★ पहली साधिका वह है जो *नियमित ध्यान भी कर रही है और उसका ध्यान लग भी रहा है।* ऐसी साधिकाओं की संख्या एकदम कम है। *ये साधिकाएँ संपूर्ण ईश्वर समर्पण का भाव रखती है।* इन्होंने मुझे जाना है , स्वामीजी क्या कहना चाहते हैं , क्या देना चाहते हैं , क्या दे रहे हैं , हमें क्या लेनेका है , हमें हमारा चित्त कहाँ रखना है। कहाँ चित्त रखने से चित्त सशक्त होगा और नियमित भी होगा यह जानती है। *क्या नश्वर है और क्या ईश्वर है , यह दोनों ही जानती है।* ★ वे पूर्णतः जानती है कि *स्वामीजी भी दो है। एक जो दिख रहे हैं और एक जो नहीं दिख रहे हैं। जो दिख रहे हैं वहाँ से जो नहीं दिख रहे हैं वहाँ तक पहुँचना है। जो दिख रहे हैं वे नश्वर है , नाशवान है वे तो केवल निमित्य है , चित्त तो मुझे नहीं दिख रहे

🌺 साल मुबारक 🌺

🔹 आज नववर्ष के अवसर पर एक नयी शुरुआत करें कि आज से हम प्रति क्षण को जीएँ , हम प्रति क्षण का आनंद लें। 🔸 जीवन का प्रत्येक क्षण ही महत्त्वपूर्ण है। इसलिए , हम जिस 'क्षण' को जी रहे हैं उसका भरपूर 'आनंद' लें। 🔹 यानी हम लिख रहे हैं तो वर्तमान में पूर्ण एकाग्रता से लिखें। हम पढ़ रहे हैं तो पूर्ण एकाग्रता से पढ़ें और भोजन भी कर रहे हैं तो भोजन का संपूर्ण 'आस्वाद' लेकर करें। 🔸 यानी प्रत्येक क्षण हम 'वर्तमान' में रहकर जीएँ। 🔹 आज से प्रारंभ की गई शुरुआत हमारी अनावश्यक भूतकाल और भविष्यकाल में व्यर्थ बह जाने वाली 'ऊर्जा शक्ति' को बचाएगी और प्रत्येक क्षण एक 'यादगार' क्षण हो जाएगा। *🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹* दिनांक : १२/११/२०१५ *।। आत्मा की आवाज़ ।।* (पृष्ठ : १९४)

🌺🌸साल मुबारक🌸🌺

सभी साधको को “ साल मुबारक” आप सभी को नव वषे पर खुबखुब आशिवाद यह नया वषे आपके जीवन मे नयी आध्यात्मीक उंचाई लेकर आये ।आप आपके जिवन मे उस पुर्ण समाधान को प्राप्त करे । जो प्राप्त होने पर कुछ भी पाने की इच्छा ही नही रह जाती है ।                        आपका अपना                             बाबा स्वामी                            28/10/19

🌺श्रेष्ठ आत्मा🌺

••◆ अभी हाल ही में महाशिवरात्रि के उत्सव के बाद मैंने मेरे पिताजी से भेंट की तो उन्होंने मुझसे ऐसे ही मझाक (मजाक) में कहा , "तेरे समान दाढ़ी बढ़ाकर बहुत लोग आजकल घूमते रहते हैं। अब ये शायद फैशन है।" ••◆ इसके पर बहन ने कहा वह महत्वपूर्ण है। -- बहन ने कहा , *"लेकिन उन लोगों के पीछे हजारों लोग जुड़े नहीं है। इसके पीछे जुड़े हुए हैं और जो जुड़े हैं , वह बाहरी दाढ़ी के कारण नहीं हैं। यह आत्मा ही कुछ अलग है। इसकी 'आत्मा श्रेष्ठ' होने के कारण ही वह अपने साथ हजारों लोगों को जोड़ पाई है।"* ••◆ अब मेरी बहन कोई साधिका नहीं है , फिर भी वह यह 'सत्य' बात जान पाई। अपने में कितने साधक है , जो यह बात जान पाए हैं यह मुझे प्रश्न है। क्योंकि अगर जान पाए होते तो शरीर का आकर्षण ही नहीं होता। ••◆ *शरीर तो केवल एक ढाँचा है , 'श्रेष्ठ आत्मा' तो भीतर है और भीतर को जानने के लिए भीतर जाना होगा। जब-तक आप भीतर नहीं जाते , तब-तक उस भीतर की 'श्रेष्ठ आत्मा' के दर्शन नहीं हो सकते हैं। उस श्रेष्ठ आत्मा के साथ लाखों साधकों की 'सामूहिक शक्ति' है और सामूहिक आत्माओ

