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••◆ मैं कई बार आपको शिर्डी के साईबाबा की बातें करता हूँ। क्योंकि उन्होंने धर्मो के परे बात की है, कि धर्म हमारा शाश्वत नहीं हैं और जो चीज़ पकड़ में नहीं आ रही हो उसके ऊपर क्यू बात करनी ! आप लोगों को बताओं की इस ध्यान में धर्मो का कुछ भी नहीं है। समर्पण ध्यान तो धर्म से परे है !

••◆ अगर आपको नकारात्मक विचार आते हैं , उसका कारण यह है की आपका आपके सद्गुरु के प्रति पूर्ण विश्वास नहीं है। और विश्वास इसलिए नहीं है कि आपका आपके सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण नहीं है।

••◆ जो नया कुछ ग्रहण करने को तैयार नहीं है_ उसके लिए यह समर्पण ध्यान नहीं है। जो व्यक्ति नया कुछ ग्रहण करने को तैयार है उसीके लिए समर्पण ध्यान है।

••◆ आपके कार्य में जितनी भी ज्यादा बाधाएँ आती है_ तो समझो उतना वो कार्य अधिकतम लोगों तक पहुँचेगा।

••◆ जब भी आप प्रचार करने के लिए जाते हो तो पहले स्वामीजी की बात करते हो , फिर आश्रम की बात करते हो और सबसे आखिर में ध्यान की बात करते हो। - जबकी आवश्यकता है_ पहले ध्यान के बारे में बात करो। उसके बाद वो अगर पूछें कि आपका आश्रम किधर है ? तो उसको आश्रम के बारे में बताओं। ओर सबसे आखिर में स्वामीजी के बारे में बताओं।

••◆ हमें बाहरी विकास पे नहीं बल्कि भीतरी विकास पे ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे हम अपना अस्तित्व अलग बना देते है तो हम पानी की बूँद के समान होते हैं। हमें बूँद नहीं बल्कि सागर बनने की आवश्यकता है।

••◆ आप लोग क्या करते हो कि किसीको कुछ समस्या होती है तो उसको बोलते हो कि तु स्वामीजी के कार्यक्रम में जा , तेरी सारी समस्या दूर हो जाएगी ! तो ऐसा मत करो। उसको नियमित ध्यान करने के लिए बोलों।

••◆ ये संपूर्ण पद्धति श्रद्धा और विश्वास के ऊपर ही आधारित है।

••◆ श्रद्धा करके आपका ही विकास हो रहा है। श्रद्धा करके आप किसीके भी ऊपर उपकार नहीं कर रहे हो। आप आपकी श्रद्धा बढ़ाके शक्तियां जागृत कर रहे हो।

••◆ जितनी आप श्रद्धा बढ़ाओगे उतनी आपकी आध्यात्मिक उन्नति होगी।

*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*
दिनांक : १/२/३ मई २००७

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