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••◆ *वृद्ध अवस्था में 'ध्यान' सभी बुढ़ापे की समस्याओं का एकमात्र रामबाण उपाय होता है।* क्योंकि ध्यान से शरीरभाव कम हो जाता है तो शरीर की तकलीफें भी कम महसूस होती हैं।

••◆ दूसरा , अपने को कभी अकेलापन महसूस नहीं होता। हम अपने आप को अपने 'सद्गुरु' के सानिध्य में ही महसूस करते हैं। *आप केवल महसूस करो कि मैं 'स्वामीजी' के साथ हुँ। तुरंत आपके हाथ में चैतन्य बहना प्रारंभ होगा क्योंकि स्वामीजी के सूक्ष्म शरीर का विश्व बहुत बड़ा है। वह तो सदैव आपके साथ ही होते हैं , पर आप उनके साथ कभी-कभी ही होते हो।*

••◆ इसलिए , *नियमित ध्यान करो तो आत्मा की पवित्रता बनी रहेगी।* जो हो सके तो गुरुकार्य करो - साहित्य बाँटना , प्रचार करना , दान देना , और कुछ भी करने की शारीरिक स्थिति में न हो तो ध्यान का प्रचार-प्रसार हो , यह प्रार्थना करके भी हम गुरुकार्य से जुड़ सकते हैं। हो सके तो , एक माह या सालभर जाकर किसी आश्रम में अपनी सेवाएँ दें। लेकिन *जो भी अब करो , वह अपनी आत्मा को प्रसन्न करने के लिए करें। निःस्वार्थ भाव से करें। निःस्वार्थ भाव ही आत्मा का प्रथम गुण है।*

••◆ *अब मैं भी आपके सामान बूढ़ा हो गया हूँ। इसलिए , मेरा आपके पास आना और पहले जैसा समय देना संभव नहीं है।* और आप भी पहले जैसे बार-बार आ सके इस स्थिति में नहीं है। इसलिए , आपके लिए जो भी मन में था वह सब इस संदेश के माध्यम से ही कह रहा हूँ।

••◆ हमारे घर में माँ खाना बनाती है और सभी को प्रेम से खिलाती है और घर में पाँच ही सदस्य हों तो वह सारा समय उन पाँच सदस्यों को ही देती है। तब तक तो ठीक था। लेकिन *अब तो 'माँ' के रसोईघर में लाखों लोग भीतर जा रहे हैं और भोजन कर तृप्त होकर बाहर आ रहे हैं। यानी माँ का कार्य खूब अधिक बढ़ गया है।* आप तब भी सोचें की माँ हमें १६ साल पहले जैसा समय देती थी वह दे , तो वह माँ के साथ नाइन्साफी होगी। क्योंकि *माँ का कार्य अत्यधिक बढ़ गया है।* मेरी भी स्थिति उस रसोईघर के माँ जैसी ही है।

••◆ इसलिए *अब आप मुझसे , पहले जैसे समय दे , यह 'अपेक्षा' न रखें। आप यकीन मानिए , मैं आप ही के पास , आप ही के घर में हूँ। बस , आप याद तो करके देखें , आप मुझे अपने पास ही पाएँगे।*

••◆ अब यह संदेश पढ़कर ही *आपको मैं आपके साथ ही हूँ , यह अनुभव 'चैतन्य' के द्वारा होगा। मेरी निकटता का अनुभव 'आत्मा' को होगा* और आप भी शरीर से महसूस करेंगे ही , क्योंकि यह संदेश मैंने आपको ही अपने चित्त में रखकर लिखा है।

••◆ यह संदेश वात्सव में 'अनुभूति' के माध्यम से ही है। 'संदेश' के साथ भेजी गई 'अनुभूति' आप सभी को हो और आपकी *वृद्ध अवस्था में आप एक मुक्त अवस्था को प्राप्त हों यही प्रभु से प्रार्थना है।* आपको खूब-खूब आशीर्वाद।

आपका ,
*बाबा स्वामी*
१६/०२/२०१७

*।। पवित्र आत्मा ।।*
(पृष्ठ : ९३,९४)

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