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★ प्रत्येक व्यक्ति में , प्रत्येक नर में नारायण छिपा हुआ है। प्रत्येक आत्मा में परमात्मा छिपा हुआ है। आवश्यकता है नर के आवरणों को उतार फेंकने की। आवश्यकता है नर के ऊपर पड़े हुए धूल को झाड़ देने की। जैसे ही धूल झाड़ेंगे , वैसे ही नारायण का स्वरूप प्रकट हो ही जाएगा।

★ लेकिन वो प्रकट करने के लिए , नर से नारायण बनने के लिए नारायण का ही साथ चाहिए। यह नर के बस का हे ही नहीं। इसलिए जब तक उस नारायण की कृपा नहीं होती है , तब तक इस मार्ग में प्रगति हो ही नहीं सकती , प्रोग्रेस हो ही सकती।

★ नारायण कोई देह का नाम नहीं है। नारायण किसी जगह का नाम नहीं है। नारायण किसी मूर्ति का नाम नहीं है। नारायण एक वैश्विक चेतना है , वैश्विक शक्ति है जो सारे चराचर में व्याप्त है , सारे संसार में व्याप्त है। उसका अंश प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है। प्रत्येक व्यक्ति में बैठा हुआ है।

★ इस नर से नारायण बनने की प्रक्रिया में , साक्षात जिसे हम नारायण कहते हैं , उन्होने भी एक सहारा लिया था , उन्होंने भी एक शरण खोजी थी। जिस शरण खोजने के बाद नारायण का स्वरुप प्रकट हो गया। वह स्थान कौनसा था ? वह जगह कौनसी थी जिसे हम नारायण कहते हैं ? नारायण ने भी जिस स्थान का सहारा लिया है , नारायण ने भी जिस स्थान में शरण ली है वह स्थान है - गुरुकृपा।

★ बिना गुरुकृपा के कुछ भी संभव ही नहीं है। आपके भीतर कितनी भी संभावनाएँ है , आपके भीतर कितनी भी शक्तियाँ है , वे सारी शक्तियाँ व्यर्थ हैं , जब तक आपके ऊपर गुरुकृपा नहीं होती है। गुरुकृपा के बिना नर से नारायण बनने की प्रक्रिया असंभव ही है।

★ फिर उस कृपा को कैसे प्राप्त किया जाए ? उस कृपा को कैसे जाना जाए ? तो जिन्होंने इसे प्राप्त किया है , उनको अगर हम आदर्श मानते हैं। उन्होंने जिस प्रकार से इसे जाना है , जिस प्रकार से प्राप्त किया है उसी को अगर हम आदर्श मानते हुए चलते हैं , जिन्होंने अपने अंदर के नर से नारायण बनने की प्रक्रिया में सफलता प्राप्त की है , जो अपने स्वरूप को प्रकट कर सके है।

★ उनको अगर हम आदर्श मानते हैं। तो वह आदर्श है गुरु साक्षात परब्रह्म देखने का दृष्टिकोण उन आदर्श व्यक्तियों ने प्राप्त किया था। वे सिर्फ कहते नहीं थे , सारे ब्रह्म के दर्शन , सारे ब्रह्मांड के दर्शन , सारी विश्व चेतना के दर्शन जो अपने गुरु में पाते थे। उनका सारा केंद्रियकरण , उनकी सारी एकाग्रता , जिस एक स्थान पर केंद्रित होती थी वो स्थान था - गुरुचरण।

★ गुरुचरण के कारण ही , एक ही स्थान पर होने के कारण ही , सारी विश्व चेतना का ध्रुवीकरण उन गुरुचरणों में सीमित होता था।

★ विश्व में व्याप्त सारे चैतन्य को समझने की आवश्यकता नहीं है। विश्व चेतना को समझने की आवश्यकता नहीं है।

★ प्रत्येक मनुष्य में नारायण छुपा हुआ है। उसमें से एक नारायण पर ही हम हमारा केन्द्रीयकरण करते हैं , हमारी एकाग्रता करते हैं , तब नारायण का पूर्ण स्वरूप हमें वहाँ से ही प्राप्त होता है।

🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹

- श्री स्वामीनारायण गुरुकुल हॉल - भावनगर
दिनांक : ८/१/२००२

मधुचैतन्य (पृष्ठ : ३४)
जनवरी, फरवरी, मार्च - २००२

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