आलसी साधक

••◆ *'आलसी'* साधक, जो आलस करके ध्यान नहीं करते और वो सामूहिकता की 'छत्री' से बाहर हो जाते हैं।

••◆ ऐसे साधक अपने पूर्वजन्म के पुण्यकर्म के कारण इस जीवन में आत्मसाक्षात्कार तो प्राप्त कर लेते हैं।
- पर *आलस के कारण नियमित ध्यान नहीं कर पाते हैं और न ही सामूहिकता में जा पाते हैं और धीरे-धीरे ध्यान से ही बाहर हो जाते हैं।*

••◆ इस कारण से भी ध्यान छुटने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है।

••◆ *यह लोग लाखों की संख्या में हैं। यह लोग लाखों की संख्या में आए पर आजतक १ % भी टिक नहीं पाए हैं।*

••◆ *यह पहले अनियमित होते हैं और बाद में , यह परिस्थिति समाप्त हो जाए मैं फिर ध्यान करूँगा , ऐसा सोचते हैं ; और परिस्थिति के चक्कर में कभी भी ध्यान नहीं प्रारंभ कर पाते हैं।*

••◆ मेरा ऐसे साधकों से कहना है कि *तुम्हारी भीतर की स्थिति खराब है इसलिए बाहर की परिस्थिति भी खराब है। तुम भीतर की स्थिति ठीक कर लोगे तो बाहर की स्थिति स्वयं ही ठीक हो जाएगी।*

••◆ अरे बाबा , बाहर की परिस्थिति खराब इसलिए हुई है क्योंकि भीतर की स्थिति खराब है।

••◆ *इसलिए ध्यान के मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं है। आप जिस परिस्थिति में हो , जहाँ भी हो , जैसे भी हो , ध्यान की शुरुआत कर दो। भले ही ध्यान न लगे , ३० मिनट ध्यान को समय अवश्य दो। ध्यान लगे या न लगे यह तुम्हारा क्षेत्र नहीं है।*

*🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹*

*।। आत्मेश्वर ।।*
(पृष्ठ : १७,१८)

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