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••◆ 'सद्गुरु' एक विश्वचेतना का माध्यम होता है। इसलिए उसके भीतर सभी के प्रति एक-सा भाव होता है। वह करुणा का सागर है। उसके भीतर सभी के लिए समान करुणा बहती रहती है।

••◆ फिर उससे जुड़नेवाला किसी की भाषा का हो , किसी भी देश का हो , किसी भी धर्म का हो , किसी भी जाति का हो , किसी भी रंग का हो। वह भाषा , देश , धर्म , जाति , रंग यह सब भेद से वह ऊपर होता है।

••◆ और वह इस सबके ऊपर है। इसलिए तो वह माध्यम है।

••◆ उसे कोई भी अच्छा या कोई भी बुरा नहीं लगता। वह कभी किसी का अच्छा या किसी का बुरा नहीं कर सकता। आप ही उसके माध्यम से अपना अच्छा या बुरा कर लेते हैं।

••◆ एक सामान्य मनुष्य से अधिक तीव्रता के साथ यह परिणाम साधक को तो साक्षात मिल ही जाते हैं। साधक को तीव्रता के साथ इसलिए मिल जाते हैं क्योंकि वह लाखों की सामूहिक शक्ति के साथ जुड़ा हुआ होता है।

••◆ सद्गुरु के हाथ में केवल तथास्तु कहना मात्र है। आप जो सोचते हो वह पूर्ण करता है।

••◆ अब आपके हाथ में है आप क्या सोचते हो ! आप आपके भविष्य के बारे में अच्छा सोचते हो तो अच्छा होगा , बुरा सोचते हो तो बुरा होगा और जो भी होगा वह तीव्रता के साथ होगा।

••◆ बुरा सोचोगे तो बहुत बुरा होगा जो कभी सोचा भी नहीं होगा। और अच्छा सोचोगे तो बहुत अच्छा होगा जो आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी इतना अच्छा होगा।

••◆ अब आपके जीवन में क्या होना चाहिए वह आप पर ही निर्भर करता है। आपका भविष्य आपके ही हाथों में है। आपका अपना निजी भविष्य है। आप अपना भविष्य जैसा चाहे वैसा बना सकते है।

🌹परम पूज्य श्री शिवकृपानंद स्वामीजी🌹

मधुचैतन्य (पृष्ठ : ६)
जुलाई, अगस्त, सितंबर २००९

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