आत्मा कहती है , वह करो

••● अभी मैं यज्ञशाला से आ रहा था। कोई कार्यक्रम निश्चित नहीं था , अचानक मैं यज्ञशाला में घुस गया और वहाँ पूरा राऊंड मार करके वापस आया। ••● क्योंकि कोई मुझे वहाँ पर बुला रहा था। लेकिन बुला रहा था एक व्यक्ति , पहुँचा सबके लिए ! ••● तो एक व्यक्ति भी अगर अच्छा सोचता है , एक व्यक्ति भी भला सोचता है , तो सबका भला उसी में निहित है। सिर्फ एक व्यक्ति की इच्छा के कारण मैं अंदर आ गया था। ••● तो आपकी छोटी-छोटी इच्छा भी के लिए मैं बँधा हूँ। लेकिन पहले उस संबंध का भी निर्माण करो और वह संबंध निर्माण होने के बाद एक भीतरी संबंध निर्माण हो जाएगा , जो भीतरी संबंध आठ सौ साल पुराना है। ••● आप सोचो ना , इतने चंद दिनों में इतना आत्मीय संबंध जब हमारा हमारे परिवार लोगों के साथ नहीं होता है , तो स्वामीजी के साथ कैसे हो गया ? कोई ना काई पुराना रिश्ता होगा , कोई ना कोई पुराना रिलेशन होगा। उसको आत्मा समझ पा रही है , शरीर नहीं। ••● इसलिए आवश्यकता है , उस रिश्ते को समझो। और अगर नहीं समझता है , तो जो आत्मा कहती है , वह करो। ••● मेरी भी इच्छा है - एक बार आपकी आत्मा आपका गुरु बन जाए। बस ! मेरा कार्य हो गया ! मेरा

सत्य की अनुभूति

सत्य की जहाँ अनुभूति हो जाए , बस वह स्वरूप ही सत्य है। वह माध्यमरूपी शरीर जो सत्य के दर्शन करा सका , वही सत्य इसलिए भी है क्योंकि उस शरीर में शरीर का भाव ही बाकी नहीं रहा है। शरीर जीवित है , पर शरीर का भाव नहीं है क्योंकि शरीर ही परमात्मामय हो गया है। ऐसा ' परमात्मामय शरीर जिसका शरीर का भाव ही बाकी नहीं है , जो परमात्मा का माध्यम बन चुका है , जो शरीर ब्रहा हो गया हो , परमात्मा जिस शरीर से प्रकट हुआ हो , वह शरीर ही मेरे लिए परमात्मा का स्वरूप है। आज मुझे " गुरुः साक्षात् परब्रह्म का अर्थ समझ में आ गया है। इस पृथ्वी पर अगर साक्षात् परमात्मा कोई है , तो वे गुरु हैं। बस ऐसे गुरु मिलने चाहिएँ , जहाँ जाकर परमात्मा की खोज समाप्त हो जाए। मैं आज अपने परमात्मा को नमन करता हूँ । गुरुदेव , परमात्मा तो मानने पर ही निर्भर होता है। कोई किसी में परमात्मा को देखता है , कोई किसी में। वास्तव में , परमात्मा तो प्रत्येक शरीर में होता ही है। पर जब ऐसा शरीर मिल जाए जिस शरीर में शरीर का बोध समाप्त हो गया हो , जो शरीर परमात्मामय हो गया हो , तो वह शरीर ही परमात्मा का स्वरूप है। मेरी आत्मा ने आज पूर्

Q & A

प्रश्न 6. बाबा के प्रति हमारी क्या प्रार्थना होनी चाहिए? स्वामीजी : हमे बाबा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वे हमें अनेक जन्मों द्वारा अर्जित पापों तथा ऋण से मुक्त करें । बाबा की कृपा के पूर्व हमें यह कहना चाहिए कि " हे बाबा ! हमें अपनी कृपा के योग्य बनाओं ।" उनकी कृपा प्राप्त करने के पूर्व कृपा के योग्य बनना अनिवार्य है , चाहे इसके लिए कितने ही कष्ट क्यों न सहने पड़ें ।

🌺 भीतर हूँ ! 🌺

सभी परमात्माओं को मेरा नमस्कार . . . ••● अपने आप को जानना ही समर्पण ध्यान है। यही पूर्ण समाधान है। जो प्राप्त होने पर समाधि लग जाती है। *अब मैं महसूस कर रहा हूँ कि अब मैं आपके अत्यंत करीब हूँ। अत्यंत पास हूँ। आपके ही भीतर हूँ। अब तुम्हारी हर साँस मैं महसूस कर रहा हूँ। तुम्हारे भीतर बाहर के वातावरण से उठने वाला प्रत्येक विचार देख पा रहा हूँ।* और उस विचार का 'मैं' के अहंकार से होने वाला प्रभाव भी अनुभव कर रहा हूँ। *माँ इतनी करीब अभी पहुँची नहीं थी। अपने बच्चों के करीब माँ को पहुँचने का समय अब मिला है। अब बाहरी भीड़ नहीं है , अब मैं और मेरा बच्चा ही है।* ••● बच्चे तू किसे खोज रहा है ? किसके लिए भटक रहा है ? किसके लिए योजनाएँ बना रहा है ? किसे पाने की लालसा कर रहा है ? क्या पाने की इच्छा कर रहा है ? क्या पाना चाहता है ? क्या खरीदना चाहता है ? क्यों खरीदना चाहता है ? जिसके लिए खरीदना चाहता है। वह उसमें नहीं है। यह बात वह खरीद कर ही तू जान पाएगा कि वह खरीद कर भी वह नहीं मिला जो तु पाना चाहता था। ••● फिर भी तू अनुभव से नहीं सीखेगा। अब तू अपने पाने का दूसरा लक्ष्य निर्धारित करेगा। फि