आपके जन्म लेने का उद्देश्य
••◆ आकाश से बरसी हुई बरसी हुई पानी की बूँद को ही 'गुरु' मान लेना चाहिए। आकाश से बरसी हुई वर्षा की प्रत्येक बूँद , फिर वह चाहे जमीन पर गिरे , पत्थर पर गिरे , मकान पर गिरे , नदी में गिरे , *प्रत्येक बूँद का गिरने का एक ही लक्ष्य होता है - विशाल समुद्र तक पहुँचना। और जब तक वह पहुँचती नहीं है , तब तक उसकी प्रक्रिया चलते ही रहती है।*
••◆ *विशाल समुद्र की सामूहिकता से वह दूर हुई थी , तभी वह सागर से बूँद बन गई थी और फिर वह बूँद फिर से सागर की विशाल सामूहिकता में समाना चाहती है। अब यह कितने प्रयत्नों में होता है , यह सब उसके जीवन में आए अनुभव और सामूहिक प्रयास पर ही निर्भर करता है।*
••◆ वह प्रथम बार एक पत्थर पर गिरती है तो तपे हुए पत्थर पर वह क्षण में ही भाप बन जाती है। अगली बार तपी हुई रेत पर गिरती है तो भी भाप बन जाती है। बाद में एक खेत में गिरती है तो जमीन ही उसे सोख लेती है। और *यह सब इसलिए होता है क्योंकि आसमान से जमीन पर गिरने का उद्देश्य उसे याद नहीं रहता है। लेकिन जब आसमान से गिरते समय ही गिरने का उद्देश्य याद रहता है , उसे याद रहता है कि वह केवल और केवल अथाग (अथाह) सागर तक पहुँचने के लिए ही गिर रही है तो फिर वह सामूहिकता में 'अनुशासन' के साथ गिरती है।*
••◆ अनुशासन के साथ ही और बाकी सारी , इसी उद्देश्य से गिरी हुई बूँदों के साथ ही गिरती है और रहती है। *सामूहिकता में अपना 'स्वयं-अनुशासन' बनाए रखती है , अपने आप पर नियंत्रण रखती है। न सामूहिकता के आगे जाती है और न आलस कर के पीछे रहती है।* और सामूहिकता में जमीन पर गिरकर एक झरना बनती है। एक छोटे झरने से बड़ा झरना , बड़े झरने से छोटी नदी और छोटी नदी से बड़ी नदी के साथ-साथ बहकर समुद्र में विलीन हो जाती है। *समुद्र में विलीन हो जाने पर उसका अपना नदी का अस्तित्व भी नहीं रह जाता है क्योंकि तब वह 'समुद्र' कहलाती है।*
••◆ समुद्र वह स्थान है जहाँ से बूँद पिछड़ी थी। आज उसी समुद्र में वह समाहित हो गई। और यह सफलता उसे केवल सामूहिकता के कारण प्राप्त हुई।
••◆ *जिस प्रकार से आकाश पर गिरनेवाली प्रत्येक बूँद का उद्देश्य समुद्र में समाहित होना है , ठीक इसी प्रकार से , इस धरती पर जन्म लेनेवाली प्रत्येक आत्मा का उद्देश्य ही 'मोक्षप्राप्ति' है। बस बचपन में ४-५ सालों तक यह सब उद्देश याद रहता है , बाद में सब भूल जाते हैं।*
••◆ इसलिए , अब छोटे बच्चे बनो ताकि आपको आपके जन्म लेने का *'उद्देश्य'* याद आ जाए। ठीक उसी प्रकार से *इस 'समर्पण ध्यान' में आप क्यों आए , यह 'उद्देश्य' याद रखो तो बाकी सारी , फालतू बातें समाप्त हो जाएँगी।*
*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
*।। सद्गुरु के हृदय से ।।*
(पृष्ठ : १७-१९)
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