साधना

सतत साधना करनी होगी । केवल 
' साधक ' या ' साधिका ' कहकर ये साधना पूर्ण नहीं होती । आपको अपने-आपको साधना होगा । अगर आप अपने-आपको साधक समझते हैं तो आप आज आत्मपरीक्षण करो कि आप कितने समय चौबीस घंटे में से वर्तमान में रहते हैं ? कितने समय भूतकाल में रहते हैं ? कितने समय भविष्यकाल में रहते हैं ? हो सकता  हैं एखादा भूतकाल का विचार आ जाए , हो सकता हैं भविष्यकाल का विचार आ जाए , लेकिन ये विचार कार्यकाल , ये विचार की स्थिति क्षणिक होनी चाहिए । क्षणिक का मेरा आशय - जैसे हम बरसात में देखते हैं कि नहीं , एखादा पानी गिरता है पानी का बबूला उठता है ; एक क्षण उठता है और दूसरे क्षण विसर्जित हो जाता है । ठीक इसी प्रकार से भूतकाल के विचारोंका बबूला , भविष्यकाल के विचार का बबूला उठता और टूट गया । वो जितने क्षण , जितने देर , जितने समय आपके मन में रहेगा । उतने समय वो आपको वर्तमान से दूर रखेगा । और वर्तमानकाल से दूर रखेगा तो परमात्मा से भी दूर रखेगा क्योकी परमात्मा वर्तमानकाल में हैं ।
           
प.पु.शिवकृपान॔द स्वामी
गुरुपूर्णिमा 2018

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