प्रेरक प्रसंग सानिध्य
पुराने समय की बात है| राजा आदित्यवर्धन शिकार का पीछा करते-करते वन में दूर निकल गए| उनके साथ कोई भी नहीं था तथा वे वापसी का रास्ता नहीं जानते थे| वन में राह खोजते-खोजते वे एक बस्ती के पास पहुँचे| "कोई है " दो-चार बार पूछा, किन्तु उतर नहीं मिला| उस समय वहाँ कोई भी नहीं था| राजा भूख-प्यास से व्याकुल था| उसने कुएँ से पानी निकाला तथा अपनी प्यास बुझाई| मन ही मन ईश्वर को तथा बस्तीवालों को धन्यवाद दिया क्योंकि प्रभुकृपा से ही वह बस्ती तक पहुँचा और बस्ती के कुएँ पर रस्सी तथा गागर/गगरिया होने के कारण ही प्यास बुझा सका| फिर उसने घोड़े को पानी पिलाया और पेड के नीचे बैठ कर सुस्ताने लगा| अभी आँख लगी ही थी कि एक आवाज से वह चौंक कर उठ बैठा| उस वृक्ष पर एक प्यारा-सा तोता फिर चीख कर बोला, "अरे!! जल्दी आओ| कोई आया है| धनवान लगता है, जल्दी इसके गहने छीन लो| वस्त्र भी मूल्यवान हैं, इन्हें भी ले लो|" राजा ने आसपास देखा| कोई भी नहीं आया था| राजा विस्मित हो तोते को देखते ही रह गया|
कुछ समय विश्राम कर राजा आगे चल दिया|काफी दूर जाने पर एक आश्रम देखा| राजा जैसी ही आश्रम में प्रवेश करने लगा, उसकी दृष्टी सामने, वृक्ष पर बैठे तोते पर पडी| तोते पंख फडफडाअ और बोला, "राजन, आपका स्वागत है |आइए, जलपान कर विश्राम करें| मुनिवर तो वनौषधि तथा फल एकत्रित करने वन में गए हैं|" राजा आश्चर्य हो गया| राजा ने तोते को बस्तीवाला अनुभव सुनाया तथा पूछा, "तुम्हारे तथा बस्ती के तोते में इतना अंतर क्यो " तोता बोला, "हम दोनों सगे भाई हैं| हम माता-पिता के साथ वन में पीपल के वृक्ष पर रहते थे| एक दिन तेज हवा के साथ आँधी आई| वह हवा हम दोनों को इडा ले गई| मैं आश्रम में गिरा और मेरा भाई डाकुओं की बस्ती में | अत:उसने ड़ाकुओं की बातें सुन कर उनकी बोली सीखी तथा मेंने मुनिवर की बातें सुन कर उनकी बोली सीखी|"
अर्थात:-परिवेश का असर प्राणीेमात्र पर होता ही है| हमें भी विचार से प्रदूषित परिवेश में रहना पड़ता है| हम परिवेश न बदल सकें तो क्या, हम दिनचर में चाहें जितना प्रदूषण ग्रहण करें, नियमित ध्यान कर दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है|
- प्यारी गुरुमाँ
Comments
Post a Comment