ЁЯМ║ рейреж рдоिрдиिрдЯ ЁЯМ║
सभी पुण्यात्माओं को मेरा नमस्कार . . .
••● हम जिस प्रकार से अपना घर बनाने के लिए या अपनी लड़की की शादी के लिए या अपने लड़के की शिक्षा के लिए धन का संचय करते हैं और उसे ऐसी जगह लगाते हैं जिससे वो अधिक से अधिक बढ़े , जैसे सोने में या शेअर्स में या फंड में , ताकि अपने-अपने भविष्य की आवश्यकताएँ पूर्ण हो सकें। यह सब स्वयं के लिए कुछ नहीं करते हैं। मैं स्वयं के लिए उस बचत की बात कर रहा हूँ , जो हमारे जीवन के अंतिम क्षण तक हमारे काम में आने वाली है। मेरा आशय , हम अपने स्वयं के लिए बिल्कुल 'समय' ही नहीं देते। आवश्यकता है , अपने-आपको समय देने की। आप कितने भी धनवान हो , अगर आप अपने-आपको समय नहीं देते , तो आप सबसे अधिक गरीब व्यक्ति हो।
••● पूर्वजन्म के अच्छे कर्मों से आपको 'सद्गुरु' के माध्यम से परमात्मा ने ध्यान का 'बीज' दिया है। वह बीज पाकर भी आप अगर उसे वृक्ष न बना पाए , तो आपके जैसा दुर्भाग्यशाली कोई व्यक्ति नहीं है। आप जो कुछ समय गँवा रहे हो , यह अंतिम क्षणों में कुछ भी काम नहीं आएगा। धन , संपत्ति , सभी घरवार , रिश्तेदार छोड़कर अकेला . . अकेले 'आत्मा' के साथ अंतिम सफर करना होगा। जब तक शरीर में आत्मा है , तभी तक सब कुछ है। बाद में तो अपने सगे वाले चंद घण्टों में शरीर को फूंक देंगे। क्योंकि आत्मा के बिना तो शरीर भी 'बदबू' मारने लग जाता है। अभी भी जाग जाओ और केवल अपने दिन के १४४० मिनिट में से केवल ३० मिनिट अपने आपको देना प्रारंभ करें।
••● जैसा मैं कहता हूँ , आप आपके केवल ३० मिनिट मुझे दान करो। क्या है , जो वस्तु दान की जाती है , उसपर हमारा कोई अधिकार ही नहीं रहता। आप अगर ३० मिनिट दान करोगे , उन ३० मिनिट पर आपका कोई अधिकार ही नहीं होगा। फिर आपका दिन २३ ।। (साढ़े तेईस) घण्टे का ही होगा। आप केवल ३० मिनिट मुझे दान करके शांत बैठो। आगे का सब गुरुशक्तियाँ कर लेंगी। हाँ ! कोई भी 'अपेक्षा' के साथ मत बैठो। 'अपेक्षा' ध्यान साधना को अपवित्र करती है।
••● आप ३० मिनिट शांत बैठो। हो सकता है , पहले आपको आपका शरीर ही विरोध करे। वह कितना ही विरोध करे आप नियमित बैठना प्रारंभ करो। तो कुछ दिन बाद शरीर पर भी नियंत्रण हो जाएगा। हो सकता है उन २० मिनिट में अनेक विचार आएँ तो आने दो। उन्हें भी रोकने का प्रयास मत करो। केवल जो विचार आ रहे हैं उनका 'साक्षी' भाव से केवल निरीक्षण करो। वे आएँगे और जाएँगे। वे विचार कभी स्थाई नहीं हो सकते। कुछ दिन बाद अनेक विचार कर होकर फिर किसी एक समस्या पर ही आएँगे। यह आध्यात्मिक प्रगति की पहली पादान है , ऐसा समझो। हो सकता है , बाद में बुद्धि आपको ध्यान में से उठाने के लिए आवश्यक बात याद दिलाएगी। वह भी बुद्धि की आपको उठाने की तरकीब है , ऐसा समझो। उधर भी ध्यान मत दो। आप चाहे तो ३० मिनट बाद का अलार्म लगाकर बैठ सकते हैं। जब तक घडी का अलार्म नहीं बजता , तब तक आँखे खोलना ही नही है। चाहे तो आँखों पर पट्टी बाँध लो या कानों में रुई ठुस लो , ताकि बाहरी आवाजें ध्यान में बाधा न बनें।
••● ध्यान तो परमात्मा का कृपा प्रसाद है , पर वह पाने के लिए हमें सतत साधना की आवश्यकता होती है। आपको कुछ दिनों की साधना के बाद , आपको अनुभव होगा कि आपके ही भीतर से आपको ब्रह्मनाद सुनाई आना प्रारंभ होगा और वो सुनाई आने पर बडा ही 'आनंद' आएगा। वह आनंद का वर्णन किया ही नहीं जा सकता है। आत्मसाक्षात्कार पाना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। पर वह किस जन्म से मिलेगा यह निश्चित नहीं होता। आपको इस जन्म में मिला है तो आप नियमित साधना करके इसी जन्म में इस शरीर के भाव से मुक्त होइए। शरीर भाव से 'मुक्त' होना ही मोक्ष है और वह जीतेजी ही पाना होता है। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि नियमित साधना करके आप उस मुक्त स्थिति को पा सकते हैं।
••● मैंने इसी मार्ग से वह स्थिति पाई है। और अपने अनुभव से वही मार्ग मैं आपको भी बता रहा हूँ। आप सभी इसी जन्म में ही वह मुक्त स्थिति को पाएँ यही प्रभु से प्रार्थना है।
आप सभी को खूब-खूब आशीर्वाद !
आपका ,
बाबा स्वामी
मधुचैतन्य २०१९
जनवरी-फरवरी
पूज्य गुरुदेव के आशीर्वचन
Comments
Post a Comment