सद्गुरू ओशो on गुरूशक्तिअवतरण
दुनिया में जो मनुष्य जाति का जीवन और चेतना रोज नीचे गिरती जा रही है। उसका एक मात्र कारण है कि दुनियां के दंपति श्रेष्ठ आत्माओं का जन्म देने की संभावना और सुविधा पैदा नहीं कर पा रहे। जो सुविधा पैदा की जा रही है, वह अत्यंत निकृष्ट आत्माओं के पैदा होने की सुविधा है।
आदमी के मर जाने के बाद जरूरी नहीं है कि उस आत्मा को जल्दी ही जन्म लेने का अवसर मिल जाए। साधारण आत्माएं, जो न बहुत श्रेष्ठ होती है, और न निकृष्ठ होती है। तेरह दिन के भीतर नए शरीर की खोज कर लेती है। लेकिन बहुत निकृष्ट आत्माओं को रूकना पड़ता है। क्योंकि उतना निकृष्ट अवसर मिलना मुश्किल है। उन निकृष्ट आत्माओं को ही हम प्रेत कहते है। बहुत श्रेष्ठ आत्माएं भी रूक जाती है। क्योंकि उन्हें श्रेष्ठ अवसर उपलब्ध नहीं मिलता। उन श्रेष्ठ आत्माओं को हम देवता कहते है।
पहली पुरानी दुनिया में भूत-प्रेतों की संख्या बहुत ज्यादा थी और देवताओं की संख्या बहुत कम। आज की दुनियां में भूत-प्रेतों की संख्या बहुत कम हो गई है और देवताओं की संख्या बहुत। क्योंकि देवता पुरूषों को पैदा होने का अवसर बहुत कम हो रहा है। भूत-प्रेतों को पैदा होने का अवसर बहुत तीव्रता से उपलब्ध हुआ है। तो जो भूत प्रेत रुके रह जाते है। मनुष्य के भीतर प्रवेश करने से, वे सारे के सारे मनुष्य जाति में प्रविष्ट हो गए है। इसीलिए आज भूत-प्रेत का दर्शन मुश्किल हो गया है। क्योंकि उसके दर्शन की कोई जरूरत नहीं है, आप अपने चारों और आदमी को देख लें, और उसका दर्शन हो जाता है। और देवता पर हमारा विश्वास कम हो गया है। क्योंकि देव पुरूष ही जब दिखाई न पड़ते हो तो देवता पर विश्वास करना बहुत कठिन है।
मनुष्य जाती की दांपत्य की सारी की सारी व्यवस्था कुरूप, अगली और परवर्टेड है।
पहली तो बात यह है कि हमने हजारों साल से प्रेमपूर्ण विवाह बंद कर दिए है। और विवाह हम बिना प्रेम के करते है। जो विवाह बिना प्रेम के होगा, उस दंपति के बीच कभी भी वह आध्यात्मिक संबंध उत्पन्न नहीं होता जो प्रेम से संभव था। उन दोनो के बीच कभी भी वह हार्मनी, कभी भी वह एकरूपता और संगीत पैदा नहीं होता, जो एक श्रेष्ठ आत्मा के जन्म के लिए जरूरी है। उनका प्रेम केवल साथ रहने की वजह से पैदा हो गया सहचर्या होता है। उनके प्रेम में वह आत्मा का आंदोलन नहीं होता, जो दो प्राणों को एक कर देता है।
पुरूष और स्त्री के मिलने से जिस बच्चे का जन्म होता है। वह उन दोनों व्यक्तियों में कितना गहरा प्रेम है, कितनी आध्यात्मिकता है। कितनी पवित्रता है, कितने प्रेयर फुल है, कितने प्रार्थना पूर्ण ह्रदय से एक वे एक दूसरे के पास आये है। इस पर निर्भर करता है। इस प्रेम और समर्पण की भाव दिशा में कितनी ऊंची आत्मा उनकी तरफ आकर्षित होती है, कितनी विराट आत्मा उनकी और खिंची चली आती है। कितनी महान दिव्य चेतना उस घर को अपना अवसर बनाती है, इस पर निर्भर करता है।
