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••◆ अभी हाल ही में महाशिवरात्रि के उत्सव के बाद मैंने मेरे पिताजी से भेंट की तो उन्होंने मुझसे ऐसे ही मझाक (मजाक) में कहा , "तेरे समान दाढ़ी बढ़ाकर बहुत लोग आजकल घूमते रहते हैं। अब ये शायद फैशन है।"

••◆ इसके पर बहन ने कहा वह महत्वपूर्ण है। -- बहन ने कहा , *"लेकिन उन लोगों के पीछे हजारों लोग जुड़े नहीं है। इसके पीछे जुड़े हुए हैं और जो जुड़े हैं , वह बाहरी दाढ़ी के कारण नहीं हैं। यह आत्मा ही कुछ अलग है। इसकी 'आत्मा श्रेष्ठ' होने के कारण ही वह अपने साथ हजारों लोगों को जोड़ पाई है।"*

••◆ अब मेरी बहन कोई साधिका नहीं है , फिर भी वह यह 'सत्य' बात जान पाई। अपने में कितने साधक है , जो यह बात जान पाए हैं यह मुझे प्रश्न है। क्योंकि अगर जान पाए होते तो शरीर का आकर्षण ही नहीं होता।

••◆ *शरीर तो केवल एक ढाँचा है , 'श्रेष्ठ आत्मा' तो भीतर है और भीतर को जानने के लिए भीतर जाना होगा। जब-तक आप भीतर नहीं जाते , तब-तक उस भीतर की 'श्रेष्ठ आत्मा' के दर्शन नहीं हो सकते हैं। उस श्रेष्ठ आत्मा के साथ लाखों साधकों की 'सामूहिक शक्ति' है और सामूहिक आत्माओं का समूह ही 'परमात्मा' है। आपका ध्यान उस भीतर की 'श्रेष्ठ आत्मा' के ऊपर होना चाहिए।*

••◆ लेकिन यह तभी संभव है जब आप *अपने-आपको आत्मा समझें और फिर आत्मा की आँख से देखें , तो शरीर ही के भीतर की 'श्रेष्ठ आत्मा' नजर आएगी।*

••◆ मेरे शरीर में एक आकर्षण है , मेरी 'वाणी' में एक आकर्षण है , यह मैं जानता हूँ और आप केवल उसी बाहरी बातों के चक्कर में न आएँ इसीलिए मैं सदैव आपको मेरे से दूर रखने का प्रयास करता हूँ।

••◆ क्योंकि मैं चाहता हूँ आपका चित्त भीतर के माल पर रहे , ऊपर के पॅकिग पर नहीं। क्योंकि पॅकिग ही देखते रहे , तो १० साल तो जीवन के चले गए , अब बाकी जीवन ही बीत जाएगा , तो भीतर के 'माल का स्वाद' कब लोगे ? १० साल में अभी तो पॅकिंग ही खुला नहीं है !

••◆ *कभी तो जानने का प्रयास करो कि इस सामान्य से मनुष्य में असामान्य ऐसा क्या है , जो दिखता नहीं है पर अनुभव होता है।*

••◆ *यह अनुभव ही श्रेष्ठ आत्मा की 'पवित्र अनुभूति' है और इस 'पवित्र' अनुभूति के आधार पर ही 'समर्पण ध्यान' टिका हुआ है।*

••◆ यह ‘विश्व का एकमात्र संगठन' है , जो एक पवित्र अनुभूति के आधार पर खड़ा है और इसके दरवाजे प्रत्येक मनुष्य मात्र के लिए खुले हैं।

••◆ यह परमात्मा की पवित्र अनुभूति सभी मनुष्यों को एक समान होती है। फिर वह मनुष्य किसी भी जाति , धर्म , रंग , देश , भाषा का क्यों न हो।

••◆ अभी तक १० साल में श्रेष्ठ आत्मा की अनुभूति तक पहुँचे हो और *अभी 'श्रेष्ठ आत्मा' तक पहुँचना बाकी है और उस 'श्रेष्ठ आत्मा' तक पहुँचने के लिए 'पवित्र आत्मा' बनना होगा।*

••◆ शरीर के *दुर्गुणों* से मुक्त होना होगा। *'वैर रहित'* चित्त करना होगा। *'वासना रहित'* चित्त करना होगा। *'काम रहित'* चित्त करना होगा। *'अहंकार रहित'* चित्त करना होगा। ये शरीर के *विकारों* से मुक्ति पानी होगी और यह सब इसी समाज में रहकर है करना होगा।

••◆ 'आत्मशांति से ही विश्वशांति' संभव है। तभी हमारे पूर्वजो ने देखी हुई वसुधैव कुटुम्बकम् की कल्पना साकार होगी।

*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
दिनांक : ४/४/२०११

*।। आत्मा की आवाज़ ।।*
(पृष्ठ : ७९-८१)

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