सत्य की अनुभूति

सत्य की जहाँ अनुभूति हो जाए , बस वह स्वरूप ही सत्य है। वह माध्यमरूपी शरीर जो सत्य के दर्शन करा सका , वही सत्य इसलिए भी है क्योंकि उस शरीर में शरीर का भाव ही बाकी नहीं रहा है। शरीर जीवित है , पर शरीर का भाव नहीं है क्योंकि शरीर ही परमात्मामय हो गया है।

ऐसा ' परमात्मामय शरीर जिसका शरीर का भाव ही बाकी नहीं है , जो परमात्मा का माध्यम बन चुका है , जो शरीर ब्रहा हो गया हो , परमात्मा जिस शरीर से प्रकट हुआ हो , वह शरीर ही मेरे लिए परमात्मा का स्वरूप है। आज मुझे " गुरुः साक्षात् परब्रह्म का अर्थ समझ में आ गया है। इस पृथ्वी पर अगर साक्षात् परमात्मा कोई है , तो वे गुरु हैं। बस ऐसे गुरु मिलने चाहिएँ , जहाँ जाकर परमात्मा की खोज समाप्त हो जाए। मैं आज अपने परमात्मा को नमन करता हूँ ।

गुरुदेव , परमात्मा तो मानने पर ही निर्भर होता है। कोई किसी में परमात्मा को देखता है , कोई किसी में। वास्तव में , परमात्मा तो प्रत्येक शरीर में होता ही है। पर जब ऐसा शरीर मिल जाए जिस शरीर में शरीर का बोध समाप्त हो गया हो , जो शरीर परमात्मामय हो गया हो , तो वह शरीर ही परमात्मा का स्वरूप है। मेरी आत्मा ने आज पूर्ण रूप से आपको परमात्मा मान लिया है। और यह मानना मेरे मन का भाव है। इसलिए मैं अपना भाव ही आपके सामने प्रकट कर रहा हूँ। मैं आपको ही परमात्मा मान रहा हूँ और आपको ही आज का परमात्मा मानकर नमस्कार करके आपके श्रीचरणों में प्रार्थना कर रहा हूँ कि आप मुझे अपना माध्यम बनाइए। परमात्मा के जैसे शुद्ध , पवित्र माध्यम आप बन सके , वैसा शुद्ध माध्यम आप मुझे बनाइए। मैं जानता हूँ कि मैं इसके योग्य नहीं हूँ , पर आपकी कृपा में असंभव भी

हिमालय का समर्पण योग
भाग १  - ३४६

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