मनुष्य जाति क्षीण और दीन और दरिद्र और दुःखी होती चली जा रही हे। उसके बहुत गहरे में कारण मनुष्य के दांपत्य का विकृत होना है। और जब तक हम मनुष्य के दांपत्य जीवन को सुकृत नहीं कर लेते, सुसंस्कृत नहीं कर लेते, जब तक उसे हम स्प्रिचुएलाइज नहीं कर लेते, जब तब तक हम मनुष्य के भविष्य को सुधार नहीं सकते। और दुर्भाग्य में उन लोगों का भी हाथ है, जिन लोगों ने गृहस्थ जीवन की निंदा की है और संन्यासी जीवन का बहुत ज्यादा शोरगुल मचाया है। उनका हाथ है। क्योंकि एक बार जब गृहस्थ जीवन कंडेम्ड़ हो गया, निंदित हो गया, तो उस तरफ हमने विचार करना छोड़ दिया।
नहीं, मैं आपसे कहना चाहता हूं, संन्यास के रास्ते से बहुत थोड़े से लोग ही परमात्मा तक पहुंच सकते है। बहुत थोड़े-से लोग, कुछ विशिष्ट तरह के लोग, कुछ अत्यंत भिन्न तरह के लोग संन्यास के रास्ते से परमात्मा तक पहुंचने है। अधिकतम लोग गृहस्थ के रास्ते से और दांपत्य के रास्ते से ही परमात्मा तक पहुंचते है। और आश्चर्य की बात है कि गृहस्थ के मार्ग से पहुंच जाना अत्यंत सरल है, सुलभ है, लेकिन उस तरफ कोई ध्यान नहीं देता। आज तक का सारा धर्म संन्यासियों के अति प्रभाव से पीड़ित है। आज तक का पूरा धर्म गृहस्थ के लिए विकसित नहीं हो सका। और अगर गृहस्थ के लिए धर्म विकसित होता, तो हमने जन्म के पहले क्षण से विचार किया होता कि कैसा आत्मा को आमंत्रित करना है, कैसी आत्मा को पुकारना है, कैसी आत्मा को प्रवेश देना है जीवन में।
अगर अध्यात्म की ठीक-ठीक शिक्षा हो सके और एक-एक व्यक्ति को अगर अध्यात्म की दिशा में ठीक दिशा दी जा सके, तो बीस वर्षो में आने वाली मनुष्य की पीढ़ी को बिलकुल नया बनाया जा सकता है।
वह आदमी पापी है जो आदमी आने वाली आत्मा के लिए प्रेमपूर्ण निमंत्रण
भेजे बिना भोग में उतरता है। वह आदमी अपराधी है, उसके बच्चे नाजायज है—चाहे उसे बच्चे विवाह के द्वारा पैदा किए हों—जिन बच्चों के लिए उसने अत्यंत प्रार्थना और पूजा से और परमात्मा को स्मरण करके नहीं बुलाया है। वह आदमी अपराधी है। सारी संततियों के सामने वह अपराधी रहेगा। कौन हमारे भीतर प्रविष्ट होनेवाली आत्मा की फिकर करते हैं? हम शिक्षा की फिक्र करते है, हम वस्त्रों की फ्रिक करते है, हम बच्चें के स्वास्थ की फिक्र करते है, लेकिन बच्चों की आत्मा की फिक्र हम बिलकुल ही छोड़ दिए है। इससे कभी भी कोई अच्छी मनुष्य जाति पैदा नहीं हो सकती है।
|| ओशो ||
इस msg को ज्यादा से ज्यादा share करे ताकि सबको पवित्र आत्माओ को अवतरित करने की प्यास जगे।
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