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••◆ सारे मनुष्यों का एक ही धर्म है। वह धर्म है 'प्रेम' !
••◆ मानव धर्म का यह एक ही गुणधर्म है , बाकी सब प्रक्रियाएँ हैं उसे जगाने की। जिस प्रकार अग्नि का गुणधर्म है जलना , पानी का गुणधर्म है बहना , इसी प्रकार से मानव का गुणधर्म है 'प्रेम'।
••◆ एक बार अंदर का प्रेम जागृत हो जाए तो कोई सीमा नहीं है। वह सारी सीमाएँ लाँघ सकता है , छोड़ सकता है।
••◆ प्रेम की शुरुआत सर्वप्रथम किसी एक व्यक्ति से करना आवश्यक है। किसी भी व्यक्ति को चुनो। आप अपनी पत्नी से शुरुआत कर सकते हो , आप अपने बच्चों से शुरुआत कर सकते हो , अपनी माता से शरुआत कर सकते हो , पिता से शरुआत कर सकते हो। किसी भी व्यक्ति को ढूँढो जिसके आप अपने से ज्यादा प्यार करते हो। आप उससे प्रेम कर सकते हो। अगर ऐसा कोई भी व्यक्ति आप की दुनिया में हो तो आपने पहला कदम पास कर लिया है।
••◆ उसके बाद में आप अपने परिवार से प्रेम कर सकते हो। अपने समाज से प्रेम कर सकते हो। अपने राष्ट्र से प्रेम कर सकते हो।
••◆ एक सैनिक जब सीमा पर अपनी जान देता है तब वह राष्ट्र से प्रेम करके अपनी जान न्योछावर करता है। वह है राष्ट्रप्रेम।
••◆ उस राष्ट्रप्रेम से बढ़कर विश्व-प्रेम है।
••◆ उस विश्व-प्रेम के लिए आपके भीतर भावना है तो आपके मन का विकास उस विश्व-स्तर पर पहुँच गया है। लेकिन भावना करने मात्र से वह नहीं हो सकता है। आप इच्छा करते हैं कि विश्व के एक-एक कण से में जुड़ जाऊँ , विश्व के एक-एक व्यक्ति से में जुड़ जाऊँ , विश्व के एक-एक देश से में जुड़ जाऊँ। क्योंकि जितनी आपकी जुड़ने की शक्ति , जुड़ने की प्रक्रिया विशाल होगी , उतनी ही विश्व की चेतना को झेलने की शक्ति आपके भीतर डेवलप होती जाएगी।
••◆ आप इच्छा करके भी विश्व-स्तर पर नहीं जुड़ सकते हैं।
••◆ लेकिन अगर आपके जीवन में एक ऐसा 'सद्गुरु' आ जाए , जो विश्व के प्रत्येक मानवमात्र से जुड़ा हुआ है। तो एक व्यक्ति से जुड़ने मात्र से ही सारी विश्व की चेतना से आप जुड़ सकते हो।
🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹
समर्पण विवाह महोत्सव - २००३ , मुलुंड (मुंबई)
मधुचैतन्य (पृष्ठ : १४,१६)
जनवरी, फरवरी, मार्च - २००३
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