आत्मा कहती है , वह करो
••● अभी मैं यज्ञशाला से आ रहा था। कोई कार्यक्रम निश्चित नहीं था , अचानक मैं यज्ञशाला में घुस गया और वहाँ पूरा राऊंड मार करके वापस आया।
••● क्योंकि कोई मुझे वहाँ पर बुला रहा था। लेकिन बुला रहा था एक व्यक्ति , पहुँचा सबके लिए !
••● तो एक व्यक्ति भी अगर अच्छा सोचता है , एक व्यक्ति भी भला सोचता है , तो सबका भला उसी में निहित है। सिर्फ एक व्यक्ति की इच्छा के कारण मैं अंदर आ गया था।
••● तो आपकी छोटी-छोटी इच्छा भी के लिए मैं बँधा हूँ। लेकिन पहले उस संबंध का भी निर्माण करो और वह संबंध निर्माण होने के बाद एक भीतरी संबंध निर्माण हो जाएगा , जो भीतरी संबंध आठ सौ साल पुराना है।
••● आप सोचो ना , इतने चंद दिनों में इतना आत्मीय संबंध जब हमारा हमारे परिवार लोगों के साथ नहीं होता है , तो स्वामीजी के साथ कैसे हो गया ? कोई ना काई पुराना रिश्ता होगा , कोई ना कोई पुराना रिलेशन होगा। उसको आत्मा समझ पा रही है , शरीर नहीं।
••● इसलिए आवश्यकता है , उस रिश्ते को समझो। और अगर नहीं समझता है , तो जो आत्मा कहती है , वह करो।
••● मेरी भी इच्छा है - एक बार आपकी आत्मा आपका गुरु बन जाए। बस ! मेरा कार्य हो गया ! मेरा उतना ही कार्य है - आपको आपकी आत्मा का एहसास कराना।
••● जो एक बार आपकी आत्मा सबल हो गई , मजबूत हो गई , सुदृढ़ हो गई , सशक्त हो गई , तो मुझे आपकी फिकिर नहीं है। तो फिर वही आपको बराबर ठिकाने पर ले जाएगी।
••● जहाँ नीचे उतरकर दो डंडे देता है ग्वाला , वैसे दो डंडे देगी। बराबर सड़क पर रखेगी , बराबर पहुँचाएगी , चलाएगी।
••● सिर्फ आप आत्मा को गुरु बनाओ। आपके अंदर का सभी का आत्मतत्त्व जागृत हो , इसी शुद्ध इच्छा के साथ , नमस्कार !
🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹
चैतन्य महोत्सव २००५ - समर्पण आश्रम
मधुचैतन्य (पृष्ठ : २८)
अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर - २००५
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