मोक्ष का मार्ग

" मोक्ष का मार्ग सदगुरु सदैव केवल 'बताते' हैं, वे मोक्ष 'दे' नहीं सकते हैं। आत्माको स्वयं अपने प्रयत्नों से मोक्ष की स्थिति पानी होती है।  गुरुदेव ने भोजन किया तो शिष्य का पेट भरेगा क्या? नहीं! क्योंकि भोजन करना एक क्रिया है, वह गुरुदेव ने की। और जो उनके हाथ ने उनके मुँह में  कौर डाला तो वह कौर गुरुदेव ने निगला, इसलिये गुरुदेव का पेट भर पाया।  बस यह निगलना ही महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक को स्वयं निगलना होगा। गुरुदेव निगलेंगे, गुरुदेव का पेट भरेगा; शिष्य निगलेंगा, शिष्य का पेट भरेगा।
ऐसा ही मोक्ष की स्थिति का है। मोक्ष की स्थिति एक शून्य की स्थिति होती है जहाँ बाहर की प्रकृति और भीतर की प्रकृति  एक हो जाती है।यह शरीर बाहर बहने वाली चेतना का  माध्यम बन जाता है। 'अंदर ' और 'बाहर' एसा कुछ नहीं रह जाता है। लेकिन यह स्थिति तो स्वयं आत्मा को ही पानी पडती है और यह अपनी साधना से ही प्राप्त हो सकती है। गुरु अधिक से अधिक वह मार्ग बताऐँगे, मार्ग तक फहुँचाएँगे लेकिन मार्ग पर चलना तो आत्मा को ही पडेगा।  आगेका अपना मार्ग तो प्रत्येक आत्मा को स्वयं तय करना होता है। "

हि.स.योग.४, पेज. 324

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी