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*सभी परमात्माओं को मेरा नमस्कार . . .*
★ इस "स्त्री शक्ति अनुष्ठान" में स्त्रीशक्ति को बहुत पास से जानने का अवसर प्राप्त हुआ। *"स्त्री शक्ति" समर्पण ध्यान का प्रमुख आधार है।* लेकिन इस आधार स्तंभ की स्थिती ही बड़ी दयनीय है।
★ साधिकाएँ मुझे तीन प्रकार की देखने को मिल रही है।
•••◆ *पहली साधिकाएँ :*
★ पहली साधिका वह है जो *नियमित ध्यान भी कर रही है और उसका ध्यान लग भी रहा है।* ऐसी साधिकाओं की संख्या एकदम कम है। *ये साधिकाएँ संपूर्ण ईश्वर समर्पण का भाव रखती है।* इन्होंने मुझे जाना है , स्वामीजी क्या कहना चाहते हैं , क्या देना चाहते हैं , क्या दे रहे हैं , हमें क्या लेनेका है , हमें हमारा चित्त कहाँ रखना है। कहाँ चित्त रखने से चित्त सशक्त होगा और नियमित भी होगा यह जानती है। *क्या नश्वर है और क्या ईश्वर है , यह दोनों ही जानती है।*
★ वे पूर्णतः जानती है कि *स्वामीजी भी दो है। एक जो दिख रहे हैं और एक जो नहीं दिख रहे हैं। जो दिख रहे हैं वहाँ से जो नहीं दिख रहे हैं वहाँ तक पहुँचना है। जो दिख रहे हैं वे नश्वर है , नाशवान है वे तो केवल निमित्य है , चित्त तो मुझे नहीं दिख रहे हैं वहाँ रखने का है।* इनका चित्त केवल अपने गुरुकार्य के ऊपर ही होता है। यह जो कार्य करती है वह सर्वश्रेष्ठ ही रहता है। *इनका चित्त पूर्ण समय अपने गुरुकार्य पर ही रहता है। ये प्रायः मौन ही रहती है।* अपने काम से काम रखती है। आवश्यक हो उतनी ही बात करती है। अपनी ऊर्जाशक्ति को बेकार की बातें करके गँवाती नहीं है। *इनका चित्त सदैव गुरुचरण पर ही होता है।* इस कारण इन्हें किसीके भी दोष नहीं दिखते हैं। ओर न ही ये किसी के दोषों का प्रचार करती है। *इन साधिकाओं का एक अलग ही व्यक्तित्व है।* मेरा ध्यान इन साधिकाओं पर नहीं रहता क्योंकि इनका ध्यान तो मेरे ऊपर ही रहता है। मुझे इनकी चिंता नहीं है।
•••◆ *दूसरी साधिकाएँ :*
★ दूसरी साधिका वह है , *जिसका ध्यान तो पूर्णतः है पर चित्त नियंत्रित नहीं है।* सदैव दूसरों के दोषों की ओर फिसल ही जाता है। *ये प्रायः ध्यान करती है नाशवान चीज़ो को पाने के लिए ओर बाद में वे चीज़े भी नाशवान हो जाती है।* यानी चीज़े भी नाशवान हो जाती है और ध्यान भी बेकार जाता है। क्योंकि *इनका समर्पण नश्वर समर्पण होता है और आध्यात्मिक प्रगति के लिए आवश्यक है ईश्वर समर्पण।* यह *मेरी तो खूब प्रशंसा करती है , पर उसकी प्रशंसा नहीं करती जिसने मुझे बनाया है।* में तो एक कृति हूँ एक कलाकार की। प्रशंसा कृति की नहीं कलाकार की होनी चाहिए। कृति में कलाकार ही शक्ति बहती रहती है। *हमारा ध्यान उन शक्तियों पर होना चाहिए। जिन शक्तियों के कारण आज लाखों लोग उनसे जुड़े हैं।* इन साधिकाओं की स्थिति नदी के किनारे बैठे हुए मनुष्य जैसी है , जो सोचता है कभी न कभी तो लहर आएगी। मुझे इनकी भी चिंता नहीं है। वह जुड़ी हुई है , तो कभी न कभी तो लहर उन तक भी पहुँचेगी। लेकिन समय लगेगा। मुझे चिंता है तो उन साधिकाओं की जो तीसरे दर्जे की है।
•••◆ *तीसरी साधिकाएँ :*
★ *इनको ध्यान करने का ही समय नहीं है। यह पूर्णतः नश्वर समर्पण में जी रही है। यह साधिकाएँ बहुत बड़ी संख्या में है। ये ध्यान नहीं करती , बस जीवन में कोई संकट आता है तभी समर्पित होती है। वह भी संकट दूर करने के लिए ओर फिर ध्यान तब तक नहीं करती जब तक उनके जीवन में कोई दूसरा संकट नहीं आता है। मेरी चिंता इसके लिए है।*
★ मेरी स्थिति एक माँ जैसी है जिसकी तीन लडकियां है। लेकिन जो एकदम खराब स्थिति में है। जिसे प्रतिदिन मदद की आवश्यकता रहती ही है। माँ का सारा ध्यान उस खराब स्थिति वाली लड़की पर ही रहता है। *इन साधिकाओं की स्थिति जब तक ठीक नहीं होती तब तक तो में व्याकुल रहूँगा ही , ये सदैव मुझे व्याकुल रखती है। ये ध्यान भी नहीं करती है और मुझे भी छोड़ती नहीं है।*
★ *मेरी सबसे बड़ी कठिनाई ये साधिकाएँ ही है समर्पण ध्यान तक यह तो नहीं पहुँच सकती। आपको ही इन तक पहुँचना पड़ेगा।*
★ एक स्त्री की कठिनाई और एक एक स्त्री की समस्याएँ एक स्त्री ही अच्छे से समझ सकती है। में मेरी ओर से प्रयत्न करते रहता हूँ कि आप लोगो से दूर रहु क्योंकि आपका चित्त इस शरीर के हावभाव पर न जाए। पर *आपको भी आपका ध्यान रखना होगा की आपका ध्यान किसी भी नश्वर वस्तु पर न जाए।* आपको कभी भी कोई भी विचार आये तो प्रथम एक साक्षीभाव रखकर देखों। जिस विषय पर में विचार कर रही हूँ , या जो वस्तु में स्वामीजी से माँग रही हूँ , वह नश्वर तो नहीं है ? क्योंकि देखा गया , हमारा चित्त इन नश्वर बातों पर ही अधिक खर्च होता है। *हमें हमारा चित्त नश्वर बातों से हटाकर ईश्वर के ऊपर , उसकी अनुभूति पर ही केंद्रित रखना चाहिए। तभी हमारा ईश्वर के प्रति समर्पण हो सकेगा।* हमें सदैव अपना ही निरीक्षण करना होगा। *दूसरे तो दूर होते हैं फिर भी हमें उनके दोष दिखते हैं। हमारे दोष हमारे पास होते हैं , फिर भी वह हमें नहीं दिखते और जब तक हमें हमारे दोष नहीं दिखेंगे तो हम उसे दूर कैसे करेंगे ?*
★ *मुझे वह साधिका प्रिय है जो सबको प्रिय है। क्योंकि में सब में ही हुँ।* क्या आप मेरी प्रिय साधिका बनना चाहेंगी ? अधिक क्या लिखु ! आप समझदार हैं।
आप सभी को खूब-खूब आशीर्वाद !
आपका ,
*बाबा स्वामी*
१२/२/२००९
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