आत्मा और देह

दोनों  तुम्ही  हो ! एक  तुम  अर्थात  आत्मा  हो . . . तुम  ईश्वर  का  अंश  हो . . . प्रत्तेक  आत्मा  ईश्वर  का  अंश  होती  है । और  दूसरी  तुम  अर्थात  तुम्हारी  देह । यह  देह  आत्मा  का  साधन  होती  है । आत्मा  से  परमात्मा  तक  की  यात्रा  देह  रूपी  साधन  के  बिना संभव  नही । देह  अदभुत  साधन  है ।इसके  पास  क्षमताओ  का  विशाल  खजाना  है । देहके  पास  असीमित  क्षमताए  है । इन  क्षमताओ  का  कितना  उपयोग  होता  है . . . क्या  उपयोग  होता  है ? किसलिए  उपयोग  होता  है ? किस  तरह  उपयोग  होता  है ? ये  नियंत्रण  या  तो  आत्मा  करती  है  या  मस्तिक । जब  नियंत्रण  आत्मा  के  हातों  में  होता  है  तब  आत्मा  परमात्मा -सी  होती  है । यदि  नियंत्रण  मस्तिक  के  हातों  में  हो  तो  देह  की  भावनाओं  का  प्रभाव  विचारों  का  प्रभाव  देह  के  कार्यों  पर  पड़ता  है ।देह  में  सकारात्मक  और  नकारात्मक  दोनों  प्रकार  की  भावनाएं  होती  है ।  भावनाएं  विचारों  को  जन्म  देती  है । विचार  मस्तिक  को  प्रभावित  करते  है  और  विचारों  से  प्रभावित  मस्तिक  देह  से  कार्य  करवाता  है । आत्मा  मस्तिक  को  समझाने  का  प्रयास  करती  है  पर  यदि  आत्मा  सशक्त  हो  तभी  मस्तिक  आत्मा  की  बातों  पर  ध्यान  देता  है ।

      ॥ माँ ॥
      पुष्प १ पृष्ठ १५२

Comments

Popular posts from this blog

Subtle Body (Sukshma Sharir) of Sadguru Shree Shivkrupanand Swami

सहस्त्रार पर कुण्डलिनी